Tag: Sanjay Sinha
मकान ले लो, मकान
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे मित्र को एक मकान चाहिए। वैसे दिल्ली में उनके पिता जी ने एक मकान बनवाया है और अब तक वो उसमें उनके साथ ही रह रहे थे। लेकिन कुछ साल पहले उनकी शादी हो गयी और उन्हें तब से लग रहा है कि उन्हें अब अलग रहना चाहिए। मैंने अपने मित्र से पूछा भी कि पिताजी के साथ रहने में क्या मुश्किल है?
रिश्तों में निवेश कीजिए
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
चार साल पहले भी मेरा नाम संजय सिन्हा था। लेकिन तब मैं संजय सिन्हा की जिंदगी जीता था।
रिश्तों के बारे में आत्ममंथन करें
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे अपने परिचित से पूछना ही नहीं चाहिए था कि तुम्हारी मौसी कहाँ चली गईं? मैंने पूछ कर बहुत बड़ी गलती की और उस गलती का खामियाजा ये है कि आज कुछ लिखने का मन ही नहीं कर रहा है। रात भर सोने का उपक्रम करता रहा, करवटें बदलता रहा। फिर लगा कि आपसे इस बात को साझा कर लूं, शायद मेरा दुख थोड़ा कम हो जाए।
अगर…
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी कहानियाँ आप अपने बच्चों को भी सुनाते हैं न?
हमारी खुशी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
गाँव का एक आदमी मुंबई गया था और वहाँ वो ऊंची-ऊंची इमारतों को देख कर हैरान था।
माँ
कमाई में सफेदी की दरकार
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बहुत तेज बर्फबारी और कड़ाके की ठंड के बीच मैं अमेरिका के बफैलो एयरपोर्ट पर खड़ा था। मुझे वहाँ से फ्लोरिडा जाना था। आमतौर पर हम कहीं भी आते-जाते हैं तो पहले से विमान का टिकट खरीद चुके होते हैं, होटल और टैक्सी वगैरह की बुकिंग करा चुके होते हैं।
कहानी इत्तेफाक की
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुनिए, आज एक कहानी इत्तेफाक की सुनिए। आज एक लड़का और एक लड़की की कहानी सुनिए।
दुश्मन को मारने से पहले अपनी चारदीवारी को मजबूत करो
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हो सकता है आप में से कुछ लोग 11 सितंबर 2001 को न्यूयार्क में हुए आतंकवादी हमले के चश्मदीद रहे हों। हो सकता है बहुत से लोग न रहे हों। लेकिन मैं रहा हूँ। मैंने 11 सितंबर 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले को बहुत करीब देखा और जिया है। मैं चश्मदीद हूँ उस हमले का और हमले में मरे दस हजार लोगों के शव का।
पुत्रों के शव को कंधों पर उठाने का अफसोस करना है, तो युद्ध से पहले सोचें
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
“सुनो कृष्ण, क्या तुम जानते हो कि इस संसार में सबसे बड़ा बोझ क्या है?”
“आप ही कहें, धर्मराज।”