चोरी का धन मोरी (नाली) में जाता है

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

सुबह से उठ कर फोन पर लगा था। इसी चक्कर में आज जो लिखने का मन था, वो लिख नहीं पाया और जो लिख रहा हूँ उसे लिखने का मन नहीं। पर मैं भी क्या करूँ, पहले ही बता चुका हूँ कि रोज-रोज फेसबुक पर लिखना सिर्फ मेरे मन पर नहीं निर्भर करता। ये कोई और है जो मुझसे लिखवाता है, मैं निमित मात्र बन कर टाइप करता चला जाता हूँ।

मेरा तो मन करता है कि सुबह जब आप सबके सामने आऊँ, तो हँसी-खुशी की ऐसी यादें लेकर आऊँ कि सारा दिन मन खिला रहे। आज यही सोच कर जागा था कि बिहार की उस भोली महिला की कहानी सुनाउँगा, जिसके पति ने शहर से उसके पास एक चेक भेजा और महिला उसे भुनाने बैंक चली गयी। बैंक में अधिकारी ने उससे चेक के पीछे दस्तखत करने को कहा, तो महिला संकोच में पड़ गई, “ई दस्तखत का होत है?”

“अरे आप अपने पति को चिट्ठी लिखती होंगी न!”

“हाँ।”

“तो चिट्ठी में जैइसे आखिर में नाम लिखती हैं न, बस वइसे ही लिख दीजिए।”

महिला ने चेक के पीछे लिखा, “तोहार चुम्मा के प्यासी, बिजली।”

कल पत्नी ने ये वाला चुटकुला ह्वाट्सऐप पर पढ़ कर सुनाया था और मेरा मन सुबह-सुबह गुदगुदा गया था। 

मैंने सोचा था कि आज लिखने की शुरुआत इसी भोलेपन से करूँगा, लेकिन सुबह ही मेरे एक जानने वाले का फोन आया कि उन्होंने अपने जिस बेटे को पटना से दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा था, वो पढ़ाई-लिखाई नहीं करता। उसने पढ़ाई के नाम पर कई साल बर्बाद किए, शराब पीने लगा है, मारपीट जैसे मामलों में फँस गया है और पिता के पैसों को उड़ा रहा है। मेरे जानने वाले ने मुझसे पूछा कि उन्हें क्या करना चाहिए। कैसे बिगड़ रहे बेटे को सही राह पर लाया जाये।

मैं बहुत देर तक सोचता रहा। मुझे याद आया कि मेरे परिचित पटना में बिजनेस करते हैं। इधर-उधर करके जैसे-तैसे पैसे कमाते हैं। खूब कमाते हैं। पैसों के बूते ही दिल्ली से सटे यूपी के किसी कॉलेज में इंजीनियरिंग में उसका दाखिला भी करा दिया था। पर बेटा चार साल में एक सेमेस्टर नहीं निकाल पाया। 

जाहिर है इन चार सालों में उन्होंने हर संभव कोशिश की होगी कि बेटा सही राह पर चला आये, लेकिन बेटा उनकी सुनता ही नहीं। इस तरह पिता की सारी उम्मीदें टूट गयी हैं और आज सुबह घनघोर निराशा में उन्होंने मुझे फोन किया। वो रो रहे थे। वो जानना चाह रहे थे कि ऐसा क्यों हुआ।

सुबह-सुबह उनका दर्द सुन कर मेरा दिल भर आया। 

आदमी अपनी सारी जिन्दगी जायदाद जुटाने और औलाद को पढ़ाने में खर्च कर देता है। जायदाद और औलाद दोनों में खोट हो तो आदमी ठगा सा रह जाता है। 

जाहिर है मेरे परिचित का दुख बड़ा है। 

मैंने उनकी पूरी बात सुनी। फिर मैंने उनसे पूछा कि आप कभी बाहर खाना खाते हैं। वो मेरे सवाल को समझ नहीं पा रहे थे, पर उन्होंने कहा, “हाँ, खाता हूँ।” 

मैंने फिर पूछा, “आप कभी-कभी कहीं कुछ गलत या गन्दा खा लेते हैं तो क्या होता है?”

“पेट खराब हो जाता है। उल्टी-दस्त होने लगती है।”

“बिल्कुल सही कहा आपने।”

“संजय जी, पहली मत बुझाइए। मैं बहुत सीरियस हूँ। आपको इसलिए फोन किया ताकि आप कुछ रास्ता बताएँ।”

“मै पहेली नहीं बुझा रहा। मैं तो आपकी समस्या का कारण और समाधान बता रहा हूँ।”

“ठीक है। जब कभी मैं बाहर कुछ गलत या गन्दा खा लेता हूँ तो मेरा पेट खराब हो जाता है। उल्टियाँ होती हैं, दस्त होता है। पेट में दर्द भी होता है। अब आगे बोलिए।”

“जब आपके पेट में दर्द होता है तब आप डॉक्टर के पास जाते हैं। डॉक्टर कहता है कि आपने कुछ ऐसा खा लिया है, जो नहीं पचा। अब आप ये दवा खाइए, कुछ दिन परहेज कीजिए। गन्दा खाना मत खाएँ। बस।”

“हाँ, बिल्कुल सही। डॉक्टर ऐसा ही कहता है।”

“आपका बेटा भी आपके गलत पैसों के बूते यहाँ पढ़ने आया, वो पैसा उसे नहीं फला और वो अपना तो जो बिगाड़ना था, बिगाड़ ही बैठा, आपके दुख का कारण भी बन गया।”

“ये बात मेरी समझ में नहीं आयी।”

“जिस तरह गन्दगी में बना भोजन खाने में स्वादिष्ट होता है पर शरीर को नुकसान पहुँचाता है, वैसे ही गलत तरीके से कमाया पैसा आपको क्षणिक सुख जरूर देता है, लेकिन वो इसी तरह बाहर भी निकलता है। आपने पैसे कमाने में ईमान का ध्यान नहीं रखा, वो सन्तान के सन्ताप के रूप में सामने आ रहा है।” 

मेरे परिचित कुछ देर चुप रहे। फिर उन्होंने कहा कि ये तो पहली बार सुन रहा हूँ कि पैसा भी अलग-अलग होता है।

“जी हाँ, एकदम अलग-अलग होता है। जिस तरह कमाया जाता है, उसी तरह जाता है। गन्दा खाना पेट खराब करता है, गन्दी कमायी भविष्य खराब कर देती है।”

मेरे इस कदर रूखे होने पर उन्हें बुरा तो लगा होगा, लेकिन मन ही मन वो समझ रहे थे कि मैं क्या कह रहा हूँ। 

उन्होंने पूछा, “कोई उपाय?”

“उपाय तो एक ही है। अभी उसे दिल्ली से ले जाइए। पढ़ाई छोड़िए, उसे अपने साथ रखिए। उसे जीवन की सार्थकता समझाइए। उसे बताइए कि सही और गलत में क्या अन्तर होता है। उसके रोल मॉडल बनिए। समय बर्बाद जरूर होगा, पर कुछ समय बाद स्थितियाँ बदल जायेंगी। फिर कसम खा लीजिए कि गलत तरीके से पैसे नहीं कमाना। सिर्फ ईमान का पैसा ही सन्तान पर लगता है। मेरी बातों पर यकीन न हो तो चाहे जितने उदाहरण लेने हों, ले लीजिएगा। जहाँ संदेह हो मुझसे पूछ लीजिएगा। चोरी का धन मोरी (नाली) में जाता है, ये सिर्फ गाँव की कहावत नहीं, एक सच भी है। आपका धन भी चोरी का था, बेटे के रूप में मोरी में जा रहा है।”

इसके बाद उन्होंने फोन रख दिया। 

मुझे यकीन है कि मेरे परिचित मेरी बात समझ गये होंगे। समझ गये होंगे, तो वक्त जरूर बर्बाद हुआ, बेटा बच जायेगा। 

खैर, अभी तो मेरी एक चिन्ता बिजली को लेकर भी है। 

वही बिजली जिसके पति ने उसके पास चेक भेजा और बिजली ने चेक के पीछे लिखा, “तोहार चुम्मा के प्यासी, बिजली।”

मुझे विश्वास है कि बिजली का पति गाँव से शहर आकर मेहनत और ईमानदारी से पैसे कमा रहा होगा। जब तक वो ईमानदारी के पैसे कमायेगा, बिजली उसकी चुम्मा की प्यासी रहेगी, जिस दिन गलत तरीके से पैसे कमाने और भेजने लगेगा, बिजली गुल हो जायेगी। 

(देश मंथन, 02 मई 2015)

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