गीत गाया पत्थरों ने : अजन्ता

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

यहाँ पत्थरों में सुनाई देता है संगीत। अनवरत संगीत। प्राणों को झंकृत कर देने वाला संगीत। जो अन्यत्र दुर्लभ है।

 सैकड़ों साल हजारों कलाकारों की अनवरत तपस्या की परिणति है अजन्ता की गुफाएँ।

अजन्ता की गुफाओं में बनी कलाकृतियों में हजारों शिल्पियों के श्रम और साधना को महसूस किया जा सकता है।

यहाँ पत्थरों से निकलने वाले संगीत को तो यहाँ पहुँच कर ही महसूस किया जा सकता है। तभी तो अजन्ता की गुफाएँ विश्व के सर्वश्रेष्ठ दर्शनीय स्थलों में एक हैं। दुनिया भर से लाखों सैलानी हर साल अजन्ता की गुफाओं में शान्ति, आध्यात्म और ज्ञान की तलाश में पहुँचते हैं। आप जिस नजरिये से भी देखें आपको कुछ अद्भुत दिखाई देगा यहाँ….  

काफी लोग ताजमहल को देखकर अद्भुत कहते हैं, पर अजन्ता की गुफाओं को देखने के बाद ये लगता है कि देश का दुनिया में ऐसी नायाब कृति कहीं नहीं हो सकती। वर्गुना नदी के तीन तरफ पहाड़ों की 20 मीटर गहराई तक काट कर गुफाएँ बनायी गयी हैं, जिसमें गौतम बुद्ध का जीवन दर्शन कलाकृतियों और मूर्ति शिल्प में उतारा गया है। ऐसा लगता है मानो पत्थर गीत गा रहे हों। सारी गुफाएँ देखते-देखते आप आनन्दित होती हैं, रोमान्चित होती हैं, अचरज करते हैं, कब शाम ढलने लगती है पता भी नहीं चलता। अजन्ता की 30 गुफाओं का निर्माण पहली शताब्दी से सातवीं शताब्दी के बीच हुआ है। सह्याद्रि की पहाड़ियों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। 1819 से पहले ये गुफाएँ सैकड़ो साल तक लोगों की नजरों से ओझल रही हैं।

इन गुफाओं की खोज आर्मी ऑफिसर जॉन स्मिथ व उनके दल द्वारा सन् 1819 में की गई थी। वे यहाँ शिकार करने आये थे, तभी उन्हें कतारबद्ध 29 गुफाओं की एक शृंखला नजर आयी और इस तरह ये गुफाएँ प्रसिद्ध हो गई। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएँ अत्यन्त ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्त्व की हैं।

इन गुफाओं का इस्तेमाल भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का अध्यनयन करने के लिए किया जाता था। एक गुफा ऐसी है, जिसके स्तंभ को थपकाने पर संगीत की धुन निकलती है। गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर बनायी गईं ये तस्वीहरें भगवान बुद्ध के जीवन की विभिन्नद घटनाओं और विभिन्नक बौद्ध देवत्वं की घटनाओं का चित्रण करती हैं। इसमें से सर्वाधिक महत्व पूर्ण चित्रों में जातक कथाएँ हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्म  से संबंधित विविध कहानियों का चित्रण करते हैं। यूनेस्कोत द्वारा 1983 में अजन्ता को विश्वि विरासत स्थनल घोषित किया गया। यह देश का पहला विश्व विरासत स्थल है।

कैसे पहुँचे 

औरंगाबाद से अजन्ता की दूरी 110 किलोमीटर है। औरंगाबाद सेंट्रल बस स्टैंड से नियमित तौर पर जलगाँव की तरफ जाने वाली बसें अजन्ता में रूकती हैं। पर अगर आपको सिर्फ अजन्ता जाना हो तो जलगाँव में रूक कर भी जा सकते हैं। जलगाँव से अजँता की दूरी महज 65 किलोमीटर है। अजँता की गुफाओं से पहले अजँता नामक एक गाँव आता है। यहाँ पर एक दो गेस्ट हाउस बने हैं। इस गाँव में भी एक किला नजर आता है।

बारिश में जाएँ आनन्द आयेगा 

बारिश के दिनों में अजन्ता का सौंदर्य बढ़ जाता है। आस-पास के पहाड़ों से लगातार झरने बह रहे होते हैं। पहाड़ों की हरियाली कई गुना बढ़ जाती है। आप अपने साथ छाता रखें। गुफा के अंदर तो वैसे भी बारिश से बचाव होगा। बाहर का नजारा नयनाभिराम होगा।

अजन्ता के प्रवेश द्वार के पास सड़क पर कोई मार्क नहीं बना हुआ है। पर जलगाँव औरंगाबाद के बीच चलने वाली बसें यहाँ रूक जाती हैं। गुफा का स्वागत कक्ष शानदार बना है। यहाँ पर 15 रुपये का शुल्क देना पड़ता है। यहाँ एक छोटा सा सुन्दर सा बाजार है। जहाँ खाने-पीने और उपहार खरीदने की सुविधा है। इस बाजार को पार करने के बाद एक बस स्टैंड आता है। यहाँ से अजँता के दूसरे प्रवेश द्वार के लिए बसें चलती हैं। 4 किलोमीटर की दूरी का किराया 15 रुपये है। एसी बस का किराया 20 रुपये है। मुख्य द्वार पर दुबारा प्रवेश का टिकट खरीदना पड़ता है। भारतीय लोगों का टिकट 10 रुपये का है। समूह में 5 रुपये का लाइटिंग का टिकट अलग से लेना पड़ता है। गुफाओं के बीच में जगह-जगह पेयजल का इन्तजाम किया गया है। 

(देश मंथन, 04  मई 2015)

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