कभी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती थी ट्राम

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विद्युत प्रकाश : 

आज भले ही दिल्ली में मेट्रो रेल का विशाल नेटवर्क है, पर कभी दिल्ली की सड़कों पर ट्राम दौड़ा करती थी। दिल्ली की सड़कों पर 1908 में पहली बार ट्राम दौड़ी थी। ब्रिटिश काल में तमाम बड़े शहरों में शहरी परिवहन के लिए ट्राम सेवा का चयन किया गया था।

6 मार्च 1908 को दिल्ली की सड़क पर पहली ट्राम चली। दिल्ली के ऐतिहासिक टाउन हाल में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग ने एक बड़े समारोह में ट्राम सेवा की शुरूआत की थी। इस समारोह में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक सर जान मार्शल भी मौजूद थे। यह दिल्ली के देश की राजधानी बनने के चार साल पहले की बात थी। यह ट्राम बिजली संचालित थी। साल 1921 में दिल्ली में 15 किलोमीटर के सर्किट में कुल 24 ट्राम संचालित किए जा रहे थे। ये ट्राम देश आजाद होने समय भी पुरानी दिल्ली के लोगों के लिए परिवहन का प्रमुख साधन थी। उस समय दिल्ली की मुख्य आबादी इसी क्षेत्र में सिमटी हुई थी। तब शहर का इतना विस्तार नहीं हुआ था। दिल्ली में आजादी के बाद भी साल 1963 तक ट्राम अपनी सेवाएँ दे रही थी।

सदर बाजार, जामा मस्जिद, फव्वारा आदि मार्ग पर ट्राम का ट्रैक था। दिल्ली के तमाम बुजुर्ग उस इको फ्रेंडली ट्राम के सफर को याद करते हैं। इस ट्राम के सफर का किराया आधा आना (तीन पैसा) एक आना (छह पैसा) और दो आना (12 पैसे) और 4 आना का हुआ करता था। पर तब चार आना में आप दिल्ली की पराठे वाली गली से सबसे बेहतरीन पराठा खरीद कर खा सकते थे। आज ये पराठा 50 रुपये का हो गया है।

एस्प्लानेड रोड, क्वीन्स वे, मिंटो रोड, कनाट सर्कस, फतेहपुरी, चाँदनी चौक, कटरा नील, खारी बावली, बाड़ा हिंदूराव जैसे इलाके से गुजरती थी दिल्ली की ट्राम। सदर बाजार, फव्वारा, हौजकाजी, लालकुआं जैसे इलाके ट्राम सेवा से जुड़े हुए थे।

बिजली से चलने वाली ट्राम में तीन तरह के कंपार्टमेंट हुआ करते थे। लोअर, मिड्ल और अपर क्लास। पर ज्यादातर सफरी चलते थे लोअर क्लास में। अहमद अली अपनी पुस्तक ट्विलाइट्स ऑफ दिल्ली में ट्राम को लुटियन दिल्ली और शहजहानाबाद की शान बताते हैं।

बढ़ती आबादी के साथ बाजारों में बढ़ती भीड़, सड़कों पर बढ़ते ट्रैफिक के कारण आजाद भारत में 1963 के दिसंबर की सर्द दिनों में दिल्ली की सड़कों से ट्राम सेवा की विदाई हो गयी। लेखक आरवी स्मिथ कहते हैं- दिल्ली में ट्राम का सफर आजकल की बसों से कहीं ज्यादा सुरक्षित था। ट्राम में चढ़ना और उतर जाना आजकल की बसों से ज्यादा सुरक्षित था।

(देश मंथन, 04 अगस्त 2014)

 

 

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