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चीन से लड़ने को ललकारती आवाजों का असली मतलब क्या है?
राजीव रंजन झा :
चीन से लड़ लोगे क्या? लड़ पाओगे क्या? बहुत ताकतवर है हमसे।
दरअसल 1962 की हार के बाद यह भारतीय मानस में बैठ गया है कि हम पाकिस्तान को तो कभी धूल चटा सकते हैं, लेकिन चीन से पार पाना संभव नहीं है।
क्या नेहरू ने चीन की मदद की सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने में?
राजीव रंजन झा :
वित्त मंत्री अरुण जेटली के एक बयान से यह विवाद खड़ा हो गया है कि क्या चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलवाने में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मदद की थी?
सिद्धू तय करें कि किस तरफ हैं वे
संदीप त्रिपाठी
कांग्रेस नेता, पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री, पूर्व क्रिकेटर, कॉमेडी शो के पूर्व जज नवजोत सिंह सिद्धू का पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण में जाना, वहाँ गुलाम कश्मीर के मुखिया के साथ बैठना और फिर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के गले लगना विवादों के घेरे में है। इस पूरे प्रकरण में में कई सवाल हैं।
एक विफल देश का शोक गीत !
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
पाकिस्तान प्रायोजित हमलों से तबाह भारत आज दुखी है, संतप्त है और क्षोभ से भरा हुआ है। उसकी जंग एक ऐसे देश से है जो असफल हो चुका है, नष्ट हो चुका है और जिसके पास खुद को संयुक्त रखने का एक ही उपाय है कि भारत के साथ युद्ध के हालात बने रहें। भारत का भय ही अब पाकिस्तान के एक रहने का गारंटी है।
उम्मीदों का काँस्य
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
वैधानिक चेतावनी-यह व्यंग्य नहीं है
साक्षी मलिक के काँस्य पर हम झूमते-गाते भारतीय बहुत रोचक रुपक गढ़ते हैं। 127 करोड़ का भारत, एक काँस्य के लिए इस तरह से तरसा कि साक्षी मलिक के काँस्य को बहुत ही बड़ी उपलब्धि मानने लगा। दरअसल यह साक्षी मलिक की निजी उपलब्धि है, निजी उपलब्धि है कि इस सिस्टम में काम करके वह इतना हासिल कर सकी।
एडवेंचर टूरिज्म के पैकेज
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सिकंदर जब भारत फतह के लिए आया था, तो दिल्ली से वापस हो लिया था, पता है क्यों, दिल्ली में नदी और नाली का फर्क बाऱिश में खत्म हो जाता है। सिकंदर ने अपने सेनापति से कहा-झेलम, चिनाब जैसी नदियाँ जब हम पार करते हैं, तो हमें यह पता होता है कि ये नदियाँ हैं। दिल्ली में जिसे सड़क समझो, वह नाला निकलता है, जिसे नाला समझो, वह नदी निकलती है। जिसे नदी समझो वह कूड़े का ढेर निकलता है। दिल्ली बहुतै कनफ्यूजिंग है भाई।
अफ्रीका जा कर चीन को घेरने की रणनीति
संदीप त्रिपाठी :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफ्रीकी महाद्वीप की यात्रा पर निकले हैं। इस यात्रा के कई मायने होंगे, अलग-अलग विशेषज्ञ अलग-अलग पहलुओं पर बतायेंगे। लेकिन इस यात्रा के तीन मुख्य मंतव्य दिख रहें हैं। यह है भारत के आर्थिक लाभ, चीन के आर्थिक लाभों को सीमित करना और तीसरा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में चीन और पाकिस्तान को कमजोर करना। मोजाम्बिक, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया और केन्या की मोदी की यात्रा से यही तस्वीर निकल कर सामने आती है।
कैसे बने दलितों के मसीहा
राकेश उपाध्याय, पत्रकार:
यदि राजनीतिक दल अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। इसलिए हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने महान देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी है। -डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा में दिए गये भाषण का हिस्सा...
अगर यह मेरा भारत है, तो मैं शर्मिंदा हूँ
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
जिन लोगों ने देशद्रोह के नारे लगाए या लगवाए, वे ठसक से रह रहे हैं, आप उन्हें छू भी नहीं सकते, वे राहुल गाँधी, सीताराम येचुरी और अरविन्द केजरीवाल समेत देश के ढेर सारे नेताओं के रोल मॉडल हैं। लेकिन जिन लोगों ने देशप्रेम के नारे लगाये और तिरंगा फहराया, उन्हें अपनी पहचान तक छुपानी पड़ रही है।
सिर्फ बिरयानी और फिल्में
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
पाकिस्तान से खबरें आ रही हैं, जिनके मुताबिक पाकिस्तान सरकार का कहना है कि पठानकोट में आतंकीकांड भारत सरकार ने खुद ही कराया है। पाकिस्तानी बयान के कुछ अंश इस प्रकार हैं-