संदीप त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार :
बिहार से अलग हुए राज्य झारखंड में नयी विधानसभा के लिए तीन चरण के मतदान हो चुके हैं। वर्ष 2009 के मुकाबले इस बार मतदान प्रतिशत 6-8% बढ़ा हुआ दिख रहा है। इसके मायने क्या हैं? इस बार पहले चरण में 61.92%, दूसरे चरण में 64.68% और तीसरे चरण में 60.89% मतदान हुआ। इसके मुकाबले पिछली बार औसतन 55% वोट पड़े थे।
यह बढ़ा प्रतिशत इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि नक्सली गुट इस मतदान प्रक्रिया को बाधित करने की हरसंभव कोशिश कर रहे थे। पहले चरण में करीब 62% मतदान होने के बाद पड़ोस के छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों ने सीआरपीएफ शिविर पर हमला कर एक संदेश देने की कोशिश भी की थी, इसमें 13 जवान मारे गये थे।
लेकिन इस हमले के ठीक बाद के चरण के मतदान में झारखंड के मतदाताओं ने 65% तक मतदान कर नक्सलियों को करारा जवाब दिया। इस चरण में 70% सीटें संवेदनशील थीं और तीन जिले नक्सल प्रभावित थे। लेकिन अब तक सर्वाधिक मतदान इसी चरण में हुआ। इस चरण में 2009 के चुनावों के मुकाबले लगभग 7.5% ज्यादा मतदान हुआ।
इस बढ़े मतदान प्रतिशत का एक और मतलब भी है। अमूमन जनता जब पशोपेश में होती है तो मतदान प्रतिशत कम होता है, जनता अगर किसी खास पार्टी के पक्ष में दृढ़ फैसला कर ले तो मतदान प्रतिशत बढ़ जाता है। तो क्या माना जाये कि झारखंड की जनता इस विधानसभा चुनाव में किसी दृढ़ निश्चय पर पहुँच गयी है?
क्या माना जाये कि झारखंड की जनता लगातार भ्रष्टाचार और अस्थिर सरकार से ऊब कर किसी खास फैसले तक पहुँच गयी है? क्या इस बार दागी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पायेंगे? क्या इस बार जनता ने विकास के पक्ष में वोट करने की ठान ली है?
क्या अब जनता में नक्सलियों का खौफ खत्म हो चुका है? यह खौफ खत्म होना यह भी इशारा करता है कि जनता को अब किसी पर भरोसा हो गया है जिसके भरोसे वह खौफ को, अपने अंदर के अह-जह, नाउम्मीदी को तिलांजलि दे चुकी है। तो यह भरोसा किस पर है, इसका मतगणना के बाद ही पता चलेगा। लेकिन यह बढ़ा मतदान प्रतिशत अस्थिर सरकारों की भूमि रहे झारखंड में इस बार एक स्थिर सरकार का संकेत तो देता है।
अब आइये, मतदान के पहले चरण से पहले हुए विभिन्न चैनलों के सर्वेक्षणों पर निगाह डालते हैं। न्यूज नेशन चैनल झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा गठबंधन को 42-46 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत दे रहा है। हालाँकि एबीपी-नीलसन का सर्वेक्षण भाजपा गठबंधन को 37 सीटें देकर बहुमत से थोड़ा पीछे बता रहा है।
दूसरे स्थान पर कौन पार्टी होगी, इस पर चैनलों के सर्वेक्षणों में अलग-अलग परिणाम आ रहे हैं। न्यूज नेशन झामुमो को, तो एबीपी कांग्रेस-जदयू-राजद युति को दूसरे नंबर पर मान रहा है। एक बात साफ है कि पहले स्थान पर कौन पार्टी होगी, यह तय है। अब सवाल इस बात का है कि कोई दल या गठबंधन बहुमत के आँकड़े को छूता है या नहीं?
यही सवाल तीनों मुख्य गठबन्धनों/दलों को भी मथ रहा है। यही वजह है कि भाजपा के प्रदेश नेताओं और बिहार के नेताओं के झारखंड चुनाव में पूरी तरह जुटे होने के बावजूद भाजपा के राष्ट्रीय नेता भी झारखंड की समर भूमि में नियमित रूप से जंग करते दिख रहे हैं।
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष झारखंड में लगातार सभाएँ कर रहे हैं और झामुमो को निशाने पर ले रहे हैं। भाजपा ने भ्रष्टाचार, अस्थिरता, विकास और परिवारवाद को मुद्दा बनाया है। झामुमो की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार दौरे करके अपनी साख बचने की जुगत में हैं।
कांग्रेस की ओर से सोनिया और राहुल गांधी भी झारखंड को समय दे रहे हैं और मोदी को निशाने पर ले कर उन्हें नाकाम बता रहे हैं। यानी झारखंड के चुनाव में एक बार फिर मतदान मोदी के नाम पर ही हो रहा है।
फ़िलहाल मतगणना तक आप स्वतंत्र हैं यह अंदाजा लगाने के लिए कि कौन पार्टी जीतेगी, किसी को बहुमत मिलेगा या नहीं और कौन बनेगा मुख्यमंत्री!
(देश मंथन, 13 दिसंबर 2014)