अभी धुंधली है विधान सभा चुनाव की तस्वीर

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श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार

बिहार विधानसभा का चुनाव का बिगुल बज चूका है। चुनाव आयोग सितम्बर -अक्तूबर माह में चुनाव कराने की तैयारी में जुट गया है। लेकिन अभी तक राजनीतिक समीकरण साफ नहीं हैं। वैसे तो बीजेपी बनाम जनता परिवार के बीच की लड़ाई बनाने की तैयारी है। लेकिन वह अभी तक पूरी नहीं हो पाई है।

जनता परिवार का विलय चुनाव से पहले संभव नहीं दिखता है। लेकिन बीजेपी को रोकने के लिए या फिर अपनी जमीन बचाए रखने के लिए लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का साथ रहना मजबूरी है। जाहिर है विलय हो या न हो, चुनाव में आरजेडी-जेडीयू के बीच सीटों का तालमेल जरूर होगा। अगर लालू-नीतीश कुमार सीटों के बंटवारे को लेकर फंसे पेंच को सुलझा लेते हैं तब भी उनके समाने सबसे बड़ी चुनौती होगी सही उम्मीदवार के चयन की और बागी नेताओं को मनाने की। इसमें कोई शक नहीं कि बागी उम्मीदवार, जनता परिवार और बीजेपी दोनों के लिए, बड़ा सरदर्द साबित होंगें। दोनों ही गठबन्धनों में हजार से ज्यादा दावेदार हैं। लेकिन सीटें मात्र 243 ही हैं। गठबन्धन के कारण कम पड़ती सीटें और चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले नेताओं की बढ़ती संख्या के कारण इस बार का चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।

इस साल चुनौती बड़ी है। लेकिन लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारियाँ अभी आधी-अधूरी हैं। बीजेपी कितनी सीटें अपने सहयोगी दलों को देगी और लालू-नीतीश कुमार कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगें अभी तक तय नहीं हो पाया है। विधान सभा सीटों की बात छोड़िये विधान परिषद् की सीटों को लेकर ही बीजेपी और उसके सहयोगी दलों में मन-मुटाव कायम है। वहीं हाल आरजेडी – जेडीयू – कांग्रेस के बीच भी है।

इस बार लड़ाई दलों के बीच न होकर खेमों और गठबन्धनों के बीच होगी। लालू यादव और नीतीश कुमार की कोशिश इस लड़ाई को भाजपा के सहयोगी बनाम उसके विरोधी की बना देने की है। लेकिन सभी दलों के अपने-अपने समीकरण हैं, अपने-अपने आधार और दावे हैं। जिसकी वजह से अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है। बाजी वही मारेगा जो समय से सीटों का बंटवारा कर सही उम्मीदवारों का चयन कर पायेगा। आखिरी समय तक मामले को खींचने वाले दल ना तो सीटों का सही ढंग से बंटवारा कर पायेंगे और ना ही योग्य उम्मीदवारों का चयन। कायदे से अब तक चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया जाना चाहिए था ताकि सामने आने वाले बागियों की पहचान हो सके और उन्हें अधिकृत उम्मीदवार के समर्थन के लिए तैयार किया जा सके।

इसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं पहली बार सामाजिक न्याय के दो बड़े पुरोधा जो पिछले डेढ़ दशक से सत्ता पर अपनी दावेदारी को लेकर एक-दूसरे के घोर विरोधी रहे हैं, आज बीजेपी के डर के कारण ही सही एक साथ खड़े दिख रहे हैं। इन दोनों के साथ खड़े होने के कारण ही बीजेपी के लिए अबतक आसान दिख रही लड़ाई अब चुनौती भरी दिख रही है। अब देखना ये है कि कभी धुर विरोधी रहे लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के अब एक मन्च से बिहार की किस्मत लिखने के किये जाने वाले वायदे पर राज्य की जनता किस हद तक भरोसा कर पाती है। कांग्रेस और वामपंथी दल न तो बीजेपी के लिए चुनौती हैं और ना ही बीजेपी उनके लिए चुनौती है। इन दोनों राजनीतिक दलों के सामने लालू-नीतीश के साथ होकर कुछ सीटों पर जीत हासिल कर अपनी वजूद बनाए रख लेने का अवसर जरूर है। नीतीश कुमार और लालू यादव भी कांग्रेस – वाम दलों को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन पेंच फंसा है सीटों की संख्या को लेकर ।

लड़ाई को ज्यादा दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण बना दिया है जीतन राम मांझी और पप्पू यादव ने अपनी अपनी नयी पार्टी बनाकर। मांझी और पप्पू यादव दोनों नीतीश कुमार और लालू यादव के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं। मांझी दलित वोट बैंक में तो पप्पू यादव यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं। इनका प्रभाव भले पूरे राज्य में न हो लेकिन अपने-अपने क्षेत्र में बीजेपी से साँठ-गाँठ कर दोनों जनता परिवार को चुनौती जरूर देगें। जनता परिवार से ज्यादा सीटें नहीं मिलाने की गुन्जाइश की वजह से वाम दल इनके साथ जाने पर विचार कर सकते हैं।

बीजेपी की चुनौती भी ज्यादा बड़ी और उससे निबटने की मुस्तैदी कम दिख रही है। बीजेपी और उसके सहयोगी दलों में विधान सभा सीटों के बंटवारे की बात तो दूर अभी तक विधान परिषद् की सीटों को लेकर भी फैसला नहीं हो पाया है। रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के लिए बीजेपी कितनी सीटें छोड़ेगी और सीट बंटवारे का फार्मूला क्या होगा, इसमें अभी कई पेच हैं। मांझी गुट के भी ज्यादातर नेता बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं ,ऐसे में बीजेपी के लिए अपने सहयोगी दलों के खाते की सीटें काटकर मांझी को देना आसान काम नहीं होगा ।

अब देखना ये है कि क्या लालू के साथ मिलकर नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचा पाते हैं? क्या लालू प्रसाद-नीतीश कुमार का साथ देकर अपनी राजनीतिक जमीन बचा पाते हैं ? क्या बीजेपी मोदी मैजिक के जरिये एकसाथ आये सामाजिक न्याय के दो बड़े पुरोधाओं को मात देकर सत्ता हासिल कर पाएगी ? इन सभी सवालों का जवाब अभी तक तो अनुतरित हैं। क्योंकि वर्तमान राजनीतिक हालात ऐसे नहीं हैं कि अभिकुछ भविष्यवाणी की जा सके।

(देश मंथन, 20 मई 2015)

 

 

 

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