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हिमाचल के परवानू में पाँच दिन
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
परवानू हिमाचल प्रदेश का प्रवेश द्वार है। जब आप चंडीगढ़ से कालका होते हुए शिमला के लिए आगे बढ़ते हैं तो हरियाणा का कालका खत्म होने के बाद हिमाचल का पहला शहर परवानू ही पड़ता है। लिहाजा यह हिमाचल का प्रवेश द्वार है। हिमाचल सरकार ने यहाँ लोकनिर्माण विभाग का एक गेस्ट हाउस बनवा रखा है। वह साल 2000 का जून महीना था। मैं गुरु जांभेश्वर विश्वविद्यालय की एमएमसी की परीक्षा दे रहा था। मैंने अपना केंद्र चंडीगढ़ चुन रखा था। कुछ दिन अपने सीनियर साथी राजेश राठौर के घर में रहा। इसी दौरान हिमाचल के कुछ दोस्तों से परिचय हुआ था।
मन मोह लेती है मनाली की फिजाँ
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
मनाली देश के बेहतरीन हिल स्टेशन में शामिल है। मुझसे अगर कोई किसी एक हिल स्टेशन को पहला नंबर देने को कहे तो मैं मनाली का ही नाम लूंगा। क्यों तो इसके कई कारण हैं। मनाली में घूमने को लेकर काफी विविधताएं हैं।
झुमार – ताल से ताल मिला….
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
हिमाचल में चंबा के पास झुमार पहुँच जाना यूँ लगता है जैसे सपनों की दुनिया में आ गए हों। झुमार चंबा शहर से 14 किलोमीटर की दूरी पर है। रास्ता लगातार चढ़ाई वाला है। पर जब आप झुमार पहुँचते हैं तो मौसम काफी बदल चुका होता है। यह एक ग्रामीण इलाका है जहाँ दूर-दूर तक हरियाली, सेब, चीड़ और देवदार के पेड़ दिखायी देते हैं। झुमार का नैसर्गिक सौंदर्य फिल्मकार सुभाष घई को इतना भाया कि उन्होंने अपनी सुपर हिट फिल्म ताल की आधी शूटिंग झुमार में की। 1999 में आयी इस फिल्म में चंबा का सौंदर्य निखर कर आया है। झुमार में जो सेब का बाग है उसका नाम ही ताल गार्डेन रख दिया गया है।
चंबा का लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
हिमाचल प्रदेश का छोटा सा शहर चंबा मंदिरों का नगर है। वैसे चंबा के आसपास कुल 75 प्राचीन मंदिर हैं। छोटे से शहर में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के कई मंदिर हैं। इन मंदिरों में प्रमुख है लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह। यह चंबा शहर का सबसे विशाल मंदिर समूह है।
लोक आस्था के प्रतीक हैं खजिनाग
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
हिमाचल के धौलाधार पर्वत मालाओं के बीच कई नाग मंदिर हैं। इनमें खजियार का खजिनाग मंदिर प्रमुख है। खजिनाग मंदिर बारहवीं सदी का बना हुआ है। आठ सौ साल पुराना ये मंदिर अपने ऐतिहासिकता और पुरातात्विक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार चंबा के राजा पृथ्वी सिंह की दाई बाटुल ने करवाया था। मंदिर के गर्भ गृह में खज्जी नाग की प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के प्रांगण में पंच पाँडवों की काष्ठ प्रतिमाएँ स्थापित की गयी हैं।
खजियार – स्विटजरलैंड 6194 किलोमीटर…
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
खजियार यानी सपनीली दुनिया। दस से ज्यादा हिंदी फिल्मों में खजियार के सौंदर्य को समेटने की कोशिश फिल्मकारों ने की है। खजियार हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का एक गाँव है, जिसे हिल स्टेशन का दर्जा प्राप्त है। यह 1920 मीटर की ऊँचाई पर है। यह डलहौजी से भी 24 किलोमीटर है और चंबा शहर से भी 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तीन किलोमीटर की परिधि में एक बड़ा हरा भरा ग्राउंड है। इस ग्राउंड के बीचों बीच झील है। इस झील को गाँव के लोग पवित्र और रहस्यमय भी मानते हैं।
डलहौजी : बावड़ी का पानी पीकर स्वस्थ हुए सुभाष बाबू
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
यह 1937 की बात है। महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जेल में अंगरेजी सरकार की यातना के दौर में टीबी की बीमारी हो गयी। तब डाक्टरों ने उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए किसी ठंडी जगह में जा कर रहने की सलाह दी।
गेटवे ऑफ चंबा – बनीखेत
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
बनीखेत में ठहरने के कई कारण थे। पहला की बनीखेत डलहौजी से छह किलोमीटर पहले है, जो लोग पहाड़ों की चकरघिन्नी वाले रास्ते पर लंबा सफर नहीं करना चाहते उन्हें जल्दी ब्रेक मिल जाता है। दूसरा अगर डलहौजी घूमना है बनीखेत में रूक कर भी घूमा जा सकता है। बनीखेत से डलहौजी महज 6 किलोमीटर है। 10 मिनट में किसी भी बस से पहुँच जाइए। ठहरने के लिए बनीखेत में भी कई होटल और गेस्ट हाउस हैं। बनीखेत में होटल डलहौजी की तुलना में किफायती है।
नैना देवी जो देती हैं रोशनी
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
माँ जोता वाली यानी नैना देवी। नैना देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में शिवालिक पर्वत पर है। नैना देवी नौ देवियों और 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। वैसे यहाँ पहुँचने का सुगम रास्ता पंजाब के रूपनगर जिले में नंगल से निकट है।
कांगड़ा का स्वाद – लुंगडू का अचार
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
जब भी मैं हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा की वादियों में जाता हूँ तो अचार और चायपत्ती जरूर लाने की कोशिश करता हूँ। कांगड़ा के बाँस के अचार का स्वाद सालों से जुबाँ पर है। पर इस बार यहाँ देखने को मिल लुंगड़ू का अचार । दुकानदार ने बताया यह सर्दिंयों के लिए अच्छा है। सो हमने एक पैकेट खरीद लिया। सर्दियों में बाँस का अचार भी खाना अच्छा रहता है। अब बात लुंगडू की। लुंगडू यानी ( Fiddle head fern) का अचार कांगड़ा की खास विशेषता है।