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मकान ले लो, मकान
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे मित्र को एक मकान चाहिए। वैसे दिल्ली में उनके पिता जी ने एक मकान बनवाया है और अब तक वो उसमें उनके साथ ही रह रहे थे। लेकिन कुछ साल पहले उनकी शादी हो गयी और उन्हें तब से लग रहा है कि उन्हें अब अलग रहना चाहिए। मैंने अपने मित्र से पूछा भी कि पिताजी के साथ रहने में क्या मुश्किल है?
माँ
भाई की आँखों में चमक और बहन की आँखों में प्यार
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ तीन दिनों के लिए पिताजी के साथ बाहर गई थी। मैं बिना माँ के एक दिन नहीं रह सकता था। माँ ने जाते हुए मुझसे दो साल बड़ी बहन को निर्देश दिया था कि संजू का ख्याल रखना। बहन चुपचाप खड़ी थी।
पूरी जिन्दगी एक धोखे में कट गयी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल जबसे मुरारी बापू का फोन आया कि संजय सिन्हा तुम बहुत अच्छी कहानियाँ लिखते हो, मैंने तुम्हारी तीनों किताबें पढ़ीं और अपनी कई कथाओं में तुम्हारा नाम लिया है, मेरे पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे।
प्यार, स्नेह और मान दें रिश्तों में प्रेम के अंकुर फूटेंगे
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं एक बहू से मिला हूँ। मैं एक सास से मिला हूँ।
दोनों में नहीं बनती। क्यों नहीं बनती मुझे नहीं पता। बहू का कहना है कि सास हर पल उसे नीचा दिखाती हैं।
सास कहती हैं कि बहू उसे पूछती नहीं।
जिन्दगी में कुछ ऐसा करें जिससे संतोष मिले
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैंने तो पहले ही बता दिया था कि दो दिन पहले जब मथुरा से Pavan Chaturvedi भैया मेरे घर आए थे, तो उन्होंने मुझे कई कहानियाँ सुनाई थीं। एक नहीं, दो नहीं, तीन या चार भी नहीं, ढेरों कहानियाँ। मैंने उसी में से एक चिड़िया की कहानी आपको परसों सुनाई थी।
अच्छाई ढूंढें, जिन्दगी आसान हो जायेगी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे पिताजी की आदत भी अजीब थी।
खाना खाने बैठते तो एक निवाला तोड़ कर थाली के चारों ओर घूमाते और फिर उसे किनारे रख कर थाली को प्रणाम करते और खाना खाना शुरू करते।
मैं उन्हें ऐसा करते हुए देखता और सोचता कि पिताजी ऐसा क्यों करते हैं?
रिश्तों को दस्तक दीजिए
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कोई 60 साल पुरानी बात है, एक लड़की की बहुत धूम-धाम से शादी हुई। शादी के बाद लड़की के पाँच बच्चे हुए। चार बेटियाँ, एक बेटा। पूरा परिवार खुश।
पहले बेटियों की शादी हुई, फिर बेटे की। कुछ दिनों बाद पति का निधन हो गया। बेटियाँ ससुराल में सेटल हो चुकी थीं, बेटा अमेरिका में सेटल हो गया था। रह गयी थी माँ।
जागता आदमी सच को समझता है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जब मैं छोटा था, तब माँ मुझे कहानियाँ सुना कर सुलाया करती थी। उन्हीं ढेर सारी कहानियों में से एक आज मुझे याद आ रही है।
रोम-रोम में बसी है माँ
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
स्कूल में जब सारे बच्चे बात-बात पर विद्या कसम खा लेते थे, तब भी मैं विद्या कसम नहीं खाता था।