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टाइम नहीं, घड़ी की पूछो
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मित्र सामने बैठे थे, लाखों की घड़ी पहने। मैं बिजी था, सिर्फ पैंतालीस मिनट तारीफ कर पाया महँगी घड़ी की।
गौवंश की रक्षा की योजना बतायें मोदी
संदीप त्रिपाठी :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा कि 80% गौरक्षक फर्जी हैं। हो सकता है, उनकी बात सही हो। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह देखा गया कि तमाम ऐसे तत्वों, जिनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा या हिंदूवादी विचारधारा से कोई संबंध नहीं था, न ही वे कभी मोदी समर्थक रहे, ने छोटे-छोटे संगठन बना लिये जिनके नाम में हिंदू या गाय शब्द जोड़ लिये। इन संगठनों के नाम में हिंदू प्रतीकों की आड़ में ये तत्व अनाप-शनाप कार्य करने लगे, जिनकी हवा न मोदी को थी, न भाजपा को, न संघ को। लेकिन इन संगठनों के कार्यों से ये लोग बदनाम होते रहे। दिलचस्प यह कि ऐसे कई संगठनों के कर्ता-धर्ता ऐसे लोग पाये गये जो भाजपा विरोधी संगठनों के पदाधिकारी रहे।
क्या विजय रुपानी को मिलेगा जन्मदिन का तोहफा?
राणा यशवंत, प्रबंध संपादक, इंडिया न्यूज :
आनंदी बेन ने पद छोड़ने की इच्छा फेसबुक पर ज़ाहिर की, यह अपनी तरह की पहली घटना है। गुजरात में भाजपा कई सवालों में है और अगर अगले साल वह गुजरात हारती है तो प्रधानमंत्री मोदी के लिए उनके पाँच साल के कार्यकाल की (मैं अगले ढाई साल भी जोड़ ले रहा हूँ) यह सबसे बड़ी हार होगी। और, 2019 की मोदी की लड़ाई को बहुत कमजोर भी करेगी।
क्या अल्लाह अपनी संतानों के खून से खुश होगा?
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
ईद के दिन हुए हमले के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक बार फिर कहा है कि "जो लोग ईद के दौरान भी हमले कर रहे हैं, वे इस्लाम और मानवता के दुश्मन हैं।" ईद और रमजान का हवाला देते हुए जब वे आतंकी हमलों की निंदा करती हैं, तो उनका यह मतलब कतई नहीं होता कि बाकी दिनों में हमले जायज हैं, जैसा कि सोशल मीडिया पर मजाक चल रहा है।
राजीव थे भारत के सबसे सांप्रदायिक प्रधानमंत्री!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मानसिक और वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुके जिन लोगों को 1984 के दंगों में 3 दिन के भीतर 3,000 लोगों का मार दिया जाना भीड़ के उन्माद की सामान्य घटना नजर आती है, उन्हीं लोगों ने, गुजरात दंगे तो छोड़िए, उन्मादी भीड़ द्वारा दादरी में सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या को देश में असहिष्णुता का महा-विस्फोट करार दिया था।
कांग्रेसजनों देश की प्रगति में हाथ बंटाओं
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
सोनिया और राहुल गाँधी ने जब यह आरोप लगाया कि नेशनल हेराल्ड वाले मामले में प्रधानमंत्री और भाजपा सरकार ने साजिशन उन्हें फँसाया है और वर्तमान एनडीए सरकार विरोधी दलों को मिटाना चाहती है तब मीडिया के मुँह में पाला क्यों मार गया था? मौके पर मौजूद रिपोर्टस ने क्यों नहीं माँ-बेटे से पूछा कि यह मामला तो तीन साल पुराना है और तब तो केंद्र और दिल्ली में आपकी ही सरकार थी, तो इसे भाजपा का किया धरा कैसे कहा जा रहा है?
कुछ नहीं करना भी एक फैसला है!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो प्रधानमंत्री आखिर दादरी पर भी बोले। मौका गुरुवार को दिन की उनकी आखिरी चुनावी रैली का था। इसके पहले वह दिन भर में बिहार में तीन रैलियाँ कर चुके थे। गोमांस पर लालू प्रसाद यादव के बयान पर खूब दहाड़े भी थे। 'यदुवंशियों के अपमान' से लेकर 'लालू की देह में शैतान के प्रवेश' तक जाने क्या-क्या बोल चुके थे वह! एक-एक कर तीन रैलियाँ बीतीं, दादरी पर नमो ने कोई बात नहीं की। लोगों ने सोचा कि कहाँ प्रधानमंत्री ऐसी छोटी-छोटी बातों पर बोलेंगे? अब यह नीतीश कुमार के ट्वीट का कमाल था या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले से तय किया था कि वह नवादा में दिन की अपनी आखिरी रैली में ही दादरी पर बोलेंगे, यह तो पता नहीं। खैर वह बोले! अच्छी बात है!
संघ के दरबार में सरकार!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
हाजिर हो! सरकार हाजिर हो! तो संघ के दरबार में सरकार की हाजिरी लग गयी! पेशी हो गयी! एक-एक कर मन्त्री भी पेश हो गये, प्रधान मन्त्री भी पेश हो गये! रिपोर्टें पेश हो गयीं! सवाल हुए, जवाब हुए। पन्द्रह महीने में क्या काम हुआ, क्या नहीं हुआ, आगे क्या करना है, क्यों करना है, कैसे करना है, क्या नहीं करना है, सब तय हो गया। तीन दिन, चौदह सत्र, सरकार के पन्द्रह महीने, संघ परिवार के अलग-अलग संगठनों के 93 प्रतिनिधियों की जूरी, हर उस मुद्दे की पड़ताल हो गयी, जो संघ के एजेंडे में जरूरी है!
रुठते परिंदे – 2002 में आखिरी बार आया था साइबेरियन क्रेन
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
विश्व पटल पर लंबे समय तक केवलादेव नेशनल पार्क की पहचान साइबेरियन क्रेन के कारण रही है। यहाँ हर साल साइबेरियन क्रेनों का जोड़ा सर्दियों से बचने के लिए और अपनी नई पीढ़ी को जन्म देने के लिए आया करता था। पर बदलते पर्यावरण के कारण एक वक्त आया जब साइबेरियन क्रेनों ने अपनी राह बदल ली। इस कदर रूठे कि दुबारा यहाँ का रुख नहीं किया।
तो कहाँ है वह संगच्छध्वम् ?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
चौदह के पन्द्रह अगस्त और पन्द्रह के पन्द्रह अगस्त में क्या फर्क है? चौदह में 'सहमति' का शंखनाद था, पन्द्रह में टकराव की अड़! याद कीजिए चौदह में लाल किले से प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी का पहला भाषण। संगच्छध्वम्! मोदी देश को बता रहे थे कि हम बहुमत के बल पर नहीं बल्कि सहमति के मजबूत धरातल पर आगे बढ़ना चाहते हैं। उस साल एक दिन पहले ही नयी सरकार के पहले संसद सत्र का सफल समापन हुआ था। मोदी इसका यश सिर्फ सरकार को ही नहीं, पूरे विपक्ष दे रहे थे! संगच्छध्वम्!