Tag: संजय सिन्हा
गुणों का कंगाल होता है विलेन

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
हीरो की माँ, बहन और पत्नी या प्रेमिका तीनों खंभे से बंधी हुयी हैं। हीरो कई-कई पहलवानों से घिरा है।
मुश्किल में मित्र की पहचान होती है

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जब माँ मुझे और इस संसार को छोड़ कर जा रही थी तब मैं नहीं सोच पाया था कि माँ के चले जाने का मतलब क्या होता है। मेरी नजर में माँ कैंसर की मरीज थी और भयंकर पीड़ा से गुजर रही थी।
जिन्दगी उठ कर गिरने और गिर कर उठने का नाम है

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोगों ने धान की बोआई और फिर उसकी रोपाई देखी है।
मन भरा तो मोक्ष मिला

 संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 
पत्रकारिता में होने का कोई फायदा हो न हो, लेकिन एक फायदा जरूर है कि ऐसे कई लोगों से मिलने का मौका मिल जाता है, जिनसे आम तौर पर मुलाकात संभव नहीं।
आदमी की गलतियाँ उसकी थाली के नीचे छुपी होती हैं

 संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 
आज लिखने में देर होने की बहुत बड़ी वजह है मेरी पत्नी को ऐसा लगना कि मेरा वजन बढ़ गया है, और मैं खाने-सोने-जागने पर नियन्त्रण नहीं रखता।
कल रात घर में आलू-गोभी की दम वाली सब्जी बनी थी, पराठे बने थे। लेकिन मुझे उसमें से कुछ भी खाने को नहीं मिला।
आजमाये हुए को दुबारा नहीं आजमाना चाहिए

 संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 
ये संसार बुराइयों से भरा पड़ा है। ये संसार अच्छाइयों से भी भरा पड़ा है।
पर्मानेंट इलाज

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मुझे खुद ही याद नहीं कि आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, उसे पहले आपको सुना चुका हूँ या नहीं।
रास्ते हैं प्यार के, चलिये संभल के

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मुझे यकीन है कि आप में से कोई न कोई कीनिया की मिस कुवी को जरूर जानता होगा। मिस कुवी पिछले साल भर से दोस्ती निवेदन मेरे पास भेज रही हैं।
अकेलापन है सजा

 संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 
हमारे दफ्तर के एक साथी की पत्नी अपने दोनों बच्चों समेत पिछले हफ्ते भर से मायके गयी हैं।
जिस दिन मेरे साथी की पत्नी मायके जा रही थीं, वो बहुत खुश थे। उन्होंने दफ्तर में बाकायदा एनाउन्स किया कि अब वो दो हफ्ते छड़ा रहेंगे।
चलता जीवन, बहता पानी

 संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 
वैसे तो मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं रोज आइने में अपना चेहरा देख सकूँ। सुबह ब्रश करते हुए जितना दिख जाता है, उतना ही काफी है।



