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श्री लगाने भर से कोई श्रीमान नहीं हो जाता सुव्रत राय
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
विद्यार्थी जीवन में जब मैं हरिश्चंद्र इंटर कालेज में कक्षा छह का विद्यार्थी था तब अंग्रेजी के अध्यापक महाशय ने बताया था प्रापर नाउन और कामन नाउन के बारे में। पता नहीं क्यों उन्होंने एक बात कही थी- " कामन नाउन से प्रापर नाउन बनाया जा सकता है"। हमने यह सुन कर सीखा।
वो बात ना रही
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
अगर आपके मुँह से यह बात लगातार निकल रही हो तमाम चीजों को देखकर कि वो बात ना रही, तो समझिये कि आप बुजुर्ग हो रहे हैं या फिर आपके इर्द गिर्द लोगों के मुँह से यही निकल रहा हो कि वो बात नहीं रही, तो समझिये कि आपकी उठक बैठक बुजुर्गों में हो रही है।
मोटर के छींटे
प्रेमचंद :
क्या नाम कि... प्रात:काल स्नान-पूजा से निपट, तिलक लगा, पीताम्बर पहन, खड़ाऊँ पाँव में डाल, बगल में पत्रा दबा, हाथ में मोटा-सा शत्रु-मस्तक-भंजन ले एक जजमान के घर चला। विवाह की साइत विचारनी थी। कम-से-कम एक कलदार का डौल था। जलपान ऊपर से। और मेरा जलपान मामूली जलपान नहीं है। बाबुओं को तो मुझे निमन्त्रित करने की हिम्मत ही नहीं पड़ती।