गुमनामी बाबा ‘ नेताजी’ से एक यादगार मुलाकात

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पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार : 

यह पोस्ट दो बरस पहले नेताजी की जयंती पर लिखी थी। पिछले दिनो नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों में दो के सार्वजनिक होने के बाद इस रहस्योद्घाटन से कि सुभाष बाबू के परिजनों की 1948 से 1968 तक तत्कालीन भारत सरकारें जासूसी कराती रहीं, देश मे हड़कंप मच गया है।

जर्मनी की यात्रा कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जर्मनी में रह रहे नेताजी के रिश्तेदार उनसे मिलने वाले हैं। उनकी मांग है कि सभी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक किया जाये ताकि नेताजी की मौत को लेकर पड़े रहस्य पर से पर्दा उठ सके। वैसे राजग सरकार कांग्रेस के पदचिन्हों पर चलते हुए इस तर्क के साथ इनकार कर चुकी है पहले कि फाइलों के खुलासे से विदेशों के साथ संबंध खराब हो जायेंगे। पर बदली हुई परिस्थितियों में देखना है कि सरकार देश के जनमत के साथ जाती है या फिर उसी थोथे तर्क पर टिकी रहती है?

बताने की जरूरत नहीं कि आज की परिस्थितियों में नेताजी सरीखे नेतृत्व की देश को कितनी सख्त जरूरत है। मन भारी सा था। सोच रहा था कि रहस्य के आवरण में लिपटी नेताजी की मौत आज भी देशवासियों के दिलों में कांटे की मानिंद चुभ रही है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए जो तीन जाँच आयोग बिठाये गये थे, क्यों नहीं किसी निष्कर्ष तक पहुँच सके और क्या वाकई उनकी मौत 1945 की विमान दुर्घटना में हो गयी थी, क्या जापान में रखी अस्थियाँ नेताजी की ही हैं और यदि हैं तो उनका DNA क्यों नहीं कराया गया, सोवियत संघ का अस्तित्व समाप्त होने के बावजूद मास्को के अभिलेखागार में मौजूद नेताजी की मौत से सम्बंधित गुप्त दस्तावेज देखने की चेष्टा क्यों नहीं की गयी? ये तमाम सवाल आज भी अनुत्तरित हैं। यह भी एक यक्ष प्रश्न है कि अंतिम तीसरी जांच में जांचकर्ता मुखर्जी की रिपोर्ट भी यूपीए सरकार ने सन् 2006 में क्यों खारिज कर दी थी? जबकि वह सच के काफी करीब पहुँच चुके थे। उनका मानना था कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे और उनका निधन 1985 में हुआ था। इन्ही बाबा को लोग शौलमारी आश्रम के स्वामी शारदानंद के रूप में भी जानते थे। मैं नहीं जानता कि क्या बाबा ही नेताजी थे? लेकिन इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह जो भी थे, कोई महान आत्मा ही, जिनके पास देश के लिए एक सुपष्ट खाका था। मै उनसे मिला था सत्तर के दशक में। लगभग एक सप्ताह का प्रवास रहा था। मैं इस विषय पर फिर कभी लिखना चाहता था पर पुराने मित्र भाई अनिल श्रीवास्तव की इच्छा शिरोधार्य कर उन स्मृतियों को साझा करना चाहता हूँ जिनकी काफी कुछ कड़ियाँ वक्त के थपेड़े खाकर बिखर सी गयी हैं, फिर भी दिमाग में जो कुछ भी स्टोरेज था, उसे सामने लाने की यह कोशिश है। बात 1974-1975 के आसपास की है। एक मित्र के माध्यम से जानकारी हुयी कि छठे दशक में काफी चर्चित रहे स्वामी शारदानंद, जिनके बारे में कहा जाता है कि वही नेताजी है, इस समय देहरादून में हैं और उनसे चाहो तो मुलाकात हो सकती है। कौन ऐसा भारतवासी होगा जो नेताजी के बारे में जानने के लिए उत्सुक न हो। मै भी अपवाद नहीं था। असल में स्वामीजी चर्चा में आने के पहले कैथी के कछार की कंदराओं में वर्षों रहे थे और एक परिवार उनकी देख रेख करता था। सम्पर्क करने पर पता चला कि मिलना आसान नहीं है। पहले अपने पूरे परिचय और दो पासपोर्ट साइज फोटो के साथ आवेदन करना होगा। उनकी टीम छानबीन करने के बाद मुलाकात के लिए तिथि और समय देगी। एक माह की प्रतीक्षा के बाद बुलावा आ गया। हम चार लोग थे। उनमे एक मेरा मित्र उस समय बनारस में बतौर सिटी मजिस्ट्रेट तैनात सर्वानन्द सिंह का पुत्र शशि सिंह भी था।

उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय सर्वानन्द सिंह रामनगर पीएसी काण्ड में काफी चर्चित रहे थे। उनको भी बता दिया गया था अपनी इस यात्रा के बारे में। खैर, हम चार लोग देहरादून एक्सप्रेस से रवाना हुये। राजपुर रोड स्थित एक कर्नल के बंगले में उन दिनों स्वामीजी का ठिकाना था। सबसे पहले मुलाकात हुयी उनके निजी सचिव डाक्टर रमणी से। उन्होंने शाम को भेंट का समय दिया। बंगले में ही हमारे ठहरने का प्रबंध था। साथ में आये कैथी वाले सज्जन ने बताया कि नेहरू जी की बहन श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित का बंगला भी पास में ही है। पता चला कि नेताजी की सहयोगी कैप्टन लक्ष्मी सहगल का होटल भी यहीं है और सहगल हों या श्रीमती पंडित दोनों ही स्वामी जी के संपर्क में हैं। इस जानकारी के बाद शारदानन्द जी से मिलने की उत्कंठा और भी प्रबल हो चुकी थी। हुयी शाम और हुआ स्वामीजी का आगमन। बंगले के बीच एक आँगन, सामने सीढ़ियाँ काठ की और ऊपर एक छोटा सा कमरा …. स्वामी जी के हाथ की अँगुलियों में फंसी विशेष ब्रांड की सिगरेट, सफेद बंडी और उसी रंग की लुंगी की तरह लपेटी धोती, गेहुआं रंग, उन्नत ललाट, घुटी चाँद की पीछे लम्बे केश और धवल लम्बी दाढ़ी और घनी मूछों में छिपे काले पड़ चुके होठ ….!! गुरुकुल के किसी आचार्य या ऋषि सरीखी उनकी छवि किसी को भी पहली झलक में ही विस्मित करने वाली लगी। यदि यह कहूँ कि पहली नजर में ही वो नेताजी लगे तो यह सच नहीं है। लम्बी दाढ़ी उनके चेहरे को छुपा ले रही थी। गोद में एक छोटी सी बच्ची थी, जिसके बारे में पता चला कि वह रमणी की पौत्री है। परिचय के बाद शुरू हुआ उनका धीर-गंभीर संबोधन, जिसमे चिंतन था देश की दशा और दिशा सुधारने का तो उसके क्रियान्वयन की एक दम सुस्पष्ट नीतियाँ भी थीं उनके पास। हम डायरी में नोट करते जा रहे थे। अनिल भाई ने जब आज इस विषय पर लिखने को कहा तब मै पशोपेश में पड़ गया। वह डायरी मिल नहीं रही थी, जिसमें उनके संबोधन की सारी नोटिंग थी। यादों के सहारे मैं इतना ही कह सकता हूँ कि सिचाई के लिए जमीन के नीचे नहरों का देश में जाल बिछाने का व्यावहारिक सपना था उनका। अंगरेजी भी ऐसी गोया कोई संस्कृत बोल रहा हो। हरकूलियन टास्क और हिमालयन करेज जैसे शब्द उनके लिए आम थे। प्रति दिन दो सत्रों में सुबह-शाम ही वह कक्ष से बाहर निकलते थे। विषय विशेष पर लगभग एक घंटे तक धारा प्रवाह संबोधन शायद उनकी दिनचर्या का अंग था। हमें उनसे प्रश्न पूछने की इजाजत नहीं थी। इस दौरान सिगरेट कभी बुझी नहीं, एक से दूसरी सुलगती रहती थी और प्रवचन जारी रहता था। हमारे परिवार के बारे में एक एक बात खोद-खोद कर पूछना भी उनके स्वाभाव का एक अंग था। वर्तमान राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति उनकी जानकारी सम्पूर्ण थी। काफी कुछ ऐसी चर्चा भी हुयी उस प्रवास के दौरान जिसकी चर्चा अब उचित नहीं। यह सिलसिला सात दिनों तक चला। एक दिन स्वामीजी ने अपनी दिनचर्या तोड़ कर हम सभी के लिए अपने हाथों से पायस (खीर) बनायी। नारियल-चावल मिश्रित खीर का स्वाद आज भी उनकी याद दिलाता है। बताया जाता है कि बाबा अंतिम दिनों में फैजाबाद में रह रहे थे। उनके सामानों में दांत भी मिले, जिनका डीएनए न किया जाना भी एक रहस्य ही है। समझ में नहीं आता कि उनकी लिखावट नेताजी से मेल भी खा रही थी और भी न जाने कितने साक्ष्य उनके नेताजी होने के दावे को पुष्ट करने के लिए पर्याप्त थे, फिर भी वह रिपोर्ट क्यों खारिज कर दी गयी? इसका जवाब शायद भविष्य देगा जब सही मायने में निष्पक्ष और लोकतान्त्रिक सरकार अस्तित्व में आयेगी और वह दिन बहुत दूर भी नहीं है। क्या राजग सरकार सदी के इस सबसे बड़े रहस्य को उजागर करेगी, आने वाला समय तय करेगा।

(देश मंथन, 15 अप्रैल 2015)

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