किसानों की आमदनी दोगुनी करने में कितना योगदान कर सकेगा बजट 2022?

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क्या किसान की आमदनी 100 से बढ़ा कर 200 रुपये करने के लिए उपभोक्ता का खर्च 400 से बढ़ा कर 800 रुपये किया जाना ऐसा विकल्प है, जिसे लोग पसंद करेंगे? क्या आप तैयार हैं कि जो आटा 40 रुपये किलो खरीदते हैं, उसे 80 रुपये में खरीदने लगें और जो दाल 100 रुपये किलो खरीद रहे हैं, उसे 200 रुपये में खरीदने लगें? क्या किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मतलब यह है कि खाद्य महँगाई भी दोगुनी हो जायेगी?

आज बजट आ रहा है, तो किसानों के बारे में बहुत-सारी बातें फिर से होगी। सरकार दिखाना चाहेगी कि वह किसानों को बहुत कुछ दे रही है। विपक्ष कहेगा कि किसानों को सरकार ने बस ठेंगा दिखाया है। पर जो भी हो, सबको किसानों की बहुत चिंता है। सभी सहमत हैं कि किसानों की आमदनी दोगुनी करनी है। मतभेद केवल इस पर है कि सरकार उस दिशा में आगे बढ़ रही है या नहीं। उलाहना दिया जाता है कि सरकार बस बोलती है, दावे करती है, पर किसानों की आमदनी दोगुनी हुई कहाँ? पूछा जाता है कि आखिर कब होगी किसानों की आमदनी दोगुनी? सवाल वाजिब है। सरकार ने दावे किये तो बताना चाहिए कि अभी तक कितनी बढ़ी, दोगुनी कब हो जायेगी।
लेकिन इस चीज को थोड़ी व्यापकता में, लेकिन सरल तरीके से समझना जरूरी है। मान लीजिए एक किसान की आमदनी 100 रुपये है। लक्ष्य है कि उसकी आमदनी 200 रुपये करनी है। अभी वह 100 रुपये किस तरह कमाता है? गेहूँ, धान, दाल, तिलहन, फल-सब्जी वगैरह उगा कर। इन चीजों को खरीदता कौन है? किसान से तो कोई बिचौलिया खरीदता है, पर अंततः मूल्य चुकाता है उपभोक्ता। किसान को जो चीज उपजाने के 100 रुपये मिले, वह अभी उपभोक्ता को कितने में मिल रही है? शायद 400 रुपये में।
अब किसान की आमदनी 100 से बढ़ा कर 200 रुपये करनी है, तो बताइए कि इन बातों में से कौन-सी बात होने की संभावना रहेगी?
(क) उपभोक्ता तब भी 400 रुपये ही चुकाता रहेगा
(ख) उपभोक्ता को केवल वह अतिरिक्त 100 रुपये चुकाना होगा, यानी उसका खर्च 400 से बढ़ कर केवल 500 रुपये हो जायेगा
(ग) उपभोक्ता का खर्च भी बढ़ कर दोगुना, यानी 800 रुपये हो जायेगा
स्पष्ट है कि पहले दोनों विकल्प व्यावहारिक नहीं हैं। तो क्या किसान की आमदनी 100 से बढ़ा कर 200 रुपये करने के लिए उपभोक्ता का खर्च 400 से बढ़ा कर 800 रुपये किया जाना ऐसा विकल्प है, जिसे लोग पसंद करेंगे? क्या आप तैयार हैं कि जो आटा 40 रुपये किलो खरीदते हैं, उसे 80 रुपये में खरीदने लगें और जो दाल 100 रुपये किलो खरीद रहे हैं, उसे 200 रुपये में खरीदने लगें? क्या किसानों की आमदनी दोगुनी करने का मतलब यह है कि खाद्य महँगाई भी दोगुनी हो जायेगी?
यहाँ ध्यान रखने की जरूरत है कि हर किसान भी एक उपभोक्ता है। वह कृषि उत्पादों में भी अगर दो चीजें उगाता है, तो 10 चीजें खरीदता भी है। तो वही किसान एक उत्पादक के रूप में अपनी कमाई 100 से बढ़ा कर 200 रुपये कर लेगा, पर उससे कहीं अधिक अनुपात में अपने खर्च भी बढ़ा लेगा।
तो किसान की आमदनी बढ़ाते हुए भी खाद्य महँगाई न बढ़ने देने का तरीका क्या हो सकता है? क्या यह संभव भी है?
फसल की कीमतें दोगुनी किये बिना किसान की आमदनी दोगुनी इन तरीकों से हो सकती है, –
(क) उसकी उपज बढ़ जाये।
(ख) किसान फसल उगाने के साथ-साथ कुछ नयी चीजें करे।
(ग) किसान मूल्य श्रृंखला में ऊपर उठे।
(घ) किसान और उपभोक्ता के बीच की वितरण कड़ी को सक्षम बनाया जाये।
उपज में वृद्धि कितनी संभव, कैसे हो?
मतलब वह अभी 100 रुपये में बिक पाने वाली फसल जितने खर्च में उपजा पाता है, उतने ही खर्च में वह अभी से ज्यादा उत्पादन करे। लेकिन इस समय ही देश को जितना खाद्यान्न चाहिए उससे काफी अधिक उत्पादन हो रहा है। तो बढ़े हुए उत्पादन का होगा क्या, उसे खरीदेगा कौन? इस समय देश में खेती का मतलब हो गया है गेहूँ-धान या गन्ना उगाना। कुछ किसान फल-सब्जियों की ओर जाते भी हैं तो हर मौसम में हम यह भी देखते हैं कि अगर प्याज या टमाटर का उत्पादन ज्यादा हो गया तो किसान को मिलने वाले दाम बहुत घट जाते हैं। ऐसा नहीं है कि किसान ने 25 किलो प्याज उगा कर 100 रुपये कमाये तो 50 किलो प्याज उगाने पर उसे 200 रुपये मिल जायेंगे।
तो फिर यह हो सकता है कि खाद्यान्न के बदले उन फसलों का उत्पादन बढ़ाया जाये, जिन्हें अभी भी हमें आयात करना पड़ता है। उन फसलों का उत्पादन बढ़ाया जाये, जिनका निर्यात संभव है। उन फसलों का उत्पादन बढ़ाया जाये, जिनका औद्योगिक उपयोग हो सकता है। संसद में 31 जनवरी 2022 को प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा में इसीलिए फसलों के विविधीकरण (क्रॉप डाइवर्सिफिकेशन) की बात कही गयी है।
कुछ नया करे किसान
किसान की अतिरिक्त आमदनी उन नयी चीजों से आ सकती है। जैसे, अभी अगर एक किसान गेहूँ-धान या सब्जी उगा कर 100 रुपये कमा रहा है, तो वह 20 रुपये मछली उत्पादन करके कमा ले, 20 रुपये दूध उत्पादन से कमा ले, 20 रुपये मधु उत्पादन से कमाये, 20 रुपये पॉल्ट्री से कमा ले, 20 रुपये शीशम-बाँस वगैरह से कमा ले। इसी तरह के सैंकड़ों नये तरीके अपनाये जा सकते हैं।
किसान मूल्य श्रृंखला में ऊपर उठे
उदाहरण के लिए, गन्ना बेचने से ज्यादा लाभ उसे गुड़ बेचने से मिलता है। खेत से उपजी कोई भी फसल सीधे उसी रूप में बेचने से ज्यादा लाभ तब मिलेगा, जब उसका प्रसंस्करण करके मूल्यवर्धन किया जाये।
वितरण की कड़ी कैसे बने सक्षम
अधिकांश मामलों में किसान अपनी उपजायी हुई चीजें सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचा सकता। जहाँ किसान और उपभोक्ता बहुत पास-पास हों, वहाँ यह संभव हो सकता है और अभी भी होता ही है। पर अधिकांशतः किसान की उपज को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए बीच में एक वितरण व्यवस्था जरूरी है।
अभी किसान और उपभोक्ता की कड़ी बनने वाले मध्यस्थ या बिचौलिये किसान को 100 रुपये देकर उपभोक्ता से 400 रुपये ले रहे हैं। यह इसलिए है कि वर्तमान वितरण व्यवस्था ज्यादा सक्षम नहीं है जिससे उसकी अपनी लागत ज्यादा है। साथ ही मुनाफाखोरी भी है क्योंकि इसमें मंडी व्यवस्था का एकाधिकार है। यदि इस वितरण व्यवस्था को इस तरह सुधारा जा सके कि किसान को 100 रुपये के बदले शायद 150 रुपये मिलने लगे, लेकिन उपभोक्ता का खर्च 400 रुपये पर ही बना रहे। यानी किसान को मिले अतिरिक्त 50 रुपये की भरपाई वितरण व्यवस्था में सुधार से ही हो जाये और उसका बोझ उपभोक्ता पर न पड़े।
वर्तमान बिचौलियों के एकाधिकार को तोड़ने और ज्यादा सक्षम वितरण व्यवस्था बना सकने वाले खिलाड़ियों को इस क्षेत्र में प्रवेश देने के लिए ही मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून बनाये थे। उसमें वर्तमान बिचौलियों को इस क्षेत्र से बाहर नहीं किया जा रहा था, बल्कि किसान के सामने ज्यादा खरीदारों को लाने का विकल्प खोला जा रहा था। पर वर्तमान बिचौलियों ने किसानों के नाम पर जो विरोध प्रायोजित किया, उसके दबाव में मोदी सरकार को इन कानूनों को वापस लेना पड़ गया। जिन किसानों को इन कानूनों से लाभ मिलना था, वे या तो उन लाभों को समझ नहीं पाये या मुखर रूप से अपना समर्थन व्यक्त नहीं कर पाये।
(देश मंथन, 1 फरवरी 2022)

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