Tuesday, September 17, 2024
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पैसा और शांति

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी एक परिचित इन दिनों बहुत परेशान है और मुझसे मदद चाहती हैं। मैं दिल से उनकी मदद करना चाहता हूँ, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा। 

प्यार

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

स्कूल में मास्टर साहब पढ़ा रहे थे। अचानक मास्टर ने क्लास में सभी बच्चों से पूछा, “बच्चों तुम्हें अचानक भगवान मिल जाएँ और तुमसे कहें कि तुम क्या माँगते हो, विद्या या धन, तो तुम क्या माँगोगे?”

सुभागी

प्रेमचंद :

और लोगों के यहाँ चाहे जो होता हो, तुलसी महतो अपनी लड़की सुभागी को लड़के रामू से जौ-भर भी कम प्यार न करते थे। रामू जवान होकर भी काठ का उल्लू था। सुभागी ग्यारह साल की बालिका होकर भी घर के काम में इतनी चतुर, और खेती-बारी के काम में इतनी निपुण थी कि उसकी माँ लक्ष्मी दिल में डरती रहती कि कहीं लड़की पर देवताओं की आँख न पड़ जाय। अच्छे बालकों से भगवान को भी तो प्रेम है। कोई सुभागी का बखान न करे, इसलिए वह अनायास ही उसे डाँटती रहती थी। बखान से लड़के बिगड़ जाते हैं, यह भय तो न था, भय था - नजर का ! वही सुभागी आज ग्यारह साल की उम्र में विधवा हो गयी।

विकल्प न हो तो, जो है उसमें खुश रहिये

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे फुफेरे भाई के पास एक जोड़ी हवाई चप्पल थी। चप्पल क्या, समझिए ऊपर रंग उतरा हुआ फीता था, नीचे घिसी हुई ऐड़ी थी। ऐड़ी इतनी घिसी हुई कि पाँव फर्श छूता था। लेकिन थी चप्पल।

अकेलापन है सजा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

हमारे दफ्तर के एक साथी की पत्नी अपने दोनों बच्चों समेत पिछले हफ्ते भर से मायके गयी हैं। 

जिस दिन मेरे साथी की पत्नी मायके जा रही थीं, वो बहुत खुश थे। उन्होंने दफ्तर में बाकायदा एनाउन्स किया कि अब वो दो हफ्ते छड़ा रहेंगे।

दिल की सुनो, बदलाव भी जरूरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

प्रिय संजय सिन्हा,

पिछले तीन दिनों से तुम जयप्रकाश नरायण, इमरजंसी, इन्दिरा गाँधी, अच्छे दिन वगैरह-वगैरह लिख रहे हो उसका फल तुमने भोग लिया है। कहाँ तुम एक-एक पोस्ट पर हजार-हजार लाइक बटोरा करते थे, और जबसे तुमने जरा राजनीतिक यादों की झलकियों को दिखाने की कोशिश की, तुम्हें तुम्हारी औकात पता चल गयी।

अमर प्रेम

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

बचपन में मैं कुम्हार बनना चाहता था।

भावे की हर बात भली, ना भावे तो हर बात बुरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आज सोच रहा हूँ कि सु़बह-सु़बह आपसे वो बात बता ही दूँ जिसे इतने दिनों से बतान के लिये मैं बेचन हूँ।

लोग क्या कहेंगे

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन : 

समाज में लोग क्या कहेंगे - सबसे बड़ी समस्या है। कुछ भी करो मना करना हो तो सबसे साधारण पर सबसे लचर दलील यही है। इसलिए रेडियो सिटी 91.1 एफएम ने जब अक्षय और जीनत का मामला उठाया तो मुझे लगा अब हो गया लोग क्या कहेंगे - का इंतजाम।

तोड़ो नहीं, जोड़ो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

पिछले साल मैं अमृतसर में वाघा बॉर्डर गया था। वाघा बॉर्डर पर हर शाम एक खेल होता है। देशभक्ति का खेल।

वहाँ अटारी सीमा पर शाम के पाँच बजे भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों के गेट खुलते हैं और दोनों देशों के सैनिक अपने सैन्यबल का प्रदर्शन करते हैं।

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