संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
उसे सोना था। उसे उठ कर फिर सुबह की भागदौड़ में शरीक होना था। वह देर रात घर आया। आते ही उसे सो जाना था, क्योंकि सुबह समय पर जगना ही था। लेकिन सोने से पहले उसने देखा कि बिस्तर ठीक नहीं है।
उसने बिस्तर को दुरुस्त किया। चादर बदले, तकिया के गिलाफ बदले। और लगा कि अब वह चैन से सो सकता है।
वह सोने के लिए गया भी, लेकिन उसे ऐसा लगा कि फर्श की तो सफाई हुई ही नहीं। अब भला जब तक फर्श की सफाई न हो जाये नींद कैसे आयेगी।
उसने फर्श की सफाई करनी शुरू कर दी। फर्श को धोया, पोछा और सारा सामान करीने से लगाया। अब वह सोने के लिए तैयार था। अब आँखें नींद से भरी थीं। उसे पता था कि आधी से ज्यादा रात बीत चुकी है। अब नहीं सोया, तो वह फिर नहीं सो पायेगा क्योंकि सुबह जल्दी जागना ही था। उसके पास जागने के सिवा दूसरा विकल्प भी नहीं था।
लेकिन वो सोये कैसे? अभी भी उसे नींद नहीं आ सकती थी। उसकी निगाह दीवार पर लगे जालों पर पड़ गयी थी। जाहिर है नींद आये तो अच्छी आये, और जालों के बीच नींद का आना मुमकिन नहीं।
उसने सारे जाले भी साफ कर दिये। अब तो उसे सो ही जाना चाहिए था। पर भला उस धूल से सना वो पंखा उसे सोने देता?
नहीं। बिल्कुल नहीं। उसने तय कर लिया कि नींद लूँगा तो अच्छी नींद लूँगा। इसलिए टेबल पर कुर्सी लगा कर उसने पंखे की सफाई भी शुरू कर दी।
आह! पंखा भी चमक उठा है। अब सब कुछ हो चुका है। एकदम परफेक्ट। बिस्तर भी साफ। फर्श भी साफ। दीवारें भी साफ। पंखा तो चमक उठा है। अब सो जायेगा वह। अब उसे बहुत अच्छी नींद आयेगी।
चलो सो जाते हैं, वह बुदबुदाया और बिस्तर पर लेटने चला गया।
लेकिन यह क्या? अरे, बाहर मुर्गा बाँग देने लगा? इसका मतलब यह कि रात खत्म हो चुकी है? क्या सबेरा हो गया?
उफ! सब कुछ ठीक हो जाने के बाद अभी तो मौका मिला था, कुछ घंटों की नींद के लिए। और इतनी जल्दी सबेरा हो गया? अब क्या होगा, सुबह तो जल्दी उठ कर जाना था। यह क्या? सोने की तैयारी में सारी रात निकल गयी? पता ही नहीं चला।
अब कुछ नहीं हो सकता। अब तो जाना ही है।
वो सोचता रहा, काश सोने की तैयारी की जगह सो गया होता। इस नरम-नरम बिस्तर का अब वह क्या करे? चमकते फर्श, चमकती दीवारें और चमचमाता हुआ यह पंखा अब किस काम का? अब तो जाने का वक्त हो गया है।
और खुद की तैयारी को कोसता हुआ वह चल पड़ा।
(देश मंथन, 27 मार्च 2014)