Sunday, June 8, 2025
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ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज एक सुनी सुनाई कहानी सुनाता हूँ। 

वैसे भी कई लोगों ने मुझे फेसबुक वाला बाबा बुलाना शुरू कर दिया है। बाबा क्यों, ये मुझे नहीं पता। मेरे तो बाल भी अभी सफेद नहीं हुए पर कुछ लोगों को लगता है कि ज्ञान देने वाला बाबा ही होता है। मुमकिन है टीवी पर तमाम बाबाओं को ऐसी बातें करते देख उनके मन में ये भाव आया हो कि ज्ञान तो बाबा ही देते हैं।

किसानों का शहर

निभा सिन्हा :

आषाढ़ महीना का पूरा एक पक्ष निकल गया, मतलब कुल पंद्रह दिन, लेकिन बारिश की बूँदें गिन कर ही बरसी हैं इस बार भी। खबर मिली है गाँव से कि धान के बीज जल गये कई लोगों के इस बार भी। मुझे पता नहीं क्यूँ, नगीना बाबा बहुत याद आ रहे हैं।

जिन्दगी अपनी पसंद की होनी चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बेटे ने जिद पकड़ ली थी कि उसे डायनासॉर वाला खिलौना चाहिए। 

डायनासॉर वाला खिलौना बच्चों की पसंद बना हुआ था। वो बैट्री से चलता था, कुछ दूर चल कर रुकता और फिर मुँह से अजीब सी आवाज निकाल कर धुआँ छोड़ता। 

जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा अच्छा होगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

सच में मेरा मन बदल गया आज पोस्ट लिखते-लिखते। मैंने सोचा था कि आज इंग्लैंड की सिमरन की कहानी आपको सुनाऊंगा। सुबह नींद खुलते ही मेरे मन में कहानी का ताना-बाना बुन जाता है। मैंने बहुत बार कोशिश की है कि कभी एक रात पहले ही लिख कर सो जाऊं, ताकि सुबह मुझे जल्दी न जगना पड़े, लेकिन मेरे चाहने से ऐसा नहीं होता। मेरी उंगलियाँ रुक जाती हैं, कहानी आगे बढ़ती ही नहीं। 

ईश्वर के यहाँ कुछ नहीं छिपता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज मैं जो कुछ लिखने जा रहा हूँ, उस पर मुझे पहले से पूरा यकीन था, लेकिन मैं तब तक इस पर कुछ कह नहीं सकता था, जब तक कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार मेरे पास उपलब्ध नहीं होता। आज मेरे पास वैज्ञानिक आधार उपलब्ध है।

शादी की बंजर भूमि पर प्यार के फूल खिलाओ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक पिता और पुत्र ट्रेन में सफर कर रहे थे। पिता पुत्र से कहता नंबर तीन और दोनों जोर-जोर से हँसने लगते। दोनों की हँसी थमती और फिर पुत्र कहता नंबर सात। पुत्र के मुँह से नंबर सात निकला नहीं कि दोनों पेट पकड़ कर हँसने लगते। 

बेटों को सबक, पिताओं को उम्मीद

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक 

1 मार्च, 1988

मालवा एक्सप्रेस तय समय पर नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर रुकी थी। उसमें से एक दुबला-पतला लड़का हाथ में लोहे का बक्सा लिए नीचे उतरा था। 

जब तपस्या (बेटा) शाप बन जाए

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कल मैंने वादा किया था कि उस बच्चे की कहानी जरूर सुनाऊँगा, जिसकी कहानी मैंने चौथी कक्षा में पढ़ी थी। 

गृह-नीति

प्रेमचंद :

जब माँ, बेटे से बहू की शिकायतों का दफ्तर खोल देती है और यह सिलसिला किसी तरह खत्म होते नजर नहीं आता, तो बेटा उकता जाता है और दिन-भर की थकान के कारण कुछ झुँझलाकर माँ से कहता है, 

बेटे नहीं होने से वंश खत्म नहीं होता

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कभी-कभी हम किसी के मुँह से ऐसा कुछ सुन लेते हैं कि मन खिल उठता है।

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