Tag: Sanjay Sinha
हेल्थ बना व्यापार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले दिनों मैं सिंगापुर गया था। वहाँ मुझे एक कांफ्रेंस में शामिल होने का मौका मिला, जिसमें भारत के तमाम बिजनेसमैन आये थे।
व्यापारियों की उस बैठक में मुझे कुछ बोलना नहीं था, सिर्फ सुनना था।
भूमि नहीं, मन बंजर होता है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कहानी क्या होती है?
घटनाओं का ब्योरा? नहीं। घटनाओं का ब्योरा तो रिपोर्टिंग हो गयी। रिपोर्टिंग मतलब, जो देखा उसे बयाँ कर दिया।
जैसी सोच वैसा जीवन

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आपने दो बैलों की कथा पढ़ी होगी। आपने दो शहरों की कहानी भी पढ़ी होगी।
आज मैं आपको दो चिट्ठियों की कहानी सुनाता हूँ। मैंने आपसे कहा था न कि पिछले दिनों घर से फालतू कागजों की सफाई में मेरी यादों का लंबा पुलिंदा खुल गया। उन्हीं यादों में से मैं आज आपके लिए ख़ास तौर पर लेकर आया हूँ, दो चिट्ठियों की कहानी।
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यादों की लहरें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मुझे बचपन में तैरना नहीं आता था, लेकिन अमेरिका में जब मैं अपने बेटे को स्वीमिंग क्लास के लिए ले जाने लगा, तो मैंने उसके कोच की बातें सुन कर तैरने की कोशिश की और यकीन मानिए, पहले दिन ही मैं स्वीमिंग पूल में तैरने लगा।
प्रेम एक विश्वास और भरोसा है
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी समझ में आज तक ये बात नहीं आयी कि क्यों मेरी कुछ पोस्ट को तीन हजार लाइक मिलते हैं, और कुछ पोस्ट को सिर्फ पाँच सौ लाइक।
आधुनिकता में अकेलापन

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कल शाम मैं सिंगापुर के एक रेस्त्रां में बैठा था।
मेरा मन पिज्जा खाने का था। आर्किड रोड पर हल्की बारिश के बीच मैंने उस इटालियन रेस्त्राँ में बैठ कर पिज्जा का ऑर्डर किया। मेरे ठीक बगल वाली मेज पर एक दंपति बैठे थे। उन्होंने भी पिज्जा ऑर्डर किया था। मैं मन ही मन सोच रहा था कि यहाँ के लोग कितने खुश रहते हैं। पति-पत्नी या दोस्त शाम को साथ घूमने निकलते हैं, साथ बैठते हैं, डिनर करते हैं।
चाहत में शिद्दत हो तो कुछ भी असंभव नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरा नाम एंजो फेरारी नहीं है। मेरा नाम संजय सिन्हा है।
पर एंजो फेरारी की माँ भी एंजो को वैसे ही कहानियाँ सुनाया करती थीं, जैसे मेरी माँ मुझे सुनाया करती थी।
वादे इसीलिए करते हैं ताकि उन्हें पूरा कर सकें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे दफ्तर में कल एक लड़की मेरे पास आयी और उसने मुझसे पूछा कि आप किसी की शादी में शामिल होने पटना गये थे?
“हाँ, मैं अपनी एक दोस्त के बेटे की शादी में शामिल होने पटना गया था।”
मन चंगा तो कठौती में गंगा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक बार एक व्यक्ति की शिकायत हुई कि वो बहुत गाली देता है।
शिकायत की सुनवाई के लिए उस व्यक्ति को बुलाया गया। उसे बताया गया कि तुम अपनी बातचीत में बहुत गाली देते हो। व्यक्ति भड़क गया। उसने बिगड़ते हुए कहा, "कौन साला, कुत्ते का बच्चा कहता है कि मैं बहुत गालियाँ देता हूँ। तुम एक भी ऐसा आदमी लेकर आओ, जो ये कह सके कि मैंने कभी किसी को गाली दी हो। ये मेरे खिलाफ सरासर झूठा आरोप है।"
बेटियों को हक है खुश होने का

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने पहली बार जब शहनाई की आवाज सुनी थी, तब मैं मेरी उम्र आठ साल रही होगी। दीदी का शादी तय हो गयी थी और घर में उत्सव का माहौल था।
जिस दिन दीदी की शादी होने वाली थी, दो शहनाई वाले छत पर बैठ कर पूँ-पूँ बजा रहे थे। मुझे राग का ज्ञान नहीं था, लेकिन उनके मुँह से लगी शहनाई से जो आवाज निकल रही थी, वो दिल के किसी कोने में मोम बन कर पिघलती सी लग रही थी।



संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :





