संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
यह कहानी मुझे किसी ने सुनाई थी। इस कहानी को सुन कर मैं बहुत देर तक अकेले में हँसता रहा। नहीं, मैं हँस नहीं रहा था, दरअसल मैं रो रहा था।
आज मैं बिना लागलपेट के बस सीधे-सीधे इस छोटी सी कहानी को आपको सुनाऊँगा और चाहूँगा कि आप भी इस कहानी को पढ़ कर कुछ सोचें।
मुमकिन है आपने भी ये कहानी पढ़ी हो, सुनी हो। पर ऐसी कहानियाँ बार-बार पढ़नी – सुननी चाहिए, सुनानी चाहिए। ऐसी कहानियों के मर्म से आने वाली पीढ़ी को अवगत कराना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि जब हम किसी को अपना राजा चुनते हैं और सिर्फ जातिगत आधार या उसके वोटों की गिनती के आधार पर चुनते हैं तो फिर हमारा क्या हश्र होता है।
प्लीज मेरी कहानी को दिल्ली, बिहार या किसी राज्य से जोड़ कर कतई मत देखिएगा। मैं राजनीति न समझता हूँ, न उस पर लिखता हूँ। मैं राजा-रानी की कहानियाँ सुन-सुन कर बड़ा हुआ हूँ, दफ्तर में आने वाले फिल्मी कलाकारों के साथ तस्वीरें खिंचवा कर खुश होने वाला हूँ, मुझे राजनीति और राजनेताओं से क्या लेना-देना?
खैर, मैं सीधे-सीधे अपनी आज की कहानी पर चला आता हूँ, जिसे सुन कर मैं बहुत देर तक हँसता रहा। सॉरी, बहुत देर तक रोता रहा।
मेरे प्यारे परिजनों, उस जंगल में बंदरों की आबादी बहुत बढ़ गयी थी। सारे जानवरों से अधिक उस जंगल में बंदर हो चुके थे। ऐसे में, जब पूरी दुनिया लोकतंत्र की हिमायती हो चुकी थी, उस जंगल में भी जानवरों ने आवाज उठाई कि अब चुनाव के आधार पर जंगल में राजा चुना जाएगा।
बात सही थी। जंगल में एक शेर था, चार-पाँच हाथी थे। भेड़िया, हिरण, लोमड़ी, सियार, गधा, बैल, खरगोश और न जाने कितने जानवर वहाँ थे, लेकिन बंदरों की गिनती सबसे ज्यादा थी। ऐसे में लोकतांत्रिक पैटर्न पर चुनाव की आवाज उठी तो, आबादी के आधार पर बंदर चुनाव जीत गया।
लो जी, बंदर उस जंगल का राजा बन गया।
पूरे जंगल में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। लोकतंत्र जीत गया, बंदर राजा बन गया।
बंदर राजा बन गया, अब लोगों को न शेर का खौफ रहा, न हाथी का।
अब जंगल में अगर जानवरों के बीच कोई झगड़ा होता, तो जानवर शिकायत लेकर बंदर के पास जाते। बंदर जैसे ही शिकायत सुनता, इस पेड़ से उस पेड़ पर गुलाटी मारने लगता। जानवर समझ नहीं पाते कि वो ऐसा क्यों कर रहा है।
लेकिन जंगल में यह बात फैल गयी कि बंदर राजा के पास जब भी कोई शिकायत लेकर जाता है, तो वो गुलाटी मारने लगता है।
जल्दी ही जंगल में जंगल राज हो गया। सारे जानवर आपस में झगड़ने लगे।
आखिर में बेहाल होकर सारे जानवरों ने बैठक बुलाई और तय किया कि बंदर राजा से मिला जाए और जंगल की दुर्दशा की उनसे चर्चा की जाए।
सारे जानवर इकट्ठा होकर बंदर राजा के पास गये। कहने लगे कि महाराज, जब से आप जंगल के राजा चुने गये हैं, जंगल की स्थिति बदतर होती जा रही है। आपके पास जब कोई शिकायत लेकर आता है, तो आप कुछ करने की जगह बस गुलाटी मारने लगते हैं।
बंदर ने बहुत धीरे से कहा कि मुझे जो आता है, मैं वही तो करूँगा। आप मेरे पास शिकायत लाते हैं, मैं गुलाटी मारना जानता हूँ, गुलाटी मारने लगता हूँ। अब मेरी कोशिशों में अगर कहीं कमी हो, तो आप मुझे दोषी ठहरा सकते हैं। मैं अपनी तरफ से बहुत ईमानदारी से कोशिश करता हूँ। मैं बहुत मेहनत से अपने काम को अंजाम देता हूँ। अब मेरी कोशिशें कामयाब नहीं होतीं, तो मैं क्या करूँ?
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इस कहानी को सुन कर मैं हँसने लगा। नहीं-नहीं मैं रोने लगा।
सचमुच बंदर जिस जंगल का राजा बन जाता है, वहाँ ईमानदारी चाहे जितनी हो, उसके प्रयास में मेहनत चाहे जितनी हो, उस जंगल में जंगल राज्य ही हो जाता है।
जानवरों को अफसोस तो बहुत हुआ कि बेकार ही बंदर को राजा चुना। पर बंदर बहुत प्रसन्न था। वो जानता था कि अगला चुनाव भी वही जीतेगा। उसने चुनाव का पूरा गणित लगा लिया था। आबादी के हिसाब से 70% वोट उसी के पास थे।
(देश मंथन, 23 सितंबर 2015)