Tag: nitish kumar
बिहार चुनाव के उलझे समीकरण
संदीप त्रिपाठी :
बिहार विधानसभा चुनाव की आहट सुनायी देने लगी है। चुनाव आयोग भी यह संकेत दे रहा है कि सितंबर-अक्टूबर में चुनाव होंगे।
बिहार भाग्य-विधाता?
श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार
जनता परिवार का विलय का अधर में पड़ जाना और आरजेडी-जेडीयू के बीच गठबन्धन की संभावना का कमजोर होना, केवल लालू, नीतीश के लिए ही नहीं बल्कि बीजेपी के लिए और खासतौर पर बिहार की जनता के लिए भी एक बुरी खबर है।
नहीं संभले तो मिट जायेंगे
श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :
शनिवार को भूकंप के झटके ने नेपाल में बड़े पैमाने पर तबाही मचायी। हजारों भवन ध्वस्त हो गये और 4,700 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इस भूकंप के झटके को पूरे उत्तर भारत में और सबसे ज्यादा बिहार में महसूस किया गया। बिहार में तीस से ज्यादा लोग मारे गये।
छहधड़ा पार्टी में अपनी-अपनी मलाई
संदीप त्रिपाठी :
जनता दल से निकले छह समाजवादी धड़े मोटा-मोटी 25 साल बाद फिर एकजुट हो गये। मुलायम सिंह यादव इस एकजुट धड़ा पार्टी के अध्यक्ष बनाये गये हैं। यह खबर पिछले पाँच महीने से घोषित हो रही है।
वर्ष 2015 और देश की लकीरें!
क़मर वाहिद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो आपका समय शुरू होता है अब! और ‘हॉट सीट’ पर हैं, नरेन्द्र मोदी, राहुल गाँधी, नीतीश कुमार और अरविन्द केजरीवाल! 2015 कोई मामूली साल नहीं है, जो हर साल की तरह बस आयेगा और चला जायेगा! यह लकीरों के बनने-बनाने और मिटने-मिटाने का साल है! इस साल को तय करना है कि देश किन लकीरों पर चलेगा?
सामाजिक न्याय की ताकतों की लीलाभूमि पर आखिरी जंग
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में पुराने जनता दल के साथियों का साथ आना बताता है कि भारतीय राजनीति किस तरह ‘मोदी इफेक्ट’ से मुकाबिल है।
ओय गुइयाँ, फिर जनता-जनता!
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
क्या करें? मजबूरी है! अभी ताजा मजबूरी का नाम मोदी है! यह जनता खेल तभी शुरू होता है, जब मजबूरी हो या कुर्सी लपकने का कोई मौका हो! इधर मजबूरी गयी, उधर पार्टी गयी पानी में!
हम सब तोते हैं – रंजीत सिन्हा
डॉ. मुकेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक :
सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के निवास पर मुलाकातियों वाले रजिस्टर में आपको मेरा नाम नहीं मिलेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने दो रजिस्टरों वाली व्यवस्था खत्म कर दी है।
अबकी बार, क्या क्षेत्रीय दल होंगे साफ?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
राजनीति से इतिहास बनता है! लेकिन जरूरी नहीं कि इतिहास से राजनीति बने! हालाँकि इतिहास अक्सर अपने आपको राजनीति में दोहराता है या दोहराये जाने की संभावनाएँ प्रस्तुत करता रहता है!
महाराष्ट्र-हरियाणा : मतदान से मतगणना तक
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
"मैंने सोचा था ये 'अमर प्रेम' जैसे संबंध हैं, लेकिन ये तो 'कटी पतंग' निकले।" मायानगरी से प्रभावित शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे यह कह कर भावुक से होने लगे।