रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :
बनारस क्लब गया था। डाक्टर नमित, शिप्रा और बालक शुभम के साथ। शानदार शाम रही। 1848 का यह क्लब है।
शायद हिन्दुस्तान के ‘प्राचीन’ क्लबों में से एक होगा। क्लब की दीवार को बनारस की अलग पहचान से नवाजा गया है। मनीष खत्री की पेंटिंग से अलग ही बनारस का रूप उभरता है। उनकी पेंटिंग बनारस को अलग पहचान देती है। बल्कि बनारस की पहचान को बनारस में घर देती है।
क्लब शानदार है। साइकिल ट्रैक है। बड़ा सा टीवी स्क्रीन है और हरी दूब का मैदान। बनारस की धार्मिकता में हम इतने डूब गये हैं कि भूल ही गये कि न्यू इयर पर बनारसी डाँस कहा़ँ करते हैं। हलक की तलब होती है तो कहाँ जाते हैं। यहाँ के बार का नाम भी हाउस आफ लार्ड है। बनारस के विमर्श में भरी पौराणिकता में थोड़ी आधुनिकता ठेलने के लिए यह तस्वीरें लेकर आया हूँ। सूत्रों के मुताबिक आजीवन सदस्य बनना हो तो बारह लाख देने पड़ेंगे!
(देश मंथन, 09 मई 2014)