Tag: राजीव रंजन झा
भूमि अधिग्रहण बिल पर तथ्यहीन विरोध

राजीव रंजन झा :
राहुल गाँधी को भारतीय राजनीति में पुनर्स्थापित करने के प्रयास के तहत कांग्रेस ने बीते रविवार को दिल्ली में किसानों की रैली की और उसमें राहुल खूब गरजे-बरसे।
तो आखिर कब घटेगी आपकी ईएमआई

राजीव रंजन झा :
मंगलवार 7 अप्रैल को सुबह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति सामने आते ही समाचार चैनलों की सुर्खियाँ बताने लगीं कि नहीं बदलेगी आपकी ईएमआई, लेकिन क्या बैंकों को उस दिन अपनी ईएमआई घटानी थी, और उन्होंने वह फैसला टाल दिया?
कौशल विकास : भई क्या रखा है डिग्री में, कुछ काम सीख लो

राजीव रंजन झा :
कौशल विकास या स्किल डेवलपमेंट मोदी सरकार का मौलिक नारा नहीं है।
जेटली के बजट पर असीम उम्मीदों का बोझ

राजीव रंजन झा :
बजट चाहे देश का हो या एक आम आदमी के घर का, वह हमेशा संतुलन बनाने का खेल होता है। असीम जरूरतों का संतुलन उपलब्ध संसाधनों के साथ।
‘नौलखा’ सूट : सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया

राजीव रंजन झा :
वैसे तो नरेंद्र मोदी बड़े शानदार संचारक हैं, खूब जानते-समझते हैं कि किस मौके पर क्या कहना है, कैसे कहना और क्या नहीं कहना है, लेकिन ओबामा की भारत यात्रा के दौरान वे एक भारी चूक कर गये। एक सूट पहन लिया, जिसके बारे में कहा गया कि वह नौलखा सूट है।
दिल्ली के नतीजे और सियासी वादों के निहितार्थ

राजीव रंजन झा :
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की आंधी नजर आ रही है और इस आंधी के कारण देश भर में गलत मायने निकाले जाने का खतरा भी महसूस हो रहा है।
क्यों शानदार चुटकुला है “पाँच साल केजरीवाल”!

राजीव रंजन झा :
केजरीवाल हमेशा अपने लिए नयी मंजिलें तय करते आये हैं। उनकी हर मंजिल की एक मियाद होती है। जब तक उसकी अहमियत होती है, तभी तक वहाँ टिकते हैं। नौकरी तब तक की, जब तक थोड़ा रुतबा हासिल करने के लिए जरूरी थी। एनजीओ तब तक चलाया, जब तक उससे एक सामाजिक छवि बन जाये। आंदोलन तब तक चलाया, जब तक राजनीतिक दल बनाने लायक समर्थक जुट जायें।
भारत-अमेरिकी दोस्ती का कारोबार

राजीव रंजन झा :
आम तौर पर जब दो राष्ट्राध्यक्ष मिलते हैं तो उनकी बातों और बयानों के अल्पविराम और पूर्णविराम तक की गहन कूटनीतिक समीक्षा होती है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तात्कालिक सफलता यह है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे को इन बारीकियों से निकाल कर दोनों देशों के आपसी संबंधों में आती गर्माहट पर केंद्रित कर दिया। हालाँकि यह सफलता तात्कालिक ही है, क्योंकि अंततः सफलता इसी पैमाने पर आँकी जायेगी कि यह गर्माहट दोनों देशों के आपसी कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्तों को कितना आगे बढ़ा पाती है।
गले पड़ गया 100 दिनों का वादा

राजीव रंजन झा :
एनडीए सरकार के लिए 100 दिनों में विदेशों से काला धन वापस लाने का वादा उसी तरह गले पड़ गया है, जैसे यूपीए सरकार के लिए 100 दिनों में महँगाई घटाने का वादा गले पड़ गया था। अब 100 दिनों के बदले 150 से ज्यादा दिन गुजर चुके हैं और लोग पूछ रहे हैं कि सरकार बतायें, विदेशों से वापस लाया हुआ काला धन कहाँ है?
कोई दो आँसू तो बहाता योजना आयोग के इस अंत पर!

योजना आयोग जैसी कद्दावर संस्था का यूँ मौन अंत बड़ा निरीह लग रहा है। गणतंत्र बनने के तुरंत बाद इस संस्था का गठन नये भारत के निर्माण के लिए हुआ था।