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अपने पुरुषार्थ से पाकिस्तान को सबक सिखा सकते हैं
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मोदी के समूचे भाषण के दौरान अमेरिकी संसद में लगातार तालियाँ बजती रहीं। यद्यपि उनकी अंग्रेजी से मैं कभी इम्प्रेस नहीं होता, फिर भी मनमोहन की अंग्रेजी से इसे बेहतर मानता हूँ। मनमोहन तो हिंदी बोलते थे या अंग्रेजी-कभी लगता ही नहीं था कि उनकी तबीयत ठीक-ठाक है।
हम जो देते हैं, वही पाते हैं
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
इंदिरा गाँधी कहा करती थीं, “बातें कम, काम ज्यादा।” मैं तब उनके इस कहे का मतलब नहीं समझ पाता था। पर एक दिन पिताजी ने मुझे समझाया कि जो लोग ज्यादा बातें करते हैं, वो काम कम करते हैं। आदमी को काम अधिक करना चाहिए। इससे आदमी का, देश का, समाज का और दुनिया का विकास होता है। मेरी समझ राजनीतिक तो थी नहीं, इसलिए मैंने पिताजी से पूछ लिया था कि आखिर इंदिरा गाँधी को ऐसा कहने की जरूरत ही क्यों आ पड़ी? अगर यह सही है कि काम करने से आदमी का विकास होता है, तो ये बातें किताब में लिखी होनी चाहिए थी। मेरे स्कूल के मास्टर साहब को बतानी चाहिए थी।
तो कहाँ है वह संगच्छध्वम् ?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
चौदह के पन्द्रह अगस्त और पन्द्रह के पन्द्रह अगस्त में क्या फर्क है? चौदह में 'सहमति' का शंखनाद था, पन्द्रह में टकराव की अड़! याद कीजिए चौदह में लाल किले से प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी का पहला भाषण। संगच्छध्वम्! मोदी देश को बता रहे थे कि हम बहुमत के बल पर नहीं बल्कि सहमति के मजबूत धरातल पर आगे बढ़ना चाहते हैं। उस साल एक दिन पहले ही नयी सरकार के पहले संसद सत्र का सफल समापन हुआ था। मोदी इसका यश सिर्फ सरकार को ही नहीं, पूरे विपक्ष दे रहे थे! संगच्छध्वम्!
मोदी जी, भाषण के आगे क्या है?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:
तो मोदी जी फिर तैयार हो रहे हैं। नहीं, नहीं, विदेश यात्रा के लिए नहीं! लाल किले से अपने दूसरे भाषण के लिए! क्या बोलना है, क्या कहना है? तैयारी हो रही है।
केजरीवाल और महत्वाकांक्षा
अभिरंजन कुमार :
अरविंद केजरीवाल ने शपथ ग्रहण के बाद जो भाषण दिया, वह बेहद संतुलित और राजनीतिक रूप से परिपक्व था। पिछली बार की गलतियों से सबक लेने और इस बार कुर्सी पर जमे रहने का संकल्प उनके भाषण में दिखा। लालच और अहंकार से बचने का सबक अच्छा है।