शेरशाह का सासाराम

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विद्युत प्रकाश :

बिहार का ऐतिहासिक शहर सासाराम। मुझे गर्व है कि इसी धरती पर मेरा जन्म हुआ। पर शहर की पहचान उस महान शासक से जुड़ी है जिसने देश को कई नायाब चीजें दीं और इतिहास के पन्नों पर अमर शासक बन गया।

सासाराम शहर अपने शेरशाह के मकबरे के लिए जाना जाता है, जो बिहार का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। ये मकबरा सासाराम रेलवे स्टेशन से महज दो किलोमीटर दूर है। अब तो शहर के बीचोंबीच ही है। जी टी रोड पर मकबरा जाने के लिए द्वार भी बना है। इस द्वार से मकबरे की दूरी आधा किलोमीटर है। शहर के लोग मकबरे को रौजा भी कहते हैं। रौजा भारतीय पुरात्तव विभाग के संरक्षण में है। प्रवेश का टिकट 5 रुपये का है। ये सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। 

शेरशाह का मकबरा एक बड़े सरोवर के बीचोंबीच बना है। मकबरे का निर्माण 16 अगस्त 1545 को पूरा हुआ।

बीच सरोवर में बने मकबरे में जाने का रास्ता बिल्कुल सामने से है जहाँ से इसका सौंदर्य निहारते हुए अप्रतिम आनंद आता है। शेरशाह के मकबरे की सबसे बड़ी विशेषता इसकी वास्तुकला है। ये अष्टकोणीय बनावट का है। इसका डिजाइन अलाइवाल खान ने तैयार किया था। मकबरा इंडो इस्लामिक वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। मकबरे का मुख्य गुंबद 122 फीट ऊँचा है। रोज देशी विदेशी सैलानी इस मकबरे को देखने के लिए आते हैं। आमतौर पर मकानों में चार दीवारें होती हैं लेकिन इसमें आठ दीवारे हैं। मुख्य भवन के अंदर शेरशाह और उसके परिवार के सदस्यों के मकबरे हैं।

शेरशाह के पिता का नाम हसन शाह था। वैसे तो उसके बचपन का नाम फऱीद था। उसका जन्म हरियाणा के नारनौल शहर में हुआ था। पर कहते हैं बचपन में ही उसने बहादुरी दिखाते हुए एक शेर के तलवार से दो टुकड़े कर डाले। तब से उसका नाम शेरशाह पड़ गया।

महान अफगान शासक शेरशाह ने महज पाँच साल दिल्ली से देश पर शासन किया लेकिन देश को अदभुत चीजें दीं। आज हम जिस इनफ्रास्ट्रक्चर के विकास की बात करते हैं शेरशाह ने पूरे देश को एक करने के लिए पंजाब के पेशेवार से लेकर कोलकाता तक देश की सबसे लंबी पक्की सड़क बनवायी। लोग कहते हैं कि ये सड़क सम्राट अशोक ने बनवायी थी लेकिन शेरशाह ने उसे पक्की कराया। अंग्रेजों ने उसकी मरम्मत करायी तो नाम दिया ग्रैंट ट्रक रोड। लेकिन आजाद भारत में फिर इसका नाम है शेरशाह सूरी पथ जिसे आप नेशनल हाईवे नंबर 2 के नाम से भी जानते हैं।

शेरशाह का नाम देश में पहली बार डाक व्यवस्था शुरू करने के लिए भी जाना जाता है। शेरशाह के जमाने के डाक पोस्ट का आज भी कई जगह असित्त्व दिखायी देता है। उसने मुद्रा व्यवस्था भी शुरू की। आज रुपया शब्द शेरशाह के समय की देन है। शेरशाह के राज में कानून इतना सख्त था कि चोर चोरी करने से कांपते थे। चोरी पर हाथ काटने की सजा। जिस गाँव में चोरी हो वहां के लोगों पर किया जाता था सामूहिक जुर्माना।

कालांजर के किले में 13 मई 1545 को अपनी मौत से पहले शेरशाह ने अपने लिए मकबरे का इंतजाम कर लिया था जो सासाराम का बड़ा दर्शनीय स्थल है। मकबरा उसके जीवन काल में बनना आरंभ हो गया था जो उसके मृत्यु के तीन महीने बाद पूरा हो गया। शेरशाह के मकबरे के सामने शेरगंज मुहल्ले में उसके पिता हसन शाह सूरी का भी मकबरा है। स्थनीय लोग इसे सूखा हुआ रौजा भी कहते हैं। 

कहा जाता है कि दिल्ली का पुराना किला शेरशाह का बनवाया हुआ है। मध्य प्रदेश में एक जिला है श्योपुर। इस श्योपुर का किला भी शेरशाह का बनवाया हुआ है। हालाँकि इस किले पर कब्जा करके लोगों ने अब आवासीय बनवा दिया है। 

सासाराम में ठहरने के लिए बिहार पर्यटन ने होटल शेरशाह विहार बनवाया है जो फजलगंज में जीटी रोड पर ही स्थित है।

(देश मंथन, 25 जून 2014)

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