‘गजेन्द्र मोक्ष’

0
197

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

माँ कहती थी कि मेरे पाँव में चक्कर बना हुआ है, इसलिये मैं घूमता रहूँगा। 

तो क्या बड़ा होकर मैं गोल-गोल घूमूंगा? लेकिन गोल-गोल क्यों घूमूंगा, उससे तो मुझे चक्कर आने लगता है। फिर पाँव में चक्कर का मतलब क्या हुआ?

कल मैंने वाघा बार्डर की चर्चा की थी और आज मैंने सोचा था कि उस खूबसूरत लड़की की आँखों की कहानी बयाँ करूंगा, जो मुझे भारत-पाक की कंटीली सीमा के उस पार मिली थी, जिससे मैं कोई बात नहीं कर पाया था सिवाय उसकी तसवीर खींचने के और वो भी मुझसे एक शब्द नहीं बोल पायी थी, सिवाय मेरी तस्वीर लेने के।

उसने मेरी तस्वीर का क्या किया, मैं नहीं जानता पर मेरे लिए उसकी वो तस्वीर एक उपन्यास से भी अधिक बड़ी कहानी बन सकती है। 

कल मैं अचानक दिल्ली से मुंबई चला आया। सुबह से होटल में बैठ कर अपने कम्यूटर में उस लड़की की तस्वीर तलाश रहा था, जिसकी एक तस्वीर मेरे लिये पूरा उपन्यास है। काफी मशक्कत करने के बाद याद आया कि तस्वीर तो मैंने हार्ड डिस्क में ट्रांसफर कर दी है। मतलब तस्वीर दिल्ली में है और मैं मुंबई में। तो आज पाकिस्तानी लड़की की कहानी उधार रही। पर आज माँ की सुनायी गजेंद्र हाथी की कहानी याद आ रही है, मन कर रहा है कि आपको सुनाऊं, हालाँकि मैं जानता हूँ कि आपने ये कहानी जरूर सुनी होगी। फिर भी संजय सिन्हा की जुबानी सुन लीजिये-

एक हाथी था। उसका नाम था गजेंद्र। वो बहुत बड़ा था, बहुत ताकतवर था। उसका पूरा परिवार उससे बहुत प्यार करता था। उसके बच्चे, उसकी पत्नी सब उसकी बात मानते थे। गजेंद्र हाथी सबका ध्यान रखता था। 

एक बार गजेंद्र हाथी अपने बच्चों और पत्नी को साथ लेकर सरोवर में गया। वो अपनी सूंढ़ से बच्चों पर पानी फेंकता, उन्हें नहलाता, हंसाता। पूरा परिवार सरोवर में मस्ती कर रहा था। उस मस्ती में गजेंद्र को ध्यान नहीं रहा कि वह कितने गहरे पानी में उतरता चला जा रहा है। अचानक एक मगरमच्छ ने गजेंद्र का पाँव पकड़ लिया और उसे नीचे खींचने लगा। उसके बच्चों और पत्नी ने उसे छुड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। वो समझ गये कि मगरमच्छ से उसका बच पाना अब मुमकिन नहीं। बल्कि उन्हें ये डर भी लगने लगा कि कहीं और नीचे गये और किसी और मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया तो क्या होगा। ऐसे में बाकी सभी हाथियों ने गजेंद्र को छोड़ दिया और सरोवर से बाहर निकल कर चल पड़े। 

गजेंद्र ने बहुत सोचा। 

उधर गजेंद्र सोचता, इधर मैं सोचता। 

माँ इतनी कहानी सुना कर पता नहीं क्यों चुप हो जाती। मैं मन ही मन फड़फड़ाता कि उफ! कितनी तकलीफ में होगा गजेंद्र। उसका पाँव मगरमच्छ के मुँह में है और उसके परिजन उसका साथ छोड़ कर चले गये, उसे अकेला मरने के लिये छोड़ कर। 

फिर माँ कहती कि गजेंद्र ने भगवान को याद किया और भगवान ने गजेंद्र को मगर के मुँह से छुड़ाया और अपने साथ ले गये।

ऐसा कह कर माँ मेरी ओर देखती और ये यकीन दिलाने की कोशिश करती कि जिन्हें भगवान पर भरोसा होता है, वो हर मुसीबत से निकल जाते हैं। 

मैं छोटा था। मुझे लगता है कि अगर मैं बड़ा होता तो माँ इस कहानी को सुनाने के बाद ये भी कहती जो लोग जीवन की मस्ती में डूब कर माया रूपी गहरे पानी में उतरते ही चले जाते हैं, वो एक दिन मगर के मुँह में फंस जाते हैं और जब वो मगर के मुँह में फंस जाते हैं, तो उनके नाते-रिश्ते सब उन्हें छोड़ देते हैं। कोई किसी के बदले मरने को तैयार नहीं होता।

मैंने इस कहानी से ढेर सारे संदेश लिए थे। कुछ संदेश तो आपने भी लिये ही होंगे।

(देश मंथन, 20 मार्च 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें