साइकिल भी ट्रेन से चलती है तेज

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

गुजरात में दभोई-मियागाम के अलावा गुजरात में प्रतापनगर (वड़ोदरा) और जांबुसार जंक्शन और कोसांबा उमरपाडा, बिलिमोरा वाघाई के बीच अभी भी नैरोगेज रेल नेटवर्क संचालित हो रहा है। प्रतापनगर से जंबुसार नैरोगेज रेलवे लाइन की कुल लंबाई 51 किलोमीटर है।

पहले ये लाइन सामनी तक जाती थी, जिसकी कुल दूरी 75 किलोमीटर थी। पर अब यह प्रतापनगर तक ही सीमित हो गई है। प्रतापनगर और जांबुसार के बीच 13 रेलवे स्टेशन हैं।

रेलगाड़ी के साथ ही चलता है टिकट घर

मजे की बात है कि ये देश का अनूठा रेलवे नेटवर्क इस मायने में हैं कि इसमें रेलवे का टिकट घर साथ-साथ ही चलता है। प्रताप नगर से जंबुसार के बीच पड़ने वाले रेलवे स्टेशनों पर टिकट बिक्री के लिए काउंटर नहीं हैं। सुबह शाम चलने वाली ट्रेन जब स्टेशन पर आती है तो रुकने पर चढ़ने वाले यात्री ट्रेन के ही एक कोच में मौजूद टिकट काउंटर से टिकट खरीदते हैं। इन्हें पुराने आकार के पीले रंग के गत्ते वाले टिकट दिए जाते हैं। आमतौर पर बसों में टिकट बेचने वाला कंडक्टर बस के साथ-साथ चलता है। पर ये एक ऐसी ट्रेन है, जिसमें टिकट घर रेलगाड़ी के ही साथ-साथ चलता है। 2012 में इस ट्रेन पर यात्रा करने वाली लिपिका हैदर अपने यात्रा के मजेदार संस्मरण साझा करती हैं। उन्होंने इसे दुनिया की सुस्त ट्रेन और सफर को बोरियत भरा करार दिया है। प्रतापनगर जंबुसार जंक्शन के बीच चलने वाली नैरोगेज ट्रेन के एक डिब्बे में 36 यात्रियों के बैठने की जगह है।

ये है दुनिया का सबसे सुस्त नेटवर्क

प्रतापनगर और जांबुसार के बीच दोनों स्टेशनों के बीच दो जोड़ी पैसेंजर ट्रेनों का संचालन होता है। 52,036 पैसेंजर प्रतापनगर से सुबह 10 बजे चलती है जो 1 बजे जांबुसार पहुंचती है। वहीं 52,034 पैसेंजर शाम 6.10 बजे जांबुसार के लिए चलती है जो रात को 9.10 बजे जांबुसार पहुंचती है। यानी 50 किलोमीटर के सफर के लिए तीन घंटे से ज्यादा का वक्त। औसत गति 15 से 17 किलोमीटर प्रतिघंटा की। एक साइकिल वाला भी औसतन 20 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से साइकिल दौड़ाता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जेडीएम 5 लोको से चलने के बावजूद ये ट्रेन इतनी सुस्त क्यों है। वैसे जेडीएम 5 की अधिकतम स्पीड 50 किलोमीटर प्रति घंटे तक होती है। प्रताप नगर जंबुसार नैरोगेज लाइन पर भी रेलगाड़ियों को सीमित संसाधनों के बीच कम खर्च में चलाया जा रहा है। आसपास में सड़कों का बेहतर नेटवर्क मौजूद होने के कारण ये रेलवे लाइन स्थानीय लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय नहीं है, लेकिन शाम को बड़ौदा से अपने गांव की ओर जाने वाले लोग बड़ी संख्या में इस रेलवे लाइन का इस्तेमाल करते हैं।

इस मार्ग पर सफर के दौरान आपको गुजरात के गाँव दिखाई देते हैं। कपास, तंबाकू और अलसी के हरे-भरे खेतों के साथ चलता है 50 किलोमीटर का सफर। कहीं घर के आगे बंधी हुई भैंसे दिखाई देती हैं तो कहीं पेड़ों पर बंदर चहलकदमी करते तो राष्ट्रीय पक्षी मोर नाचते हुए दिखाई दे जाते हैं। सफर सुस्त है तो प्रकृति के नजारों का मजा लिजिए।

प्रतापनगर जंबुसार मार्ग पर भी रायपुर धमतरी की तरह ही हर सड़क पर आने वाली क्रासिंग से पहले रेलगाड़ी रूक जाती है। रेल से खलासी उतर कर जाता है गेट को बंद करता है। रेलगाड़ी चलती है गेट क्रास करने के बाद फिर रूक जाती है। खलासी वापस जाकर गेट को खोलता है फिर ट्रेन आगे बढ़ती है। खलासी के अलावा लोको पायलट, असिस्टेंट लोको पायलट और एक गार्ड ट्रेन में चलते हैं। 

प्रतापनगर जंबुसार के बीच चलने वाली नैरो गेज ट्रेन 1997 से पहले 45 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी दौड़ती थी। पर रेलवे क्रासिंग से गार्ड हटाए जाने के बाद इसकी गति सुस्त पड़ गई। वहीं दभाई के आसपास वाली नैरोगेज ट्रेनें आज भी 35 किलोमीटर तक की गति से चलती हैं। शाम को प्रतापनगर से जंबुसार के बीच चलने वाली ट्रेन में कोई सुरक्षा भी नहीं है।

प्रतापनगर (वड़ोदरा) में है नैरोगेज का विशाल वर्कशाप

नैरोगेज ट्रेनों के रख रखाव और मरम्मत के लिए बड़ौदा के पास प्रतापनगर में वर्कशाप की स्थापना की गई। स्टीम लोको के लिए इस वर्कशाप की स्थापना की गई थी। 25 मार्च 1919 को वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड ने प्रतापनगर वर्कशाप की आधारशिला रखी। 1922 में यहां नियमित तौर पर कामकाज शुरू हो गया था। 1949 तक यह गायकवाड बड़ौदा स्टेट रेलवे ( जीबीएसआर) का हिस्सा था। 1949 में भारतीय रेलवे में समाहित होने के बाद ये अब भारत सरकार के स्वामित्व में है। वड़ोदरा रेलवे स्टेशन से प्रतापनगर डीजल शेड की दूरी 4 किलोमीटर है।

गायकवाड वड़ोदरा स्टेट रेलवे (जीबीएसआर) के लिए लोको यानी इंजन की सप्लाई का काम शुरुआती दौर में डब्लू जी बागनाल लिमिटेड नामक कंपनी करती थी, जबकि सवारी डिब्बों और मालगाड़ी के डिब्बों के निर्माण गुजरात में ही स्थानीय स्तर पर किया जाता था। बड़ौदा स्टेट रेलवे के बाद देश में 1880 में दार्जिलिंग हिमालयन रेल दूसरी नैरोगेज लाइन बिछाई गई, जिसके पटरियों की चौड़ाई दो फीट थी।

सन 1990 में बड़ौदा शहर के प्रतापनगर नैरोगेज शेड को पूरी तरह डीजल लोकोशेड में बदल दिया गया। आजकल ये देश का सबसे बड़ा नैरोगेज का डीजल लोकोशेड है। 25,600 वर्ग मीटर में फैले इस प्रतापनगर वर्कशाप के पास आज कुल 26 नैरोगेज के डीजल लोको हैं। ये जेडीएम- 5 सीरीज के हैं। हालाँकि यहाँ 50 लोको को रखने की कुल क्षमता है। 

(देश मंथन, 26 फरवरी 2015)

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