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अभिलाषा
प्रेमचंद :
कल पड़ोस में बड़ी हलचल मची। एक पानवाला अपनी स्त्री को मार रहा था। वह बेचारी बैठी रो रही थी, पर उस निर्दयी को उस पर लेशमात्र भी दया न आती थी। आखिर स्त्री को भी क्रोध आ गया। उसने खड़े होकर कहा, बस, अब मारोगे, तो ठीक न होगा। आज से मेरा तुझसे कोई संबंध नहीं। मैं भीख माँगूँगी, पर तेरे घर न आऊँगी। यह कहकर उसने अपनी एक पुरानी साड़ी उठाई और घर से निकल पड़ी। पुरुष काठ के उल्लू की तरह खड़ा देखता रहा।
झुक जाना मूर्खता नहीं, जीतने के लिए तनना बेवकूफी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक
भोपाल में मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था। नाम था आलोक।
आलोक बहुत मिलनसार और विनम्र था। हम दोनों हमीदिया कॉलेज में साथ पढ़ते थे। आलोक की दिलचस्पी राजनीति में थी, मेरी पत्रकारिता में। दुबला-पतला आलोक जब किसी से मिलता तो हमेशा मुस्कुराता हुआ मिलता। कुछ लोग उसकी शिकायत भी करते, पर वो कभी किसी की बुराई नहीं करता। मैं कभी-कभी हैरान होता और उससे पूछता कि आलोक तुम्हें कभी कोई बात बुरी नहीं लगती?
मौन और मुस्कुराहट
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
नीरो कभी बाँसुरी नहीं बजाता था। उसे बाँसुरी बजानी भी नहीं आती थी। जिसे बाँसुरी बजानी आयेगी, वह नीरो नहीं हो सकता।
बालकनी में बैंगन
विनीत कुमार, मीडिया आलोचक:
लंबे इन्तजार और रूटीन से पानी देते रहने के बावजूद गमले में लगाये बैंगन के पौधे पर जब फूल आने पर भी एक भी बैंगन नहीं आया तो मैं हार गया..फिर तो पानी देने का भी मन न होता.. वैसे भी मेरे घर में सप्लाई, टंकी, पाइप को लेकर पता नहीं कौन सा राज रोग है कि पानी की किल्लत बनी रहती है, लेकिन