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रिश्तों में जरूरी होता है भाव को समझना

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
दो दिनों से प्रेम पर लिख रहा हूँ।
क्या हो गया है मुझे?
मरने वाली लड़की ही क्यों?

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
इसका जो कारण मुझे समझ में आता है वह यही है कि अपने यहाँ लड़कियों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने की अवधारणा ही नहीं है। लड़कियाँ आम तौर पर पिता के करीब होती हैं और पिता से जिन विषयों पर बात होती है उसकी सीमा है। ऐसे में जब वे फँसती हैं तो उनकी परेशानी शेयर करने वाला कोई नहीं होता। खासतौर से जब मामला ब्वायफ्रेंड का हो।
दुस्साहसी माँ-बाप ही बेटियों को जेएनयू भेजेंगे!

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
अगले सत्र से जेएनयू में प्रवेश लेने वाली लड़कियों की संख्या में खासी गिरावट आ सकती है। पिछले एक महीने में ऐसे कई अभिभावकों से बातचीत हुई, जो अपनी बेटियों को उच्च-शिक्षा के लिए किसी अच्छी यूनिवर्सिटी में भेजना चाहते हैं, लेकिन जेएनयू का नाम आते ही वे काँपने लगते हैं।
बेटियों को हक है खुश होने का

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने पहली बार जब शहनाई की आवाज सुनी थी, तब मैं मेरी उम्र आठ साल रही होगी। दीदी का शादी तय हो गयी थी और घर में उत्सव का माहौल था।
जिस दिन दीदी की शादी होने वाली थी, दो शहनाई वाले छत पर बैठ कर पूँ-पूँ बजा रहे थे। मुझे राग का ज्ञान नहीं था, लेकिन उनके मुँह से लगी शहनाई से जो आवाज निकल रही थी, वो दिल के किसी कोने में मोम बन कर पिघलती सी लग रही थी।