संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ की सुनाई सभी कहानियाँ मैं एक-एक कर आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
मुझे बहुत बार आश्चर्य भी होता है कि माँ को कैसे इतनी कहानियाँ याद रहती थीं।
उनकी कहानियों के आगे रातें छोटी पड़ जाती थीं। मैं कई बार ये सोच कर भी हैरान रह जाता हूँ कि इतनी कहानियाँ उन्होंने कब पढ़ी या सुनी होंगी। तब कम्प्यूटर और इंटरनेट का जमाना नहीं था, लेकिन माँ चलती-फिरती गूगल थी।
मुझे नहीं याद कि माँ से मैंने कोई सवाल पूछा हो और माँ ने चुप्पी साध ली हो।
“माँ, किसने देखा और बताया कि धरती का आकार गोल है।”
“वैसे तो तुम्हारे स्कूल की किताबों में लिखा है कि पाइथोगोरस ने सबसे पहले बताया कि धरती गोल है। लेकिन जीवन का चक्र भी गोल है, इसलिए ये समझने की बात है कि कोई भी चीज संपूर्ण तब होती है, जब वो गोल हो। और धरती अपने आप में संपूर्ण है।
“माँ, धरती को माँ क्यों कहते हैं?”
“बेटा, जिस धरती पर हम रहते हैं, उसमें ईश्वर ने हमें प्रचुर मात्रा में वो सारी चीजें दी हैं, जिनसे हमारा जीवन संचालित होता है। आदमी की सभी जरूरतें इस धरती से पूरी होती हैं। इसीलिए धरती को मां कहते हैं।”
“माँ जब सभी के लिए धरती के पास पर्याप्त है, फिर कोई गरीब और कोई अमीर क्यों होता है?”
“कोई अमीर या कोई गरीब नहीं होता बेटा, ये मन की गति है, जो आदमी को अमीर या गरीब बनाती है। भगवान ने तो सबकी जरूरत पूरी करने के लिए सब चीजें धरती में समाहित करके दे दीं। इतनी दे दीं कि किसी को कोई कमी न हो। लेकिन जिसके मन में कमी है, उसके लिए तो पूरी पृथ्वी कम पड़ जाती है। मन के लालच की कोई सीमा नहीं होती बेटा।”
“माँ, क्या सचमुच पैसा सबसे बड़ी चीज है? क्या पैसे से हर काम हो जाता है? क्यों पैसे को इतनी अहमियत दी जाती है?”
“पैसा सबसे बड़ी चीज नहीं। सबसे बड़ी चीज है संतोष। हाँ, तुमने ये अच्छा पूछा कि पैसे से हर काम क्यों हो जाता है। आज तुम्हें मैं एक राजा और पंडित की कहानी सुनाऊँगी।”
माँ का इतना कहना होता और मैं खुश हो जाता। माँ से कोई सवाल पूछने का सबसे बड़ा लाभ यही था कि माँ एक शानदार कहानी सुनायेगी।
“तो माँ, जल्दी शुरू करो न कहानी।”
“एक राजा था। बहुत दयालु और भगवान का भक्त। उसकी राजधानी में कोई मन्दिर नहीं था। एकदिन उसने राजधानी में भगवान जी का एक मन्दिर बनवा दिया और एक पंडित को मन्दिर की जिम्मेदारी सौंप दी। पंडित बहुत विद्वान था। वो सुबह-शाम मन्दिर खोलता, बन्द करता। भगवान जी को तैयार कराता, लोगों की पूजा कराता।
इस तरह राज्य में सभी खुशी पूर्वक रह रहे थे। लोग मन्दिर जाते विष्णु भगवान की सुन्दर सी मूर्ति की पूजा करते, चले आते। पंडित ने मन्दिर के खुलने और बन्द होने का समय निर्धारित कर दिया था। राजा भी रोज शाम को मन्दिर जाता, पूजा करता और चला आता। एक दिन राजा को मन्दिर पहुँचने में देर हो गई, वो जब मन्दिर पहुँचा तो उसने पाया कि पंडित ने मन्दिर का दरवाजा बन्द कर दिया है। राजा ने पूछा तो पंडित ने कहा कि राजन, अब भगवान जी सो गये हैं, इसलिए पट बन्द हो गये, मन्दिर बन्द हो गया। कल सुबह खुलेगा तो आप दर्शन कर लीजियेगा।
राजा बहुत प्रसन्न हुए। पंडित नियम का पक्का है, ये जान कर उन्हें अत्यंत खुशी हुई।
एक दिन देर रात दूसरे राज्य से एक सेठ वहाँ आया और उसने मन्दिर में भगवान के दर्शन की इच्छा जताई। वो मन्दिर पहुँचा तो मन्दिर के द्वार बन्द थे। वो पंडित से मिला, पंडित ने मन्दिर का द्वार नहीं खुलने की बात कही। कहा कि मन्दिर सुबह ही खुलेगा। सेठ को बहुत निराशा हुई। फिर उसने पंडित के हाथों में स्वर्ण मुद्रा से भरी एक थैली पकड़ाई और कहा कि इसे भगवान के चरणों में अर्पित करना है।
पंडित ने स्वर्ण मुद्रा से भरी थैली देखी और उसने मन्दिर का द्वार खोल दिया।
किसी व्यक्ति ने इस बात की शिकायत राजा से कर दी कि हुजूर पंडित ने उस सेठ के लिए मन्दिर का बन्द द्वार खोल दिया था।
राजा ने पंडित को बुलाया।
क्यों पंडित मन्दिर खुलने का समय कब होता है?
राजन, सुबह छह बजे।
और बन्द होने का समय?
राजन, शाम के सात बजे।
कैसे तय होता है कि भगवान कब सोते और जागते हैं?
राजन, जब मैं सुबह भगवान को नहला कर तैयार करके आरती करता हूँ तो भगवान जाग जाते हैं और शाम को जब मैं फिर आरती करके, उन्हें भोग लगा कर सुला देता हूँ तो वो सो जाते हैं।
क्या भगवान सोने के बाद फिर रात में नहीं जागते?
नहीं राजन। जब वो एक बार सो गये तो फिर सो गये। उन्हें परेशान नहीं किया जा सकता।
सोच लो पंडित। क्या भगवान किसी तरह नहीं जागते, या कोई उपाय है?
पंडित का माथा ठनका कि हो न हो किसी से उस दिन सेठ के लिए मन्दिर खोलने की शिकायत कर दी हो। उसने सिर झुका कर कहा कि हुजूर, अगर माँ लक्ष्मी दरवाजे पर दस्तक दें तो फिर मन्दिर को खुलने से कोई नहीं रोक सकता। मैं चाहूँ तो भी नहीं। मैं अगर मन्दिर के द्वार नहीं खोलूँगा, तो भगवान विष्णु स्वयँ द्वार खोल देंगे। आखिर लक्ष्मी उनकी पत्नी हैं।
राजा समझ गया। लक्ष्मी अगर दस्तक देंगी तो भगवान भी द्वार खोलने के लिए खड़े हो जायेंगे।
माँ जानती थी कि मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल गया है, इसलिए वो कहानी रोक कर ये देखने की कोशिश करती कि मैं कहीं सो तो नहीं गया।
लेकिन मैं आँखें बन्द कर सोचता रहता कि सचमुच लक्ष्मी दस्तक दें तो…।
(देश मंथन, 13 मई 2015)