Tag: संजय सिन्हा
कर्मों की कमाई

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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जब हम छोटे बच्चे थे, तब दशहरा के मौके पर मोहल्ले में छोटा सा स्टेज बना कर नाटक किया करते थे। मोहल्ले के सारे लोग वहाँ जुट जाते और हम 'रसगुल्ला-गुलाब जामुन' वाला नाटक करते। करने को तो हम 'कलुआ की माई वाला नाटक' भी करते, पर मेरा पसंदीदा नाटक 'रसगुल्ला-गुलाब जामुन' हुआ करता था।
मैं हिन्दू हूँ

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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मेरी कल की पोस्ट पर एक परिजन ने अपने कमेंट में मुझसे पूछा है, “भारत में कौन सी हिन्दू माँ अपने बेटे को ईसा मसीह की कहानी सुनाती है? ज्यादातर माँएँ तो यह भी नहीं जानती कि ईसा कौन आदमी था? आपने झूठी पोस्ट लिखी है। और माँ द्वारा कहानी तो गांधीजी की भी नहीं सुनाई जाती। भैया कौन से ग्रह से आए हो?”
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खुशियाँ बाँटते हैं कपिल

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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कल कपिल से मिला। कॉमेडी विद कपिल शर्मा वाले कपिल से।
बंदर बना राजा

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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यह कहानी मुझे किसी ने सुनाई थी। इस कहानी को सुन कर मैं बहुत देर तक अकेले में हँसता रहा। नहीं, मैं हँस नहीं रहा था, दरअसल मैं रो रहा था।
प्यार से बढ़ कर संसार में कोई संपति नहीं

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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कभी-कभी मैं स्कूल से घर आता और खाना नहीं खाता था। माँ मुझसे कहती रहती कि हाथ धोकर खाना खाने बैठ जाओ बेटा, पर मैं माँ की बात अनसुनी कर देता। माँ आती, मुझे दुलार करती और कहती कि मेरे राजा बेटा को क्या हो गया है, क्यों चुप है। माँ और पुचकारती। फिर मैं खुश होकर खाना खाने बैठ जाता, माँ मुझे तोता-मैना कह कर खिलाने बैठ जाती।
सकारात्मक सोच से उम्मीदों को बल दें

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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कंगना रनावत मेरी दोस्त हैं। पिछले दिनों जब वो मुझसे मिली थीं, तब उन्होंने कहा था कि आप मेरी आने वाली फिल्म ‘कट्टी बट्टी’ देखिएगा। आप फिल्म देख कर रो पड़ेंगे। मैं जानता हूँ कि कंगना बहुत शानदार एक्ट्रेस हैं और उन्होंने अपनी ऐक्टिंग के संदर्भ में मुझसे ऐसा कहा था।
खुद पर भरोसा

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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माँ कहती थी कि वो लोग किसी काम के नहीं होते जो खुद पर भरोसा नहीं करते, खुद की इज्जत नहीं करते। माँ मुझे ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह दिया करती थी जो खुद को कोसते हैं। वो कहती थी कि दुनिया को जीतना उतना मुश्किल नहीं होता, जितना खुद को जीतना होता है।
रिश्तों के कपड़े

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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“माँ, मैं इस बार लाल फूलों वाली कमीज नहीं पहनूँगा।”
जीवन में बैलेंस बनाए

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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मेरे एक जानने वाले कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले हैं। उनकी चिंता यह नहीं है कि वो रिटायर होने के बाद क्या करेंगे। उनका दुख यह है कि उन्होंने अपनी जिन्दगी का इतना बड़ा वक्त सिर्फ जीने की तैयारी में गुजार दिया। अब जब जीने की घड़ी आयी, तो उन्हें याद आ रहा है कि उनकी जिन्दगी तो निकल चुकी है। उन्होंने बरसों बाद खुद को आइने में देखा और पाया कि सिर से आधे बाल उड़ चुके हैं, बाकी जो बचे हैं, वो सफेद हो गये हैं।
बदलता भोपाल

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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आधी रात को चार शराबियों की निगाह ताजमहल पर पड़ गयी। चारों को ताजमहल बहुत पसन्द आया। उन्होंने तय कर लिया इतनी सुन्दर इमारत तो उनके शहर में होनी चाहिए थी। पर कमबख्त सरकार कुछ करती ही नहीं। क्यों न हम चारों रात के अंधेरे में सफेद संगमरमर की इस इमारत को चुरा कर अपने शहर ले चलें!



 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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