रिश्तों में ईमानदारी रखें

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैं रिश्तों की कहानियाँ लिखता हूँ। जो मुझसे मिलता है, मैं उसे बताता हूँ कि एक दिन आदमी के पास सबकुछ होगा, लेकिन वो तन्हा होगा। मैं जहाँ जाता हूँ, सबसे यही कहता हूँ कि अपने रिश्तों को पहचानिए, उनकी कद्र कीजिए। रिश्ते हैं, तो सब-कुछ है। 

जो आदमी रिश्तों में दूसरों से बेइमानी करता है, वो शायद समझ नहीं पाता कि हकीकत में वो खुद से बेइमानी करता है। 

अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा, आज कहाँ की बातें ले कर बैठ गए।

दरअसल पिछले दो दिनों में मैंने टीवी पर दो सीरियल देखे। 

दोनों सीरियल की कहानी मेरे मन में जुड़ कर एक हो गयी है। आज मैं दोनों की चर्चा आपसे करूँगा। 

एक सीरियल का नाम है, ‘डेस्परेट हाउसवाइव्स’। मैं जिस कहानी की चर्चा आज आपसे करने जा रहा हूँ, उसमें होटल में साफ-सफाई का काम करने वाली एक महिला होटल में आयी एक महिला को अपनी राम कहानी सुनाती है और उससे कहती है कि मुहब्बत में झूठ और धोखा दोनों जिन्दगी को तबाह कर देते हैं। जो महिला होटल में बतौर अतिथि आयी है वो अपने पति को धोखा देते हुए, अपने प्रेमी के साथ एक रात होटल में गुजारना चाहती है। जिस वक्त वो होटल पहुँचती है, उसी वक्त उसके पति का फोन उसके पास आ जाता है और वो झूठ बोलती है कि वो कहीं बाजार में है और जल्दी ही वापस आ जाएगी। 

फोन पर उसकी बातें कमरे की सफाई कर रही महिला सुन लेती है और उसे बताती है कि कभी वो भी जिन्दगी को पूरे खिलंदड़पन से जीती थी। उसके लिए स्त्री-पुरुष के रिश्तों का मतलब मौज-मस्ती था। 

पर जिन्दगी के मुकाम पर वो एक दिन सबकुछ खो बैठी। उसका सारा वैभव जाता रहा है। वो अपनी ही निगाहों में गिर गयी। वो अपने अनुभव उस अतिथि महिला से साझा करती है और कहती है, “मैडम, आप ऐसा मत कीजिए। प्रेम में धोखा देने के बाद न पति का साथ रहता है, न प्रेमी का।”

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अंग्रेजी चैनल के बाद मैं हिंदी चैनल जिन्दगी पर आया। वहाँ सीरियल ‘आधे-अधूरे’ चल रहा था। 

जो लोग इस सीरियल को लगातार देख रहे हैं, वो जानते हैं कि सीरियल की नायिका ‘जस्सी’ का पति शारजाह में रहता है और जस्सी का अपने देवर के साथ अवैध संबंध है। कल रात उसकी सास ने अपनी बड़ी बहू को अपने छोटे बेटे के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया और उसका दिल बैठ गया। फिर बहू से उसकी थोड़ी तकरार हुई और मामूली खींच-तान में सास सीढ़ियों से गिर गयी और मर गयी। 

पूरा परिवार साथ बैठा है। सभी एक दूसरे को सांत्वना दे रहे हैं। लोग नहीं जानते कि सच क्या है। लोग ये जानते हैं कि सास-बहू में माँ-बेटी का रिश्ता रहा है। ऐसे में लोग बहू को सांत्वना दे रहे हैं। सास के चले जाने पर अफसोस जता रहे हैं। 

पर मैं इस सीरियल को देखते हुए लगातार यही सोचता रहा कि यह तो हत्या है। सास की हत्या। एक ऐसी हत्या, जिसका सच कभी सामने नहीं आएगा। कानून जिसकी सजा कभी किसी को नहीं दे पाएगा। 

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पर ऐसा नहीं है। सजा मिलेगी। वह सजा भी एकाकीपन की होगी। रिश्तों के ऐसे अपराध में आदमी कानून की निगाह में सजा से बच जाता है, पर मन के निगाह की सज़ा से नहीं बचता। 

होटल में काम करने वाली महिला जब कहती है कि प्रेम में धोखा का अर्थ होता है कि एक दिन न प्रेम रहेगा, न रिश्ता तो इसके बहुत मायने हैं। 

मुझे लगता है कि रिश्तों में धोखा अब संक्रामक होता जा रहा है। हम में से बहुत से लोग इस दोराहे से गुजरने का जोखिम उठा लेते हैं और फिर जब उलझ जाते हैं, तो समझ में नहीं आता कि किधर जाएँ। 

कहानियाँ सिर्फ कहानियाँ नहीं होतीं। किसी न किसी की जिन्दगी की हकीकत भी होती है। जिन कहानियों को पढ़ कर, देख कर हम हंसते हैं, रोते हैं। उन कहानियों से हम सबक नहीं लेते। हम कहानियों पर चर्चा भी कर लेते हैं, पर हम उसके हश्र को अपना हश्र नहीं मानते। 

मानिए। उसे अपना हश्र मानिए। जो लोग इस बात को नहीं समझ पाते कि रिश्तों में की जाने वाली बेइमानी की सीढ़ी पिछले दरवाजे पर जाकर खुलती है, और उसकी मंजिल बदनामी, तबाही, दुख, शोक और अकेलेपन जैसी बीमारी होती है, उनके लिए ऐसी कहानियाँ किसी पाठ्यक्रम से कम नहीं। इत्तेफाक से हमारे यहाँ जितनी फिल्में और टीवी सीरियल बन रहे हैं, सभी में कमोबेश रिश्तों के इन्ही द्वंद्व की बानगी होती है। 

अगर हम रिश्तों की इन चलताऊ कहानियों को भी सबक मान लें तो लौटने की गुंजाइश बचती है। आप अपने रिश्तों में लौटने की गुंजाइश बचा कर रखिए। आप अपने रिश्तों में ईमानदारी को एक पाठ की तरह शामिल करने की कोशिश कीजिए। 

अगर किसी टीवी सीरियल की कहानी का हिस्सा आप बन बैठे हैं, तो दोराहे पर रुकिए, किसी से पूछ लीजिए की भैया, ये रास्ता किधर को जाता है। याद रखिए बहुत दूर निकल जाने के बाद वापसी की गुंजाइश खत्म हो जाती है। 

सीरियल ‘आधे-अधूरे’ हों तो चल जाता है, जिन्दगी तो संपूर्ण ही होनी चाहिए। 

रिश्तों को निभाने में दूसरों के लिए आप चाहे जो सोचें, पर खुद के लिए तो ईमानदार होना ही चाहिए। 

छल की त्रासदी ये है कि जो उसे बोता है, अंत में उसे ही उसे काटना भी पड़ता है। 

(देश मंथन, 20 मार्च 2016)

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