वेधशाला है दिल्ली का जन्तर-मन्तर

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

दिल्ली के संसद मार्ग पर है जन्तर-मन्तर। आजकल जन्तर-मन्तर का नाम आते ही धरना-प्रदर्शन का दृश्य जेहन में घूमने लगता है।

अक्सर संसद मार्ग पर धरना-प्रदर्शन करने वाले लोग ऐतिहासिक जन्तर-मन्तर के ठीक पीछे वाले स्थान पर अपना ठिकाना बनाते हैं। पर जन्तर-मन्तर एक ऐतिहासिक वेधशाला है। यह अन्तरिक्ष और मौसम संबंधी जानकारियाँ पाने का प्रमुख जरिया है।

जन्तर-मन्तर का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने करवाया था। उनकी खुद विज्ञान में गहरी रूचि थी। दिल्ली के जन्तर-मन्तर का निर्माण 1724 में कराया गया था। अब ये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित स्मारक है। इसमें प्रवेश टिकट पाँच रुपये का है और ये सातों दिन खुला रहता है। जन्तर-मन्तर दिल्ली में कुल 13 अलग-अलग तरह के उपकरण लगाए गये थे। 1857 के विद्रोह के समय जन्तर-मन्तर के कई उपकरणों को काफी नुकसान पहुँचा था। बाद में इन्हें सही रूप दिया गया। हालाँकि अब संसद मार्ग के आसपास बन गयी विशालकाय इमारतों के कारण अब इस वेधशाला से कई तरह के सही आकलन कर पाने में मुश्किलें आती हैं। जन्तर-मन्तर से सूर्य और चन्द्रमा की गति तारों की स्थियाँ आदि के बारे में आकलन किया जा सकता है। दिल्ली के जन्तर-मन्तर में सम्राट यन्त्र, जय प्रकाश यन्त्र और मिश्र यन्त्र जैसे प्रमुख यन्त्र हैं। 70 फीट ऊँचा सम्राट यन्त्र इनमें से सबसे प्रमुख यन्त्र है। मिश्र यन्त्र से साल के सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ा दिन आदि का आकलन किया जा सकता है। इस यन्त्र से दोपहर के सही समय का भी आकलन किया जा सकता है।

देश में पाँच जन्तर-मन्तर 

पर सवाई जय सिंह ने सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि देश में कुल चार शहरों में जन्तर-मन्तर का निर्माण कराया। दिल्ली के अलावा दूसरे जन्तर-मन्तर वाराणसी, उज्जैन और मथुरा में बने हैं। वाराणसी की वेधशाला दशाश्वमेध घाट के पास मान मन्दिर महल में है। एक वेधशाला जयपुर में भी बना है। ये हवा महल के पास है । सवाई जय सिंह से 1724 से 1734 के बीच दस सालों में देश में पाँच वेधशालाओं का निर्माण कराया। इससे उनकी विज्ञान में गहरी रूचि का पता चलता है।  

(देश मंथन, 22 मई 2015)

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