शिव ओम गुप्ता :
केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी का 2012 में वहाँ की विधानसभा में दिये बयान के मुताबिक वर्ष 2006 से 2012 के बीच केरल में कुल 7,000 से अधिक लोगों को धर्म परिवर्तन के जरिए मुसलमान बनाया गया, लेकिन किसी भी नेशनल चैनल्स ने चर्चा तो छोड़ो, टिकर भी देना मुनासिब नहीं समझा। लेकिन आज मीडिया चैनल्स ने इस पर मछली बाजार सजा दिया है।
क्या मीडिया पर सवाल नहीं उठने चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रहा है या महज हंगामा खड़ा करना ही अब मीडिया का मकसद रह गया है? वर्ष 2006 से 2009 के बीच मनमोहन सरकार के दौरान कम-से-कम 9000 लोगों ने धर्मांतरण किया, जिनमें 2000 से अधिक लोगों ने मुस्लिम धर्म छोड़ कर हिंदू धर्म स्वीकार किया था। पर तब न तो नेताओं ने कुछ बोला और न तथाकथित ज़िम्मेदार मीडिया ने इस पर कोई चर्चा (हो-हल्ला) की थी?
यही नहीं, पूरे उत्तर-पूर्व में मिशनरियों ने पैसे और अन्य लालचो़ं के धोखे से 90% हिंदू आबादी को ईसाई बना दिया है। लेकिन मीडिया इस पर भी चुप रहा है, आखिर क्यों? उत्तर-पूर्व ही क्यों, देश भर के अलग-अलग हिस्सों में भी ऐसा ही हो रहा है। लेकिन मीडिया वहाँ इतनी गंभीर नहीं। क्यों? क्या इसलिए कि वहाँ मसाला नहीं है?
पूरे उत्तर-पूर्व में राशन कार्ड जैसी चीज़ों के लिए हर वर्ष हजारों हिंदू जबरन ईसाई बनाये जाते हैं, पर मीडिया कान में तेल डाल कर सोया रहती है। क्या इसलिए कि उत्तर-पूर्व की खबरों में ज्यादा टीआरपी नहीं होता है?
मीडिया देश का एजेंडा तय करता है। लेकिन मीडिया कई बार किस तरह इकतरफा रिपोर्टिंग करता है, इसका सबूत सबके सामने है! क्या मीडिया दिन भर की तमा़शाई खबरों का मजमा लगाता है और उन्हीं खबरों को मुद्दा और एजेंडा बनाता है, जिसमें अधिक विवाद और दर्शक मिलते हैं! अब देश की जनता और दर्शकों को तय करना होगा कि वे कितनी जिम्मेदार हैं और वे मीडिया के चोचलों और झांसों से कैसे निपटेंगे?
देश के दर्शकों-पाठकों को मीडिया को अब बताना ही होगा कि वे समाचार चैनल या अखबार मनोरंजन के लिए नहीं, मसाले के लिए नहीं, बल्कि देश का हाल जानने-समझने के लिए देखते-पढ़ते है। मनोरंजन के लिए सैकड़ों चैनल हैं और हाथ में रिमोट है!
ऐसा करके ही मीडिया को जिम्मेदार बनाया जा सकेगा और तभी मीडिया देश की बुनियादी मुद्दों को उठायेगी और मसालों को छोड़ विकास को एजेंडा बनाना शुरू करेगा?
हालाँकि इन सबके लिए दर्शक भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितना कि मीडिया, क्योंकि दर्शक खुद मसालेदार खबरों के आदी हो चुके हैं? जब लोग मसाला ही देखेंगे और देश की अन्य खबरों को तरजीह नहीं देंगे तो टीआरपी के लिए वैसी ही खबरे परोसी जायेंगी, जहाँ हमारा रिमोट रूक जाता है?
निःसंदेह दर्शक अगर मसालेदार खबरों से नजरें फिराना शुरू करके सिर्फ और सिर्फ गंभीर खबरें देखना शुरू कर दें तो देश के विकास और समस्याओं से जुडी खबरें चलनी शुरू हो जायेंगी और समाचार चैनलों से मसालेदार खबरें खुद-ब-खुद गायब होने लगेंगी!
(देश मंथन, 12 दिसंबर 2014)