Friday, November 22, 2024
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भूत

प्रेमचंद : 

मुरादाबाद के पंडित सीतानाथ चौबे गत 30 वर्षों से वहाँ के वकीलों के नेता हैं। उनके पिता उन्हें बाल्यावस्था में ही छोड़कर परलोक सिधारे थे। घर में कोई संपत्ति न थी। माता ने बड़े-बड़े कष्ट झेलकर उन्हें पाला और पढ़ाया। सबसे पहले वह कचहरी में 15) मासिक पर नौकर हुए। फिर वकालत की परीक्षा दी। पास हो गये। प्रतिभा थी, दो-ही-चार वर्षों में वकालत चमक उठी। जब माता का स्वर्गवास हुआ तब पुत्र का शुमार जिले के गण्यमान्य व्यक्तियों में हो गया था।

जय भारत। जय पाकिस्तान। जय बांग्लादेश।

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

जब आप "भारत की बर्बादी के नारे" लगाएँ और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" बोलें, तब यह देशद्रोह है, लेकिन अगर आप "भारत जिन्दाबाद" और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" दोनों साथ-साथ बोलें और दोनों देशों की तरक्की की कामना करें, तो यह इस उप-महाद्वीप में शांति और सौहार्द्र की हमारी आकांक्षा है।

मन चंगा तो कठौती में गंगा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

एक बार एक व्यक्ति की शिकायत हुई कि वो बहुत गाली देता है। 

शिकायत की सुनवाई के लिए उस व्यक्ति को बुलाया गया। उसे बताया गया कि तुम अपनी बातचीत में बहुत गाली देते हो। व्यक्ति भड़क गया। उसने बिगड़ते हुए कहा, "कौन साला, कुत्ते का बच्चा कहता है कि मैं बहुत गालियाँ देता हूँ। तुम एक भी ऐसा आदमी लेकर आओ, जो ये कह सके कि मैंने कभी किसी को गाली दी हो। ये मेरे खिलाफ सरासर झूठा आरोप है।"

आत्मा से रिश्ता

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक पिता ने मुझसे गुहार लगायी है कि मैं उनके बेटे को समझाऊँ। बेटा पिता की बात नहीं सुनता। वो पिता के साथ अभद्र व्यवहार करता है। मैंने सोच लिया था कि मैं चौथी कक्षा में पढ़ी वो कहानी उसे जरूर सुनाऊँगा, जिसे पढ़ते हुए मैं बहुत गहरी सोच में डूब जाया करता था।

प्रधानमंत्री की खामोशी के अर्थ-अनर्थ

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय  :

तय मानिए यह देश नरेंद्र मोदी को, मनमोहन सिंह की तरह व्यवहार करता हुआ सह नहीं सकता। पूर्व प्रधानमंत्री मजबूरी का मनोनयन थे, जबकि नरेंद्र मोदी देश की जनता का सीधा चुनाव हैं। कई मायनों में वे जनता के सीधे प्रतिनिधि हैं। जाहिर है उन पर देश की जनता अपना हक समझती है और हक इतना कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे अपनी व्यस्तताओं के बीच भी हर छोटे-बड़े प्रसंग पर संवाद करें, बातचीत करें।

जनता परिवार : आर्थिक – पारिवारिक फोरम

सुशांत झा, पत्रकार : 

जनता परिवार के विलय में वहीं भावना छुपी है, जो आखिरी घड़ी में दिल्ली बीजेपी में किरण बेदी की ताजपोशी में छुपी थी।

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