विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
गर्मी की तपिश से बचने के लिए आपने बेल का शर्बत तो जरूर पिया होगा। इसकी तासीर ठंडी होती है। बेल के पत्तों की तासीर भी ठंडी होती है इसलिए भगवान शिव को बेल और बेल के पत्ते अर्पित किए जाते हैं।
पूरे देश में मिलता है बेल – सारे भारत में खासकर हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में 4 हजार फीट की ऊँचाई तक पाया जाता है। मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल में फैला पाया जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। उष्ण कटिबंधीय फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत बिहार तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता से पाये जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है।
बाजार में दो प्रकार के बेल मिलते हैं- छोटे जंगली और बड़े उगाये हुए। दोनों के गुण समान हैं। बिल्व (इगल मार्मेलोज) बिल्व (बेल) कहा गया है- ‘रोगान बिलत्ति-भिनत्ति इति बिल्व।’ अर्थात् रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है। बेल के पत्तों से भगवान शिव की पूजा होती है।
बीमारियों में लाभकारी – बेल की पत्तियों को पीसकर उसके रस का दिन में दो बार सेवन करने से डायबिटीज की बीमारी में काफी राहत मिलती है। रक्ताल्पता में पके हुए सूखे बेल की गिरी का चूर्ण बनाकर गर्म दूध में मिश्री के साथ एक चम्मच पावडर प्रतिदिन देने से शरीर में नया रक्त बनता है
गैस्ट्रोएण्टेटाइटिस एवं हैजे के ऐपीडेमिक प्रकोपो (महामारी) में अत्यंत उपयोगी अचूक औषधि माना है। विषाणु को परास्त करने की इसमें क्षमता है। कच्चा या अधपका फल गुण में कषाय (एस्ट्रोन्जेण्ट) होता है। यह टैनिन एवं श्लेष्म (म्यूसीलेज) के कारण दस्त में लाभ करता है। पुरानी पेचिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसे जीर्ण असाध्य रोग में भी यह लाभ करता है। बेल में म्यूसिलेज की मात्रा अधिक होती है। यह डायरिया के तुरँत बाद वह घावों को भरकर आंतों को स्वस्थ बनाने में समर्थ है। मल संचित नहीं हो पाता और आंतें कमजोर होने से बच जाती हैं।
होम्योपैथी में बेल के फल व पत्र दोनों को समान गुण का मानते हैं। खूनी बवासीर व पुरानी पेचिश में इसका प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। अलग-अलग पोटेन्सी में बिल्व टिंक्चर का प्रयोग कर आशातीत लाभ देखे गए हैं। यूनानी मतानुसार इसका नाम है – सफरजले हिन्द। यह दूसरे दर्जे में सर्द और तीसरे में खुश्क है।
(देश मंथन, 23 जून 2014)