कृपया काम अधिक, छुट्टियाँ कम कीजिए जज साहब

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अभिरंजन कुमार :

न्यायाधीशों की कांफ्रेंस का इस आधार पर विरोध करना कि वह गुड फ्राइडे के दिन क्यों रखी गयी, जस्टिस जोसेफ कुरियन की सांप्रदायिक, संकीर्ण और कुंठित सोच को दर्शाता है।

अगर उन्हें परिवार के साथ छुट्टी मनानी थी, तो वे मनाते। अगर उन्हें मोदी की डिनर पार्टी में नहीं जाना था, तो नहीं जाते। शालीनतापूर्वक वे सरकार को इसकी सूचना भी दे सकते थे। उनकी निजता और उनके नागरिक अधिकारों का हर कोई सम्मान करता, लेकिन इस मामले को सांप्रदायिक रंग देकर उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा तो गंवाई ही है, जजों का सम्मान भी कम किया है।

एक बात और। अलग-अलग धर्मों और जातियों के लोगों के तुष्टीकरण के लिए भारत सरकार ने थोक में छुट्टियाँ एलान कर रखी हैं। इनमें कटौती किए जाने की सख्त जरूरत है। भारत जैसे उभरते हुए और विकासशील देश को अधिक से अधिक काम करना चाहिए, न कि हर रोज किसी न किसी बात की छुट्टी मनाकर अपना वक्त बर्बाद करना चाहिए। इतनी छुट्टियों की वजह से आम लोगों को काफी परेशानी होती है और उनके काम लटकते चले जाते हैं।

दुर्भाग्य यह है कि छुट्टियाँ मनाने में देश की अदालतें और भी आगे हैं। देश भर की अदालतों में इस वक्त तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। ऐसे में जस्टिस कुरियन अगर प्रधानमंत्री को इस बात के लिए चिट्ठी लिखते कि लंबित मामलों को किस तरह जल्दी से जल्दी निपटाया जाये और किस तरह समाज के अंतिम व्यक्ति तक तेज और निर्बाध न्याय पहुँचाया जाये, तो उनका सम्मान बढ़ता, लेकिन एक गैर-जरूरी सवाल उठाकर उन्होंने क्या साबित करना चाहा है?

मेरा निजी राय यह है कि दो राष्ट्रीय त्योहारों 15 अगस्त और 26 जनवरी… इनके अलावा चार प्रमुख पर्व- होली, दिवाली, ईद और क्रिसमस, जिन्हें प्रायः सभी धर्मों के लोग मनाते हैं- इन छह को छोड़कर किसी अन्य दिन राष्ट्रीय छुट्टी होनी ही नहीं चाहिए। अगर इस देश की सरकारें धर्मनिरपेक्षता के चोले में सांप्रदायिक और जातीय तुष्टीकरण बंद नहीं कर सकतीं, तो अन्य पर्व-त्योहारों की छुट्टियों को वर्ग-विशेष के लोगों तक सीमित कर दें, लेकिन इस बात की कोई तुक नहीं है कि 50 लाख या 5 करोड़ लोगों के त्योहार के दिन देश के सभी 125 करोड़ लोग छुट्टी मनायें।

मैं तो यह भी मानता हूँ कि महात्मा गांधी समेत सभी महापुरुषों के जन्मदिन की भी छुट्टियाँ बंद की जानी चाहिए। महापुरुषों के जन्मदिन पर देश को आप मेहनत करने के लिए प्रेरित करेंगे या इसे तफरीह मनाने का दिन बना देंगे?

अफसोस की बात यह भी है कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों को न वाजिब छुट्टियाँ मिलती हैं, न उनके काम के घंटे बंधे होते हैं, न उनकी सेवा-शर्तें ठीक होती हैं, फिर भी कहीं कोई सवाल नहीं उठता, लेकिन सरकार में सबको छुट्टियाँ चाहिए और काम न करने के बहाने चाहिए। तमाम सरकारी संस्थाओं और कंपनियों की विफलता के पीछे सबसे बड़ी वजह यही प्रवृत्ति है। इस प्रवृत्ति को तत्काल रोका जाना चाहिए।

अगर इस देश को विकास करना है तो उसे काम ज्यादा करना चाहिए और छुट्टियाँ कम मनानी चाहिए।

(देश मंथन, 07 अप्रैल 2015)

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