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नई पीढ़ी के पेय और बचपन की यादें – पेपर बोट
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
आज सुबह के अखबार में अमरूद और लाल मिर्च की इस फोटू ने पुराने दिन याद करा दिये। पिछले कई साल से अमरुद तो आराम से उपलब्ध है ही, लाल मिर्च की भी कोई कमी नहीं रही। पर ऐसे अमरुद नहीं खाया। खाया नहीं क्या किसी ने खिलाया ही नहीं। बचपन में अमरुद बेचने वाला पूछ कर और कई बार बिना पूछे भी अमरुद इस तरह काट कर लाल मिर्च भर देता था। आज यह तस्वीर देख कर वो सब स्वाद याद आ गया। पुराने दिन याद आ गये। खाक अच्छे दिन-पुराने दिन बहुत अच्छे थे।
यादों की लहरें
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मुझे बचपन में तैरना नहीं आता था, लेकिन अमेरिका में जब मैं अपने बेटे को स्वीमिंग क्लास के लिए ले जाने लगा, तो मैंने उसके कोच की बातें सुन कर तैरने की कोशिश की और यकीन मानिए, पहले दिन ही मैं स्वीमिंग पूल में तैरने लगा।
ताकतवर अक्षय को यूँ हार्ट अटैक आना
विकास मिश्रा, आजतक :
दफ्तर में मेरी ठीक बायीं तरफ की सीट खाली है। ये अक्षय की सीट है। अक्षय अब इस सीट पर नहीं बैठेगा, कभी नहीं बैठेगा। दराज खुली है। पहले खाने में कई खुली और कई बिन खुली चिट्ठियाँ हैं, जो सरकारी दफ्तरों से आयी हैं, इनमें वो जानकारियाँ हैं, जो अक्षय ने आरटीआई डालकर माँगी थीं।
यही है जिन्दगी, यही है रिश्ता
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
करीब 30 साल पहले मैं अपनी जन्मभूमि से दूर जा रहा था तब मेरी खुली आँखों में हजारों यादें सिमटी थीं।
संयोगों का एक विघटन है जिन्दगी
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कभी रुक कर सोचिएगा कि जिन्दगी क्या है। जिन्दगी चन्द यादों के सिवा कुछ नहीं। यादें बचपन की, यादें जवानी की, यादें दादी-नानी की कहानियों की और यादें माँ की लोरियों की। यादें अपने जन्म की।
राजगीर में गुरुद्वारा शीतल कुंड में पहले गुरु की स्मृतियाँ हैं
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
राजगीर अपने ऐतिहासिक कारणों से प्रसिद्ध है। पर बहुत कम लोगों को ही जानकारी होगी कि राजगीर में सिखों के पहले गुरु गुरुनानक जी ने प्रवास किया था। यहाँ उनकी स्मृति में एक गुरुद्वारा भी है। पहले गुरु ने इस ऐतिहासिक स्थल पर 1506 ई. विक्रम संवत में प्रवास कर इस जगह को धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण बना दिया।