संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे कभी पैसे की कमी नहीं महसूस हुई। जब डेढ़ हजार रुपये महीने के मिलते थे, तब भी नहीं और आज तो बिल्कुल नहीं।
ऐसा नहीं है कि मैं बहुत पैसे कमाता हूँ, या फिर मेरे साथ वाले मुझसे कम पैसे कमाते हैं, लेकिन मुझे कमी नहीं महसूस हुई। अपने साथ वाले लोगों से अक्सर सुनता हूँ कि पैसे कम मिलते हैं, ये जरूरत नहीं पूरी हुई, वो नहीं पूरी हुई। जब ट्रेनी था तब डेढ़ हजार रुपये मिलते थे और उन्हीं डेढ़ हजार रुपयों के भरोसे दिल्ली में रहता था, आईआईएमसी में पढ़ता भी था, पिल्लई साहब की कैंटीन में दोस्तों पर समोसे और चाय लुटाता था और रोज दफ्तर भी पहुँच जाता था।
मेरी तरह ही शाहरुख खान भी उन दिनों एक-दो ड्रामा करने और कराने के बदले में हजार, डेढ़ हजार रुपये कमाया करते थे और जितना कमाते थे उसे वहीं दोस्तों पर लुटा देते थे। मैंने उन्हें बहुत शुरुआती दौर में भी कभी पैसों को पकड़ते नहीं देखा। जितना था, बहुत था।
हम दोनों की जेब में जितने पैसे होते, हम राजा की तरह रहते। जब खत्म हो जाते तो फिर कहीं न कहीं से अपने-आप आ भी जाते। नौकरी और पढ़ाई करते हुए एक बार मेरे पास सारे पैसे खत्म हो गये। सैलरी मिलने में अभी देर थी, लेकिन मैं अभी चिंता में नहीं गया था कि हफ्ते भर कैसे कटेंगे।
पैसे खत्म हो गये हैं, ये बात मैंने किसी को बतायी भी नहीं थी। रात में आकर अपने कमरे में सोने चला गया। उन दिनों मैं दक्षिण दिल्ली में एक आंटी के घर पेइंग-गेस्ट था। आंटी जी मुझे बेटे की तरह प्यार करती थीं और पूरा ध्यान रखती थीं। वे स्कूल में टीचर थीं और सुबह जब मैं सोया रहता था, तभी वे स्कूल चली जाती थीं।
लेकिन, उस सुबह मैं जब सोकर उठा तो मैंने देखा कि मेरे सामने टेबल पर एक लिफाफा रखा है। लिफाफे में एक चिट्ठी और पाँच सौ रुपये का एक नोट रखा था।
चिट्ठी में लिखा था, “प्रिय संजू – तुम रोज देर रात को घर आते हो और सुबह मेरे जाने तक सोये रहते हो। तुमसे बात ही नहीं हो पाती, लेकिन मैंने ये नोट किया है कि तुम पतलून पहन कर ही सो जाते हो। ये ठीक नहीं है। तुम्हें पायजामा पहन कर सोना चाहिए। मैं इस लिफाफे में तुम्हारे लिए कुछ पैसे रख कर जा रहूी हूँ, तुम आज पायजामा खरीद लेना।”
मैं हैरान रह गया। मुझे वहाँ रहते हुए छह महीने बीत चुके थे, और मैं कभी पायजामा नहीं पहनता था। फिर आंटी ने आज ही ये पैसे क्यों दिये पायजामा खरीदने के लिए।
मेरे पास उस दिन तो एक भी रुपया नहीं था, और सुबह-सुबह आंटी पाँच सौ रुपये दे गयी थीं। कमाल था!
खैर, बाद में सैलरी मिलने के बाद मैंने आंटी को यह कह कर पैसे वापस कर दिये थे कि मैं पायजामा पहनता ही नहीं। लेकिन उस दिन तो आंटी ने भरपूर मदद की थी।
फिर मेरी सैलरी बढ़ती गयी। सब कुछ होता गया। मुझे न तो पैसे तब कम लगे और बढ़ने के बाद ज्यादा लगे।
मेरे साथ के कई लोगों से सुनता हूँ कि पैसे कम हैं तो हैरान हो जाता हूँ। फिर सोचता हूँ कि ये ‘कमी’ और ‘अधिकता’ सिर्फ हमारे मन की गति भर नहीं? कितना हो जायेगा तो बहुत हो जायेगा? क्या मिल जायेगा तो सब कुछ मिल जायेगा?
यह सवाल परेशान कर रहा था। ऐसे में मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछ लिया कि यार ये अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान की जिंदगी में ऐसी कौन-सी चीज होगी, जो वे चाह कर भी नहीं खरीद पाते होंगे?
बड़ा वाजिब सवाल था। मेरा दोस्त कह रहा था कि उसे तो आईफोन और आईपैड जैसी चीजें खरीदने के लिए भी पूरा बजट बनाना पड़ता है। लेकिन कोई तो ऐसी चीज होगी कि शाहरुख और अमिताभ की भी इच्छा होगी और वे नहीं खरीद पा रहे होंगे?
मैं शाहरुख खान से मिला। बहुत संकोच के साथ पूछा कि कोई ऐसी चीज है जिसे आप खरीदना चाहते हैं और आपको प्लान करना पड़े। शाहरुख खान ने बिना रुके हुए कहा कि यार निजी प्लेन खरीदने की इच्छा है। काश खरीद पाऊँ!
मुझे जवाब मिल गया था। मेरा एक दोस्त आईफोन खरीदने की योजना बना रहा है, दूसरा निजी विमान।
मतलब दोनों को पैसों की दरकार है। लेकिन मुझसे पूछिए तो यही कहूँगा कि आज भी पैसों की तमन्ना नहीं।
मुझे दिल से लगता है कि मेरी ‘जरूरत’ और ‘चाहत’ का ध्यान रखने वाला मैं कौन होता हूँ। जिस तरह मैं अपने बच्चे का ध्यान रखता हूँ उसी तरह मैं भी तो किसी का बच्चा हूँ और वह मेरा ध्यान रखता है। मेरी ‘माँ’ तो वहाँ है, जहाँ से पूरी दुनिया का संचालन होता है। फिर जब माँ का सीधा कनेक्शन ‘वहीं’ है तो मैं क्यों चिंता करूँ?
मैं ‘माँ’ को याद करता हूँ और ‘माँ’ मेरी इच्छाओं का ध्यान रखती है।
वैसे बताने के लिए बता रहा हूँ कि शाहरुख खान की भी हर इच्छा पूरी हो जाती है, निजी विमान वाली भी पूरी हो जायेगी। जानते हैं क्यों?
क्योंकि शाहरुख खान भी अपनी ‘माँ’ से जुड़े हुए हैं। मेरी तरह।
आप भी अपनी माँ को याद करके देखिए, मेरा दावा है कि कभी किसी चीज की कमी नहीं होगी।
(देश मंथन, 05 अप्रैल 2014)