Sunday, May 19, 2024
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सांप्रदायिकता से कौन लड़ना चाहता है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

देश भर के तमाम हिस्सों से सांप्रदायिक उफान, गुस्सा और हिंसक घटनाएँ सुनने में आ रही हैं। वह भी उस समय जब हम अपनी सुरक्षा चुनौतियों से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं। एक ओर पठानकोट के एयरबेस पर हुए हमले के चलते अभी देश विश्वमंच पर पाकिस्तान को घेरने की कोशिशों में हैं, और उसे अवसर देने की रणनीति पर काम कर रहा है। दूसरी ओर आईएस की वैश्विक चुनौती और उसकी इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न देशों की युवा शक्ति को फाँसने और अपने साथ लेने की कवायद, जिसकी चिंता हमें भी है। मालदा से लेकर पूर्णिया तक यह गुस्सा दिखता है, और चिंता में डालता है। पश्चिम बंगाल और असम के चुनावों के चलते इस गुस्से के गहराने की उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं।

माल्दा, मुसलमान और कुछ सवाल!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार : 

माल्दा एक सवाल है मुसलमानों के लिए! बेहद गम्भीर और बड़ा सवाल। सवाल के भीतर कई और सवालों के पेंच हैं, उलझे-गुलझे-अनसुलझे। और माल्दा अकेला सवाल नहीं है। हाल-फिलहाल में कई ऐसी घटनाएँ हुईं, जो इसी सवाल या इन्हीं सवालों के इर्द-गिर्द हैं। इनमें बहुत-से सवाल बहुत पुराने हैं। कुछ नये भी हैं। कुछ जिहादी आतंकवाद और देश में चल रही सहिष्णुता-असहिष्णुता की बहस से भी उठे हैं।

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