Friday, November 15, 2024
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मोदी की कार्य शैली का समर्थन हूँ, अंध भक्त नहीं

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समर्थन में दलाई लामा जी का बयान जो एक मित्र ने हमारी पोस्ट के कमेंट में लगाया था। उसे मैंने अपनी वाल पर पोस्ट कर दिया। बहुमत संघ के पक्ष में था जो कमेंट्स आए पर कुछ लोगों को यह आपत्ति है कि धर्मगुरु दलाई लामा का यह बयान नहीं है और मुझे कोसा गया कि मैं अपने पत्रकारिता धर्म को भूल कर अंध भक्ति में लगा हुआ हूँ।

संघ मुक्त भारत का आह्वान : सपने मत देखिए नीतीश बाबू

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

जिस संघ के साथ दशकों नाता रहा, निजी महत्वाकांक्षा में अर्थात प्रधानमंत्री बनने की ललक में, उसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पानी पी-पी कर जिस तरह से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोसते हुए यहाँ तक कह दिया कि देश को संघ मुक्त करने के लिए सभी विपक्षी दल एक हों, उसे वाकई गिरी हरकत कहा जाएगा।

क्यों याद आ रहे हैं आम्बेडकर?

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

इतिहास के संग्रहालय से झाड़-पोंछ कर जब अचानक किसी महानायक की नुमाइश लगायी जाने लगे, तो समझिए कि राजनीति किसी दिलचस्प मोड़ पर है! इधर आम्बेडकर अचानक उस संघ की आँखों के तारे बन गये हैं, जिसका वह पूरे जीवन भर मुखर विरोध करते रहे, उधर जवाब में 'जय भीम' के साथ 'लाल सलाम' का हमबोला होने लगा है, और तीसरी तरफ हैदराबाद से असदुद्दीन ओवैसी उस 'जय भीम', 'जय मीम' की संगत फिर से बिठाने की जुगत में लग गये हैं, जिसकी नाकाम कोशिश किसी जमाने में निजाम हैदराबाद और प्रखर दलित नेता बी। श्याम सुन्दर भी 'दलित-मुस्लिम यूनिटी मूवमेंट' के जरिए कर चुके थे।

देश में संघ से बड़ा राष्ट्र भक्त कौन है

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का देश की राजधानी में हुआ एकता सम्मेलन और कुछ नहीं अपने दुश्मन नंबर एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी विचारधारा के ध्वज वाहक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिलाफत का मंच था, जहाँ इस संगठन के सदर मदनी साहब ने पानी पी-पी कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के नाम पर सरकार को कोसा तो एकता के नाम पर देश तोड़ने वाली हरकतों के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया। 

‘भक्त’, ‘अभक्त’ और कन्हैया!

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

'भक्त' और 'अभक्त' में देश विभक्त है! और तप्त है! इक्कीस महीनों से इक्कीसवीं सदी के इस महाभारत का चक्रव्यूह रचा जा रहा था। अब जा कर युद्ध का बिगुल बजा। लेकिन चक्रव्यूह में इस बार अभिमन्यु नहीं, कन्हैया है। तब दरवाजे सात थे, इस बार कितने हैं, कोई नहीं जानता! लेकिन युद्ध तो है, और युद्ध शुरू भी हो चुका है। यह घोषणा तो खुद संघ की तरफ से कर दी गयी है। संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी का साफ-साफ कहना है कि देश में आज सुर और असुर की लड़ाई है।

ताकि रोज का यह टंटा खत्म हो!

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

बात गम्भीर है। खुद प्रधानमंत्री ने कही है, तो यकीनन गम्भीर ही होगी! पर इससे भी गम्भीर बात यह है कि प्रधानमंत्री की इस बात पर ज्यादा बात नहीं हुई। क्योंकि देश तब कहीं और व्यस्त था। उस आवेग में उलझा हुआ था, जिसके बारूदी गोले प्रधानमंत्री की अपनी ही पार्टी के युवा संगठन ने दाग़े थे! भीड़ फैसले कर रही थी। सड़कों पर राष्ट्रवाद की परिभाषाएँ तय हो रही थीं। पुलिस टीवी कैमरों के सामने हो कर भी कहीं नहीं थी। टीवी कैमरों को सब दिख रहा था। पुलिस को कुछ भी नहीं दिख रहा था। दुनिया अवाक् देख रही थी। लेकिन इसमें हैरानी की क्या बात? क्या ऐसा पहले नहीं हुआ है? याद कीजिए!

खुल कर सामने आएं ना?

देवेन्द्र शास्त्री :

हमने आरएसएस और दक्षिण पंथियों का झूठ और छलावा पढ़ा और देखा है। वो पचास साल तक सत्ता के गलियारों में झाँक भी नहीं सके। अब जाकर उन्हें समझ में आयी कि सच स्वीकार किए बिना काम नहीं चलने वाला। तो कुछ सच उन्होंने स्वीकार कर लिए जैसे गाँधी, पटेल को अपना लिया, नेहरु के योगदान को भी मानने लगे हैं। और फिलहाल गोडसे को त्याग दिया। हाँ लेकिन मंदिर मस्जिद, हिंदू-मुसलमान, अदानी-अंबानी चल रहा है। मजदूर और किसान आज भी उनकी प्राथमिकता पर नहीं है। ठीक है, दो साल और हैं, देखते हैं क्या करते है। पर यहाँ मैं उनकी बात नहीं कर रहा। वो तो पहले से कुख्यात हैं, जैसे भी हैं, सामने हैं। ढका-छुपा अब कुछ नहीं। मैं बात कर रहा हूँ तथाकथित सेकुलर्स की।

मोदी के कौशल की पहली परीक्षा!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार 

दिल्ली में नरेन्द्र मोदी के कौशल की पहली परीक्षा अब है! उनके राजनीतिक जीवन की शायद अब तक की सबसे बड़ी चुनौती उनके सामने है! और शायद पहली भी! इस मामले में मोदी वाकई भाग्यशाली रहे हैं। मुझे नहीं याद पड़ता कि इससे पहले कभी उनके सामने कोई चुनौती आयी भी हो!

अब फर्जी सेक्युलर सिखाएँगे सहिष्णुता का पाठ

अभिरंजन कुमार :

चीन में यह भी कम्युनिस्ट ही तय करते हैं कि लोग कितने बच्चे पैदा करें। वहाँ की कम्युनिस्ट सरकार ने 36 साल बाद अपने नागरिकों को दो बच्चे पैदा करने की इजाजत दी है। वहाँ पहले एक ही बच्चा पैदा करने की इजाजत थी। दंपति दूसरा बच्चा तभी पैदा कर सकते थे, जब पहली संतान लड़की हो।

तब बहुत बदल चुका होगा देश!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :

तीन कहानियाँ हैं! तीनों को एक साथ पढ़ सकें और फिर उन्हें मिला कर समझ सकें तो कहानी पूरी होगी, वरना इनमें से हर कहानी अधूरी है! और एक कहानी इन तीनों के समानान्तर है। ये दोनों एक-दूसरे की कहानियाँ सुनती हैं और एक-दूसरे की कहानियों को आगे बढ़ाती हैं और एक कहानी इन दोनों के बीच है, जिसे अक्सर रास्ता समझ में नहीं आता। और ये सब कहानियाँ बरसों से चल रही हैं, एक-दूसरे के सहारे! विकट पहेली है। समझ कर भी किसी को समझ में नहीं आती!

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