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कश्मीर को अमन और विकास चाहिए : नरेंद्र तनेजा

हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में एक बार फिर उबाल दिख रहा है और अमरनाथ यात्रा रुकने जैसे हालात पैदा हो गये हैं। कश्मीर की इस स्थिति और वहाँ की विकराल समस्या को सुलझाने के बारे में भाजपा की सोच क्या है? भाजपा प्रवक्ता नरेंद्र तनेजा से देश मंथन की एक बातचीत।
तुम्हारी गलती नहीं अफरीदी, विष के पेड़ में आम नहीं फलते

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
शाहिद अफरीदी एक बार फिर विवादों में घिर गये हैं। पहले तो उन्होनें टी-20 विश्वकप में भाग लेने के लिए भारतीय धरती पर कदम रखते ही यह बयान दे कर कि उनको तो अपने देश से भी ज्यादा प्यार भारत में मिलता है, पाकिस्तानियों के कोप भजन बने और फिर न्यूजीलैंड के साथ 22 मार्च को हुए मैच के पहले यह बयान दे कर कि उनको कोलकाता में काफी समर्थन मिला था और मोहाली में काफी कश्मीरी हमारे समर्थन में यहाँ पहुँचे हैं, अपनी आवाम के गुस्से को कम करने की कोशिश की। लेकिन इससे वो भारतीयों के निशाने पर फिर आ गये।
कश्मीरी पंडितों की वापसी से कौन डरता है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने को लेकर अलगाववादी संगठनों की जैसी प्रतिक्रियायें हुयी हैं, वे बहुत स्वाभाविक हैं। यह बात साबित करती है कि कश्मीर घाटी में जो कुछ हुआ, उसमें इन अलगाववादियों की भूमिका और समर्थन रहा है।
कश्मीर पर प्रचारक का हठ या नेहरू से आगे मोदी की नीति?

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
वक्त बदल चुका है। वाजपेयी के दौर में 22 जनवरी 2004 को दिल्ली के नॉर्थब्लाक तक हुर्रियत नेता पहुँचे थे और डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की थी। मनमोहन सिंह के दौर में हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान जाने का वीजा दिया गया और अमन सेतु से उरी के रास्ते मुजफ्फराबाद के लिए अलगाववादी निकल पड़े थे।
कश्मीर पर मेरे कहे को पहले समझें तो सही!

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
पहले हाफिज सईद से मेरी मुलाकात पर संसद में हंगामा हुआ और फिर कश्मीर पर मेरे विचारों को लेकर। मुझे दुख है कि हमारे नेताओं ने इन दोनों मुद्दों पर ठंडे दिमाग से क्यों नहीं सोचा?
कश्मीर : आजादी हाँ, अलगाव ना

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
मैं आजकल के जिस टीवी चैनल पर जाता हूँ, कश्मीर का सवाल जरूर उठा दिया जाता है। जब मैं एंकरों और दूसरे साहबान से पूछता हूँ कि आप बताइये कश्मीर का हल क्या है तो उनके पास कोई ठोस, सगुण, साकार जवाब नहीं होता है।