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रिश्तों का पाठ

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
बचपन में मुझे चिट्ठियों को जमा करने का बहुत शौक था। हालाँकि इस शौक की शुरुआत डाक टिकट जमा करने से हुई थी। लेकिन जल्द ही मुझे लगने लगा कि मुझे लिफाफा और उसके भीतर के पत्र को भी सहेज कर रखना चाहिए। इसी क्रम में मुझे माँ की आलमारी में रखी उनके पिता की लिखी चिट्ठी मिल गयी थी। मैंने माँ से पूछ कर वो चिट्ठी अपने पास रख ली थी। बहुत छोटा था, तब तो चिट्ठी को पढ़ कर भी उसका अर्थ नहीं पढ़ पाया था, लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया बात मेरी समझ में आती चली गयी।
अहंकार मिटाता है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कल मेरे दफ्तर में अनिल कपूर और जॉन अब्राहम आये थे। दोनों अलग-अलग गाड़ियों में थे। जॉन गाड़ी से पहले उतर गए, अनिल किसी से फोन पर बात कर रहे थे। मैं जॉन को लेकर गेस्ट रूम में चला गया और वहाँ उन्हें बिठा दिया। मैं उनसे चाय-कॉफी पूछ ही रहा था कि अपनी बात खत्म कर अनिल कपूर भी कमरे में चले आये।
मृत्यु घर वापसी?

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ को पता था कि वो अब इस संसार से चली जाएगी। लेकिन माँ विचलित नहीं थी। उसे मृत्यु का खौफ नहीं था। माँ मुझे समझाती थी कि मौत के बाद का संसार किसी को नहीं पता, लेकिन मैंने ऐसा महसूस किया है कि यह घर वापसी की तरह है।
मृत्यु घर वापसी?
तन्हाई : टूटते रिश्तों की आहट

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
अपने एक रिश्तेदार की तबीयत खराब होने पर कल मुझे अस्पताल जाना पड़ा।
मोदी मुहिम से पड़ोसियों के दिलों में उतरता भारत

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की सफल बंगलादेश यात्रा ने यह साबित कर दिया है कि अगर नेतृत्व आत्मविश्वास से भरा हो तो अपार सफलताएँ हासिल की जा सकती हैं। बंगलादेश से लेकर नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका तक अब नरेन्द्र मोदी की यशकथा कही और सुनी जा रही है।
अबूझ पहेली

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
हमारे फेसबुक परिजनों में एक हैं Shaitan Singh Bishnoi। मैंने एक दो बार जब कभी ये लिखा कि कृष्ण और द्रौपदी के बीच का रिश्ता कभी सखा-सखी का था, कभी भाई-बहन का और कभी प्रेमी-प्रेमिका का, तो शैतान सिंह जी ने मुझसे कहा कि मैं कभी न कभी इस बात की खुल कर चर्चा करूँ कि आखिर ऐसा कैसे संभव है कि एक ही स्त्री में कोई हर रूप को तलाश ले। यकीनन उन्हें पता होगा कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अर्जुन से ब्याही गयी थीं, इस तरह द्रौपदी भी कृष्ण की बहन लगीं।
गुणों का कंगाल होता है विलेन

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
हीरो की माँ, बहन और पत्नी या प्रेमिका तीनों खंभे से बंधी हुयी हैं। हीरो कई-कई पहलवानों से घिरा है।
अकेलापन है सजा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हमारे दफ्तर के एक साथी की पत्नी अपने दोनों बच्चों समेत पिछले हफ्ते भर से मायके गयी हैं।
जिस दिन मेरे साथी की पत्नी मायके जा रही थीं, वो बहुत खुश थे। उन्होंने दफ्तर में बाकायदा एनाउन्स किया कि अब वो दो हफ्ते छड़ा रहेंगे।
रिश्ते हैं, लेकिन कोई रिश्ता बचा नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कई साल पहले एक रात हमारे घर की घंटी बजी।
तब हम पटना में रहते थे। आधी रात को कौन आया?
पिताजी बाहर निकले। सामने दो लोग खड़े थे। एक पुरुष और एक महिला।
भरोसे की नाव पर चलते हैं ‘रिश्ते’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माइक्रोस्कोप से मेरा पहला पाला दसवीं कक्षा में पड़ा था। मेरे टीचर ने मुझे वनस्पति शास्त्र की पढ़ाई में पहली बार प्याज के एक छिलके को माइक्रोस्कोप में डाल कर दिखाया था कि देखो माइक्रोस्कोप में ये कैसा दिखता है।