खुशियों का संसार सच और विनम्रता से ही मिलता है

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

ऐसा जिन्दगी में बहुत बार होता है कि हम बदला किसी से लेते हैं, बदला किसी और से हो जाता है।

उस दिन अगर रानी कैकेयी की दासी मन्थरा अगर महल की छत पर नहीं गई होती तो त्रेतायुग का पूरा इतिहास आज अलग होता।

मन्थरा अयोध्या के राजा दशरथ की सबसे छोटी और दुलारी रानी कैकेयी के मायके से उनके साथ आयी थी।

उस दिन रानी कैकेयी महल में आराम कर रही थीं, राजा दशरथ कहीं नगर के बाहर गये थे। ऐसे में अकेली बैठी मन्थरा यूँ ही जरा खुले आसमान में उड़ते पन्छियों को देखने महल की छत पर चली गई। मन्थरा ने महल की छत से देखा कि पूरे अयोध्या नगर को सजाया जा रहा है। दीपों की छोटी-छोटी लड़ियों से सजते महल को देख मन्थरा बहुत उत्साहित हुई थी। उस जश्न में वो भी डूबने को बेताब थी। वो समझ रही थी कि जरूर कोई बड़ी खुशी की घटना घटी है, और पूरा नगर उल्लास में डूबने वाला है। मन्थरा मन ही मन सोच रही थी कि जश्न चाहे जैसा हो, वो खुद भी खूब सजेगी, संवरेगी और अपनी जान से प्यारी रानी कैकेयी के हाथों को मेहन्दी से सजायेगी, उनके केशों को इत्र की खुशबू में डूबो देगी।

मन्थरा ने छत के छज्जे से लटक कर देखा कि सामने ही महारानी कौशल्या की दासी उनके महल की छत पर दीपों की लड़ियों बड़े करीने से सजाने में व्यस्त है। मन्थरा ने बहुत शालीनता और दुलार से पूछा, “दीदी पूरा नगर आज सजता हुआ क्यों नजर आ रहा है?” कौशल्या की दासी ने मन्थरा की ओर देखा। एक पल को तो वो चुप रही, फिर उसने इठलाते हुए कहा, तुझे नहीं पता, कल महाराज दशरथ हमारे राम का युवराजाभिषेक करने जा रहे हैं। भविष्य में हमारे राम ही अयोध्या के राजा बनेंगे।”

मन्थरा दासी थी, उसे इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं थी कि राजा कौन है, भविष्य में किसका राज होगा। राम से पूरे अयोध्या को प्यार है, कैकेयी खुद भी राम से बहुत प्यार करती हैं, और मन्थरा को भी राम से बहुत प्यार है, राम उसकी गोद में भी खेले हैं, फिर ये दासी ऐसा क्यों कह रही है, “कल हमारे राम का राज्याभिषेक हो रहा है।”

“हमारे राम? तो क्या राम सिर्फ उसके हैं? क्योंकि वो दासी कौशल्या के महल में है और राम कौशल्या के पुत्र हैं, और इस दासी ने, जिसे मन्थरा ने अभी-अभी दीदी कह कर संबोधित किया है, राम की धाय रही है, इसलिए राम सिर्फ उसके हो गये? उसने ऐसा क्यों नहीं कहा कि तुम्हारे राम, या हम सबके राम का राज्याभिषेक होने जा रहा है। यकीनन इस संसार में आज किसी के लिए इससे ज्यादा खुशी की दूसरी कोई बात हो ही नहीं सकती थी कि राम हम सबके राजा बनने जा रहे हैं, लेकिन इस नौकरानी के अहंकार को तो देखो। कह रही है हमारे राम…।”

मन्थरा के तन-बदन में आग लग गई। कौशल्या की इस दासी की हेकड़ी मिटानी ही होगी। उसका मन उस दासी के कहे से बहुत आहत हुआ था। वो भागी-भागी रानी कैकेयी के कमरे में घुसी और उसने रानी को जगा कर कहा, “आप सारा दिन यहाँ इस महल में पड़ी रहिये, वहाँ आपका सबकुछ लुटने को तैयार है।” रानी ने आश्चर्य से पूछा, “क्या हुआ मेरी प्यारी मन्थरा, तुम इस कदर क्रोध में क्यों हो?”

मन्थरा ने बताया कि कैसे कौशल्या की दासी ने अभी-अभी उसे छत पर बताया कि राम को कल युवराज घोषित किया जाएगा, और भविष्य में अयोध्या के राजा वही बनेंगे।

“ये तो बहुत खुशी की बात है मन्थरा, तुम कहो तुम्हें इस खुशखबरी के लिए क्या इनाम दिया जाये?”

“रानी आपका दिमाग चल गया है। आप आने वाले दुखों की आहट नहीं सुन पा रही हैं। अभी छत पर उस दो टके की दासी ने जो कहा है, उसका मर्म आप नहीं समझ पा रही हैं। उसने, जिसे मैंने दीदी कह कर पुकारा था, पूछा था कि जश्न की ये तैयारियाँ क्यों हो रही हैं, तो उसने बहुत अकड़ते हुए कहा कि उसके राम का युवराजभिषेक हो रहा है।”

“तो इसमें गलत क्या है मन्थरा? राम तो हम सबका प्रिय है। तुम खुद राम की तारीफ करते नहीं अघाती, आज तुम्हें क्या हो गया है? अभी मिनट भर में राम यहाँ आता ही होगा, और आते ही माते कह कर मुझसे लिपट जायेगा। तुम इसमें इतनी आहत क्यों हो?”

“रानी! आपकी मति मारी गई है। उस दासी ने आज मेरा अपमान किया है। अभी राम युवराज बने नहीं हैं, उसने ये फर्क करना शुरू कर दिया है कि वो युवराज की दासी है। भविष्य में राम राजा बनेंगे, तो वो राजा की दासी होगी। जब एक दासी दूसरी दासी से व्यवहार में फर्क करने लगी है, तो सोचिए आपके साथ क्या हो सकता है?”

“मन्थरा, ये क्या अन्ड-बन्ड बके जा रही है। तेरा दिमाग क्रोध और ईर्ष्या से भरा है। एक दासी के कहे को तू दिल से लगा कर बदले की भावना से भरी है। उस दासी ने खुशी में ऐसा कहा होगा कि मेरे राम… तू जा और चाय बना, खुद भी पी, मुझे भी पिला।”

“रानी, मैं तो दासी हूँ। मैंने उस दासी का अपमान बर्दाश्त कर लिया तो मेरा कुछ घट नहीं गया, लेकिन रानी जिस दिन आपकी जरा सी उपेक्षा हो गई, मैं उस दिन से डर रही हूँ। मैं जानती हूँ कि आप सह नहीं सकेंगी उस दुख को, जिसे सह कर मैं अभी-अभी छत से लौटी हूँ।”

माँ ने कहानी यहाँ तक सुनाई। फिर उसने अपनी आँखें पोछीं और कहा कि सन्जू बेटा छोटा सा झूठ, जरा सा क्रोध, मामूली सी ईर्ष्या और थोड़े से अहंकार से इतिहास बदल गया।

“माँ, रानी कैकेयी ने फिर क्या किया?”

बेटा, जब कोई किसी को ये विश्वास दिला देता है कि वो जो कुछ कह रहा है, उसमें उसका कोई स्वार्थ नहीं छिपा तो आदमी विवश हो उठता है एकबार उसकी बात पर ध्यान देने पर। मन्थरा को राम से या कौशल्या से कोई शिकायत नहीं थी। मन्थरा क्या, इस संसार में ऐसा कोई नहीं था जिसे राम से शिकायत होती। लेकिन उस दिन राम की धाय का ‘मेरे राम’ कहना भर मन्थरा को बहुत आहत कर गया था। मन्थरा ने उस धाय से चिढ़ कर कैकेयी के मन के दूध स्रोत पर ही नींबू का रस निचोड़ दिया। तुम तो जानते ही सन्जू कि नींबू का रस डलते ही दूध फट जाता है। और एकबार दूध फट गया, तो फट गया।

मन्थरा अपनी रानी के लिए चाय बनाने चली गई, इधर कैकेयी सोच में डूब गई।

कहीं ये मन्थरा सही तो नहीं कह रही। ये तो सच ही है कि अगर राम को राजा बना दिया गया कौशल्या ही राजमाता बनेंगी। महल में उनका दर्जा अलग होगा। जब राम महल में आयेंगे तो सारे लोग खड़े होकर उनका अभिवादन करेंगे। मेरा पुत्र भरत भी खड़ा रहेगा राम के आगे। लेकिन भरत तो आज भी राम के आगे नहीं बैठता। वो तो अपने बड़े भाई के आगे खड़ा ही रहता है। छोटा भाई है, उसे खड़ा रहना भी चाहिए। संस्कार तो यही कहते हैं। फिर क्या फर्क पड़ेगा? राज माता… राजा… उपेक्षा… ओह! दर्द से सिर फटा जा रहा है। ये मन्थरा की बच्ची अब तक चाय लेकर भी नहीं आई। अरे कहीं डिस्प्रिन की गोली है?

जब तक मन्थरा हाथ में चाय की प्याली लिए आई, रानी कैकेयी जमीन पर बेसुध पड़ी थीं। मन्थरा ने खबर फैला दी कि रानी कैकेयी बहुत दुखी है। वो अब किसी से नहीं मिलेंगी। वो कोप भवन में चली गई हैं।

सब दौड़े-दौड़े आये। लेकिन मन्थरा ने किसी को बेसुध पड़ी रानी से नहीं मिलने दिया। उसने कहा कि रानी पहले राजा दशरथ से मिलेंगी फिर कोई और उनसे मिल सकता है।

कैकेयी की तन्द्रा टूटी तो खुद को उन्होंने कोप भवन के पलंग पर पाया। मन्थरा सिर पर पंखा झल रही थी। रानी ने उसकी ओर देखा, धीरे से पूछा, “मुझे क्या हुआ है मन्थरा?”

“कुछ नहीं रानी। मैं चाय लेकर आई तो आप जमीन पर गिरी पड़ी थीं। मैंने सबको खबर दी, लेकिन सभी राम के युवराजाभिषेक की तैयारी में इतने व्यस्त हैं कि कोई आपको देखने तक नहीं आया। मैं किसी तरह उठा कर आपको इस पलंग तक लाई हूँ।”

“तुम सच कहती हो मन्थरा, एक तुम ही मेरी अपनी हो। तुम बिना किसी स्वार्थ के मेरी सेवा में डूबी हो। मेरी इतनी तबियत खराब हुई, तुमने सबको खबर भी करवाया लेकिन कोई मुझसे मिलने तक नहीं आया। मन्थरे, कुब्जे, तू ही मेरी है, बस तू ही। अब तू ही बता, मुझे आगे क्या करना चाहिए?”

“कुछ नहीं रानी, बस महाराज आयेंगे तो आप कह दीजियेगा कि आपको अब उनसे नहीं मिलना।”

“मन्थरे, साफ-साफ बता कि इसका क्या अर्थ हुआ? अगर मैं कह दूँगी कि मुझे नहीं मिलना तो वो लौट ही जायेंगे। फिर मेरा क्या होगा?”

“अरी रानी। पुरुष ऐसे वापस नहीं लौटते। इससे तो उनके अहं को चोट पहुँचती है। आप नहीं मिलने की सिर्फ बात कहना, फिर लिपट कर फूट-फूट कर रोना। कहना कि बहुत साल पहले आपने मुझे जो एक वर दिया था, उसे आज पूरा करने का वक्त आ गया है। आप राम को वन भेज दीजिए। बस इतना ही कहना है।”

“राम को वन? लेकिन क्यों”

“रानी, इतने सवाल जवाब मत कीजिए। छत पर कौशल्या की जो दासी मिली थी, और जिसने मुझसे बहुत ही हिकारत भरे लहज़े में कहा था- मेरे राम, उसे इससे बेहतर और कोई जवाब हो ही नहीं सकता कि उसके राम को वन भेज दिया जाए। उस बुढ़िया की सारी हेकड़ी जाती रहेगी।”

माँ कहानियाँ सुनाते हुए भावुक हो जाती थी। उस रात भी वो इसके आगे कुछ बोल नहीं पा रही थी। उसने बस इतना कहा, “किसकी हेकड़ी, किसका अहंकार, यहीं से संसार का इतिहास बदल गया।”

लेकिन माँ, “राम तो फिर लौट आये थे।”

लौटे थे बेटा। लेकिन तब तक बहुत सा संसार बदल चुका था। संसार बहुत छोटी-छोटी बातों पर बदल जाए, ये अच्छा संकेत नहीं होता।

एक झूठ बहुत से सच को ढक ले, ये भी अच्छा नहीं होता। बल्कि सच तो ये है कि हर झूठ उसके लिए भी ये दुख का कारण बनता है, जो इसका सहारा लेता है। संजय बेटा तुम अभी सो जाओ, फिर मैं कल बताऊँगी कि मन्थरा का क्या हुआ, कैकेयी का क्या हुआ।

“और माँ, उस हनुमान की कहानी भी सुनाओगी न! जिसने पूँछ में आग लगा कर लंका को जला दिया था।”

“हाँ, उसकी भी। लेकिन अभी ये सोचते हुए सो जाओ कि झूठ और अहंकार से किसी को कुछ हासिल नहीं होता। झूठ और अहंकार इतिहास का स्वरूप बदल सकते हैं, खुशियों का संसार नहीं खड़ा कर सकते।

खुशियों का संसार सच और विनम्रता से ही हासिल होता है।

(देश मंथन, 08 मई 2015)

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