Tag: संजय सिन्हा
मारिया साहब का प्रमोशन : इनाम या सजा?

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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सर्दियों की उस रात मैं मामा के साथ हीटर के आगे बैठा था। सामने फोन रखा था, जो हर मिनट घनघनाता था।
नैतिक पतन

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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मेरे एक परिचित ने पासपोर्ट बनने के लिए आवेदन किया। यह तो आप जानते ही होंगे कि पासपोर्ट बनने के क्रम में पुलिस वाले आपके घर आकर यह जाँचते हैं कि पासपोर्ट में दी गयी जानकारी सही है या नहीं। तो मेरे परिचित के घर भी पुलिस यह जाँच करने पहुँची कि उनका पता सही है या नहीं।
रिश्तों का पाठ

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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बचपन में मुझे चिट्ठियों को जमा करने का बहुत शौक था। हालाँकि इस शौक की शुरुआत डाक टिकट जमा करने से हुई थी। लेकिन जल्द ही मुझे लगने लगा कि मुझे लिफाफा और उसके भीतर के पत्र को भी सहेज कर रखना चाहिए। इसी क्रम में मुझे माँ की आलमारी में रखी उनके पिता की लिखी चिट्ठी मिल गयी थी। मैंने माँ से पूछ कर वो चिट्ठी अपने पास रख ली थी। बहुत छोटा था, तब तो चिट्ठी को पढ़ कर भी उसका अर्थ नहीं पढ़ पाया था, लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया बात मेरी समझ में आती चली गयी।
जीवन और मृत्यु का पाठ पढ़ाने वाले गुरु श्रीकृष्ण
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कभी नहीं,
इस आत्मा को,
खण्ड-खण्ड कर सकते हैं
हथियार।
कभी नहीं,
इस आत्मा को
जला सकती है
अग्नि।
कभी नहीं
भी
इस आत्मा को
भिगो सकता है,
जल।
कभी नहीं,
सुखा सकती है,
वायु।
***
जीवन कुछ नहीं होता

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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देखो मैंने देखा है ये एक सपना, फूलों के शहर में है घर अपना
अहंकार मिटाता है

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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कल मेरे दफ्तर में अनिल कपूर और जॉन अब्राहम आये थे। दोनों अलग-अलग गाड़ियों में थे। जॉन गाड़ी से पहले उतर गए, अनिल किसी से फोन पर बात कर रहे थे। मैं जॉन को लेकर गेस्ट रूम में चला गया और वहाँ उन्हें बिठा दिया। मैं उनसे चाय-कॉफी पूछ ही रहा था कि अपनी बात खत्म कर अनिल कपूर भी कमरे में चले आये।
बेटे नहीं होने से वंश खत्म नहीं होता

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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कभी-कभी हम किसी के मुँह से ऐसा कुछ सुन लेते हैं कि मन खिल उठता है।
समंदर की सैर

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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बहुत से लोग कभी बड़े नहीं होते। मैं भी उनमें से एक हूँ।
प्यार का बँटवारा

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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दो दिन पहले मेरे पास एक मिस्त्री का फोन आया था। मैं उसे जानता था। तीन-चार साल पहले उसने मेरे घर में रंगाई-पुताई का काम किया था और तभी अपना नंबर मुझे दे गया था। मिस्त्री को पता था कि मैं पत्रकार हूँ। एक बार वो काम करके चला गया तो फिर मेरा उससे कोई संपर्क नहीं रहा।
बेटी ‘उजाला’ और बहू ‘बेरहम’

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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माँ ने बताया था कि जिस दिन मेरा जन्म हुआ था, उस दिन खूब बारिश हो रही थी। सुबह के पांच बजे घर में थाली पर हँसुए की झंकार गूंजी थी। मैं याद करने पर आऊँ तो सब कुछ याद आ सकता है। लेकिन मैं आज अपने जन्मदिन को याद नहीं करना चाहता।



