Wednesday, April 16, 2025
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प्यार, स्नेह और मान दें रिश्तों में प्रेम के अंकुर फूटेंगे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैं एक बहू से मिला हूँ। मैं एक सास से मिला हूँ।

दोनों में नहीं बनती। क्यों नहीं बनती मुझे नहीं पता। बहू का कहना है कि सास हर पल उसे नीचा दिखाती हैं।

सास कहती हैं कि बहू उसे पूछती नहीं।

ईश्वर के यहाँ कुछ नहीं छिपता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज मैं जो कुछ लिखने जा रहा हूँ, उस पर मुझे पहले से पूरा यकीन था, लेकिन मैं तब तक इस पर कुछ कह नहीं सकता था, जब तक कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार मेरे पास उपलब्ध नहीं होता। आज मेरे पास वैज्ञानिक आधार उपलब्ध है।

और बुर्के पर चर्चा पूरी हुई

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

तो तय यह हुआ कि बुर्का एकदम जरूरी है। बुर्के को जरूरी मानने वाले धर्म की महिलाएँ कम पढ़ी-लिखी, कम जागरूक हैं इसलिए इसपर किसी महिला को बोलने नहीं दिया जाएगा और चर्चा करने के लिए पुरुष अपने असली रूप में मैदान में डटे रहेंगे।

सेक्स हौव्वा क्यों है?

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

आज के समाज में जब लड़कियाँ नौकरी कर रही हैं, बड़े शहरों में परिवार से दूर अकेले रह रही हैं, किराए पर मकान लेने की समस्या है, शादी देर से हो रही है आदि कई कारण है जिनके आलोक में लिव-इन एक जरूरत है। लिव इन वालों के यौन संबंध के मामले में भी मेरी राय वही है - जरूरत है।

बहन के साथ बिना इजाजत सेल्फी लेने वाले को आप सपोर्ट करेंगे?

अभिरंजन कुमार :

डीएम चंद्रकला ने क्या गलत कहा?

सचमुच इस देश के बुद्धि-विवेक को लकवा मार गया है। अगर हमारे काबिल दोस्त और पत्रकार भूपेंद्र चौबे सन्नी लियोनी से कुछ असहज करने वाले सवाल पूछ दें, तो हम उन्हें महिला की गरिमा के बारे में ज्ञान देने लगते हैं, लेकिन एक 18 साल का लड़का, जिसे नए कानूनों के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में किसी उम्रदराज जितनी ही सजा दी जा सकती है, अगर एक महिला डीएम के साथ बिना उनकी इजाजत सेल्फी बनाने लगे, उनके रोकने पर भी न रुके, फोटो डिलीट करने के लिए कहने पर भी डिलीट न करे और हीरोगीरी दिखाये, तो हम महिलाओं की गरिमा भूल कर उसके समर्थन में उतर आते हैं।

मन का भाव

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे एकदम ठीक से याद है कि इस विषय पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ। पर क्या करूँ, हर साल जब मैं ऐसी स्थिति में फंसता हूँ, तो मुझे एक-एक कर सारी घटनाएँ फिर से याद आने लगती हैं और मैं चाह कर भी अपने अफसोस को छुपा नहीं पाता। 

गृह-नीति

प्रेमचंद :

जब माँ, बेटे से बहू की शिकायतों का दफ्तर खोल देती है और यह सिलसिला किसी तरह खत्म होते नजर नहीं आता, तो बेटा उकता जाता है और दिन-भर की थकान के कारण कुछ झुँझलाकर माँ से कहता है, 

सुन्दर और बहुत सुन्दर

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

महिलाएँ या तो सुन्दर होती हैं, या बहुत सुन्दर। 

शुक्रिया सीसा, दुनिया को आइना दिखाने के लिए!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :

कहानी बिलकुल फिल्मी लगती है, लेकिन फिल्मी है नहीं। कहानी बिलकुल असली है।

सेकंड सेक्स, प्लीज देखो सेंसेक्स

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

वैधानिक चेतावनी-यह व्यंग्य नहीं है

POWER AND FREEDOM FLOWS FROM THE LAYERS OF PURSE-प्रोफेसर सैमुअल बायरन का यह स्टेटमेंट बहुत यथार्थवादी है। ताकत और स्वतंत्रता पर्स से बहती हैं।

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