Tag: Sanjay Sinha
अपनों के लिये जियें, सामान के लिये नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
दो हफ्ते बाद हम नये घर में शिफ्ट हो जाएँगे। नया घर, नया संसार।
पत्नी की वर्षों पुरानी मुराद पूरी हुई। हम एक ऐसे घर में शिफ्ट हो जाएँगे, जहाँ ज्यादा जगह होगी, जहाँ लिफ्ट होगी, जहाँ स्विमिंग पूल होगा, जहाँ अपना गार्डेन होगा। वो सब होगा, जिसकी उसे चाहत थी।
इज्जत दो, इज्जत बढ़ेगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ड्राइवर गाड़ी चला रहा था, मैं अपनी पत्नी के साथ पीछे बैठा था।
कल बहुत दिनों के बाद पत्नी के बार-बार कहने पर मैं नया मकान देखने जा रहा था। मैंने पहले भी आपको बताया है कि पत्नी का कहना है कि मुझे बड़े घर में शिफ्ट होना चाहिए। एक ऐसे घर में जहाँ मेरे सोने के लिए अलग कमरा हो, पढ़ने के लिए अलग। जहाँ चार मेहमान अगर आ जाएँ, तो हम ठीक से उनकी मेहमानवाजी कर पाएँ।
माँ सत्य है, माँ सार्वभौमिक है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं अपनी माँ का बेटा हूँ।
कल मुझसे किसी ने पूछ लिया कि मेरी माँ का क्या नाम था। मैं थोड़ी देर तक सोचता रहा। मेरी माँ का नाम क्या था? क्या माँ का भी कोई नाम होता है? नाम तो पिता का होता है। पिता को नाम की जरूरत होती है। पिता को प्रमाण की जरूरत होती है। माँ तो सत्य है। माँ सार्वभौमिक है।
रिश्तों में ईमानदारी रखें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं रिश्तों की कहानियाँ लिखता हूँ। जो मुझसे मिलता है, मैं उसे बताता हूँ कि एक दिन आदमी के पास सबकुछ होगा, लेकिन वो तन्हा होगा। मैं जहाँ जाता हूँ, सबसे यही कहता हूँ कि अपने रिश्तों को पहचानिए, उनकी कद्र कीजिए। रिश्ते हैं, तो सब-कुछ है।
प्यार के दीप

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कभी-कभी हर आदमी की इच्छा अतीत में लौटने की होती है।
रिश्ते दिल मिला कर बनते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी शादी तय हो चुकी थी। मुझे पता था कि मेरी होने वाली पत्नी का नाम दीपशिखा है। पर आगे क्या?
दिल में दिमाग वालों से डर लगता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बहुत साल पहले हम पटना से भोपाल एक शादी में शामिल होने गए थे। मैं, मेरा छोटा भाई, मेरी बहन, मेरे चचेरे, ममेरे, फुफेरे और ढेरों भाई-बहन हम वहाँ उस शादी में मिले थे। हम बच्चों का दिल आपस में ऐसा लग गया था कि हमें लगता था कि ये शादी कभी खत्म ही न हो।
रावण तुम्हें मर ही जाना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये कहानी है गीता की। ये कहानी है परी की। ये कहानी है हैवानियत की। ये कहानी है इंसानियत की।
रिश्तों को जीने वाले आँखों से जीते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे एक फेसबुक परिजन ने मुझसे शिकायत की कि संजय सिन्हा आप बहुत झूठ बोलते हैं।
रिश्तों की विरासत

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा के मन में सुबह-सुबह लड्डू क्यों फूट रहे हैं। तो मैं आज आपको ज्यादा नहीं उलझाऊँगा।



संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :





