डॉ. मुकेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक :
सुबह से ही नेताजी के आवास पर भारी भीड़ देख कर मैं थोड़ा चकित हुआ। कारण मेरी समझ में नहीं आया। उनका जन्मदिन निकल चुका है। शाही सवारी और पचहत्तर फुट के केक के किस्से भी अब लोग भूलने लगे हैं। मैंने सोचा हो सकता है कि उनका कोई और सगा-संबंधी विधायक-सांसद बन गया होगा, इसलिए जलसे जैसा माहौल है।
अंदर पहुँचा तो देखा कि सब नेताजी को बधाइयाँ दे रहे हैं। मैंने एक नेता टाइप आदमी को प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा तो उसने कान में धीरे से कहा – नेताजी जनता परिवार के नेता बन गये हैं न, इसलिए। अब तो उनको प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता। मैंने हैरत से उनको और फिर प्रसन्नवदन नेताजी को देखा।
ख़ैर, मुझे तो अपने इंटरव्यू से मतलब था, इसलिए भीड़ में जगह बनाते हुए उनके पास पहुँचा और अपनी तरफ से बधाई भी दे दी, जो उन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार कर ली। वे मेरे आने का कारण जानते थे, इसलिए इशारे से लोगों से जाने को कहा।
उनकी अनुमति मिलने के बाद मैंने सवाल दागने शुरू कर दिये – ये बताइये कि यह जो जनता परिवार को एकजुट करने की मुहिम आप लोग चला रहे हैं, क्या वह कभी कामयाब हो पायेगी?
काहे नई नहीं कामयाब होगी? हमें तो जे पता है कि अभी मसाजवादी… माने समाजवादी या तो पॉवर से बाहर हैं या फिर उनका पॉवर जा सकता हे। लालू का तो आप जानतै हो, बे न तो केंद्र के रह गये न राज्य के। देवेगौड़ा भोत दिन से खाली बैठे हैं।
नीतीश-शरद को चुनाव में हार का खतरा सता रओ हे। केने का मतलब जे हे कि ऐसा जब कभी भी होता हे तो मसाजवादी… माने समाजवादी एक होने में देर नई करते। इसलिए हमें तो पूरी उम्मीद हे, और यकीन हे, और भरोसा हे कि सब एक होंगे।
लोग तो यही कह रहे हैं कि ये सब आपस में लड़ने-झगड़ने वाले लोग हैं, ये कभी एक नहीं हो सकते।
जे लोगों की गलत धारणा हे। जे सच है कि हम आपस में खूब लड़ते हैं। ये मसाजवादियों… माने समाजवादियों का पुराना रोग हे, लेकिन जे लड़ाई लोकतंत्र के लिए हे, सत्ता के लिए नई। बस एक बार तै हो जाए कि प्रधानमंत्री कोन बनेगा, फिर कोई झंझटै नई रै जाएगी।
झगड़ा तो यहीं से शुरू होता है न?
इस बार नई होगा। सबने मान लिया है कि हम सबसे सीनियर हैं और पॉवरफुल भी। इसीलिए हमें कमान भी सौंपी गई है। तो जे तो साफ़ है कि प्रधानमंत्री के बारे में एक राय बन चुकी है।
अभी तक किसी ने आपके नाम पर सहमति की बात कही नहीं है। फिर असली झगड़ा तो चुनाव के बाद शुरू होता है। इस बार नई होगा। हम सबसे स्टांप पेपर पे लिखवा लेंहें, ताकि बाद मे कोई मुकरे नहीं।
दूसरा सवाल ये उठाया जा रहा है कि एकता अभियान दरअसल में कुछ परिवारों का प्रोजेक्ट है, मुलायम परिवार, लालू परिवार, देवेगौड़ा परिवार वगैरह वगैरह। इस बारे में आप क्या कहेंगे?
इसमें कहने को क्या हे? आप एक बात अच्छे से समझ लो कि यह देश परिवारों से ही चल रहा है। नेहरू-गांधी परिवार, संघ परिवार, मुलायम परिवार, करुणानिधि परिवार, सिंधिया परिवार, देवेगौड़ा परिवार, लालू परिवार, अब्दुल्ला परिवार, ठाकरे परिवार, कितने गिनाएं तुमें। देश में शांति और स्थिरता के लिए परिवार बहुत जरूरी हैं।
लेकिन ये तो परिवारवाद है न?
तो क्या हुआ? भारतीय संस्कृति में परिवार का कितना महत्व है, जे तुम लोग आजकल के लड़के जानते नई हो। रघुवंशी, सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, यदुवंशी ये सब परिवार ही तो थे। तुम क्या चाहते हो हम अपनी पारिवारिक विरासत को भूल जाएं?
क्या अखिलेश हमें भूल सकता है? राहुल गांधी राजीव, इंदिरा, नेहरू को भूल जाएं? उद्धव बाल ठाकरे को भूल गया क्या या वसुंधरा ने राजमाता सिंधिया को भुला दिया? हम परिवार से शक्ति ग्रहण करते हैं और उसका इस्तेमाल परिवार को, हमाये केहने का मतलब है देश को मजबूत करने में करते हैं।
लेकिन समाजवादी तो परिवारवाद के विरोधी थे। लोहिया ने तो वंशवाद का घनघोर विरोध किया था?
जेई तो तुम लोगन के साथ मुस्किल हे। तुम लोग बोलते ज़्यादा हो, सुनते कम और पढ़ते और भी कम। जे सही है कि मसाजवादी… माने समाजवादी परिवारवाद के ख़िलाफ हैं और लोहिया ने इसका जम कर विरोध भी किया था। लेकिन उन्होंने नेहरू परिवार का विरोध किया था, एक ही परिवार के वर्चस्व का विरोध किया था। लेकिन अब तो बहुत सारे परिवार हो गए हैं न। एक तरह से परिवारवाद का विकेंद्रीकरण हो गया जो बताता है कि हम समाजवाद की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं।
आपने तो एक नये तरह के समाजवाद की स्थापना कर दी है। परिवारवादी समाजवाद की।
अब आपको हमारी बात समझ में आ गई है तो हमारे इस योगदान को जन-जन तक पहुँचाइए। लोग हमारे बारे में उल्टी-सीधी बातें बनाते हैं। अब देखो, लोगों को समझ में ही नr आता कि हमने समाजवाद को कैसे-कैसे अपडेट किया है, उसे तरोताज़ा बनाया है।
पहले इसे जातिवाद से पुष्ट करके जातिवादी समाजवाद का आविष्कार किया। फिर कार्पोरेट के साथ मिल कर कार्पोरेट समाजवाद बनाया और अब ये नया वंशवादी समाजवाद। हमने आज़म ख़ाँ से कहा है कि अपने विश्विद्यालय में इस पर पीएच. डी. करवाओ और भारत में मसाजवाद… माने समाजवाद के विकास को सिलेबस में शामिल भी करवाओ।
तो अब जनता परिवार आगे क्या करेगा?
देखो पार्टी का नाम तो तय हो गया है…मसाजवादी… माने समाजवादी जनता पार्टी। इसके बाद हम सब से कहेंगे कि अभी चुनाव में टेम है इसलिए पहले अपने-अपने परिवारों को मजबूत करो। वे जितना मजबूत होंगे, पार्टी भी उतनी ही मजबूत होगी।
हमने शरद, नीतीश और उन तमाम दूसरे नेताओं से कहा है जिन्होंने अभी तक अपने परिवारों की ओर ध्यान नहीं दिया है कि वे भी अपने परिवारों को मजबूत करें। एक बार जब जे हो जाएगा तो संघ परिवार को पसीने छूटने लगेंगे। गांधी परिवार तो खत्म हो ही चुका है इसलिए अब जनता परिवार को सत्ता में आने से कोई रोक नहीं पाएगा।
लेकिन जनता के बारे में भी कुछ सोचा है आप लोगों ने?
और नहीं तो क्या? जे सब जनता के लिए ही तो सोच रहे हैं। परिवार मजबूत तो पार्टी मजबूत और पार्टी मजबूत तो जनता मजबूत। सीधी-सी बात है समझने की। अब अगर आप लोग समझना ही नहीं चाहते तो हम क्या कर सकते हैं।
नहीं, मैं समझ गया। यह भी समझ गया कि पत्रकारिता में भी शांति, स्थिरता और प्रगति तभी आयेगी, जब पत्रकारों के परिवार मजबूत होंगे और इसी सूत्र में लोकतंत्र, देश और समाज की तरक्की छिपी हुई है।
(देश मंथन, 12 दिसंबर 2014)