Friday, November 22, 2024
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भाव महत्वपूर्ण हो तो ‘मरा’ भी ‘राम’ होगा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मैंने बात सिर्फ अच्छे और बुरे पैसे की थी। मैंने सिर्फ इतना ही कहने की कोशिश की थी कि जिस तरीके से मनुष्य धन अर्जित करता है, वो तरीका ही धन की गुणवत्ता तय करता है। मैं जानता हूँ कि ये एक लंबे विवाद का विषय है। विवाद से भी अधिक ज्ञान और अज्ञान का विषय है।

गेहूँ की फसल कम होगी, लेकिन वोटों की खेती लहलहायेगी

संजय सिन्हा, आज तक :

मेरी माँ किसान नहीं थी, लेकिन जिस साल अप्रैल के महीने में आसमान में काले-काले बादल छाते और ओले बरसते माँ सिहर उठती थी।

हंसों से सीखें रिश्ते निभाना

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आपने कभी हंसों को उड़ते हुए देखा है? 

पौराणिक कहानियाँ जीवन की पाठशाला हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आदमी चाहे तो किसी एक कण से भी जिंदगी में बहुत कुछ सीख सकता है। 

मैंने बचपन में सुनी और पढ़ी तमाम कहानियों में से हाथी और मछली की कहानी को जीवन के सार-तत्व की तरह लिया। हालाँकि वहाँ तक पहुँचने के लिए मुझे राजा यदु और अवधूत की मुलाकात की कहानी भी माँ ने ही सुनायी थी।

बेटियों के गुनाहगार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

राज कपूर की फिल्म ‘प्रेम रोग’ जब मैं देख रहा था, तब मैं स्कूल में रहा होऊंगा।

‘गजेन्द्र मोक्ष’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

माँ कहती थी कि मेरे पाँव में चक्कर बना हुआ है, इसलिये मैं घूमता रहूँगा। 

तो क्या बड़ा होकर मैं गोल-गोल घूमूंगा? लेकिन गोल-गोल क्यों घूमूंगा, उससे तो मुझे चक्कर आने लगता है। फिर पाँव में चक्कर का मतलब क्या हुआ?

कल मैंने वाघा बार्डर की चर्चा की थी और आज मैंने सोचा था कि उस खूबसूरत लड़की की आँखों की कहानी बयाँ करूंगा, जो मुझे भारत-पाक की कंटीली सीमा के उस पार मिली थी, जिससे मैं कोई बात नहीं कर पाया था सिवाय उसकी तसवीर खींचने के और वो भी मुझसे एक शब्द नहीं बोल पायी थी, सिवाय मेरी तस्वीर लेने के।

अपने-अपने रिश्तों का बोध होना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

पत्नी धीरे से आकर कान में फुसफुसाई कि शायद वो माँ बनने वाली है। 

ट्रेन की रफ्तार बहुत तेज थी। मैं ऊपर बर्थ पर लेट कर किताब पढ़ रहा था।

रिश्तों का गुलदस्ता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मैं कल्पना के संसार में जीता हूँ। मैं कल्पना के संसार में ही जीना चाहता हूँ। मैं हर रोज एक काल्पनिक कहानी लिखता हूँ।

जोश और अनुभव से मिलती है जीत

संजय सिन्हा :

ये कहानी भी माँ ने ही सुनाई होगी, वर्ना और कहाँ से कहानी सुन सकता था मैं, लेकिन ये कहानी मुझे अधूरी सी याद है।

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