संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये संसार बुराइयों से भरा पड़ा है। ये संसार अच्छाइयों से भी भरा पड़ा है।
संसार में अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग हैं। अच्छे को बुरे लोग बुरे लगते हैं। बुरे को भी अच्छे लोग बुरे लगते हैं।
मुझे बताने की जरूरत नहीं कि बुरे लोगों के झाँसे में आने वाले लोग एक अन्तहीन दुख में फँस जाते हैं और अपना मान, सम्मान, धन सब गँवा बैठते हैं।
बहुत मुश्किल होता है बुरे को पहचानना। बुरा हमेशा अच्छाई के वस्त्र धारण करके घूमता है। ऐसे में उसकी पहचान बहुत आसान नहीं होती। लेकिन संजय सिन्हा की एक बात अगर आप मान लेंगे तो बुरे से बचना आसान हो सकता है।
बचपन में माँ ढेरों कहानियाँ सुना कर मुझे जीवन को समझने की प्रेरणा देती थी। उसकी हर कहानी में कोई न कोई सन्देश छुपा रहता था। उसकी सुनायी ढेरों कहानियों का मतलब तो मुझे अब समझ में आ रहा है।
आज मुझे एक कहानी का सन्देश याद आ रहा है- “आजमाये हुए को दुबारा नहीं आजमाना चाहिए।”
चलिए आज मैं भी आपको एक कहानी भी सुनाता हूँ।
“कहानी शुरू करो संजय।”
“हाँ-हाँ कहानी शुरू करता हूँ।”
एक गाँव में एक बहुत ही दुष्ट व्यक्ति रहता था। सारे गांव को उसने दुखी कर रखा था। वो सबसे बात-बात पर झगड़ा करता। फेसबुक पर जो उसके मित्र थे, उन्हें उल-जलूल सन्देश भेजता। उनकी वाल पर जाकर घटिया टिप्पणियाँ करता। तमाम लोग उसे ब्लॉक कर देते, फिर भी नाम बदल कर नए एकाउन्ट से उनकी वाल पर घुस जाता। कभी लड़की बन लड़कों से चैट करता, कभी लड़का बन कर लड़कियों से चैट करता। उसकी इस आदत से लोग फेसबुक पर किसी अनजान व्यक्ति से दोस्ती करने में घबराने लगे थे।
वो गाँव में किसी के घर पहुँच जाता, पैसे माँगता। कभी ये बहाना बनाता, कभी वो बहाना बनाता। वो गाँव के लोगों के ट्रैक्टर पर रात में कील से स्क्रैच भी मार देता। मतलब पूरा गाँव उस दुष्ट व्यक्ति से आहत था। सब चाहते थे कि वो आदमी गाँव छोड़ कर किसी तरह चला जाए, बस।
एक दिन वो आदमी मर गया।
मर गया लेकिन एक पत्र लिख कर मरा।
उसने पत्र में लिखा,
“प्रिय गाँव वालों,
मैं जानता हूँ कि मेरी दुष्टता से आप लोग बहुत परेशान रहे हैं। मैं ये भी जानता हूँ कि आप लोग मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं करते थे। लेकिन मैं भी क्या करता, मैंने बहुत कोशिश की कि मैं अच्छा आदमी बनूँ, लेकिन आदत भला किसी की जाती है क्या? तो मेरी लाख कोशिशों के बाद भी मैं सुधर नहीं सका। बगल वाले तिवारी जी के नये ट्रैक्टर में मैंने पेचकस से स्क्रैच मारा। ऐसा करते हुए मेरा मन तो बहुत दुखा, लेकिन तब मजा भी बहुत आया, जब मैंने तिवारी जी को परेशान होते हुए देखा।
मैंने करीब-करीब आप सभी लोगों से पैसे ठगे। सबकी खूब शिकायतें कीं। अब अचानक मेरी मौत हो रही है, तो मुझे बहुत अफसोस है कि आप लोगों से माफी माँगने का मौका भी नहीं मिला। ऐसे में मैं आप लोगों से गुजारिश करता हूँ कि मेरी मौत के बाद आप लोग मेरी लाश को रस्सी में बांध कर, तिवारी जी के ट्रैक्टर में बांध कर, सड़क पर घसीटते हुए अन्तिम संस्कार के लिए ले जाएँ।
मुझे नहीं पता कि मरने के बाद क्या होता है, लेकिन मुझे लगता है कि आपके ऐसा करने से मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी। मैंने जीवन भर जो छल कपट किया, धोखा किया, उससे शायद मुझे मुक्ति मिल जायेगी। मुझे उम्मीद है कि मुझ जैसे घटिया और दुष्ट आदमी की ये आखिरी इच्छा आप जरूर पूरी करेंगे।”
***
गाँव वाले उसके पत्र को पढ़ कर भाव विह्वल हो गये। ओह! बेचारे को अपने किये का इतना अफसोस है। उन लोगों ने उस आदमी की अन्तिम इच्छा का सम्मान करने की सोच ली।
बात संजय सिन्हा तक आयी, तो संजय सिन्हा ने समझाने की बहुत कोशिश की कि अरे ऐसा मत कीजिए।
“अरे भाइयों, आजमाये हुये को नहीं आजमाना चाहिए। जिसने जीवन भर धोखा दिया, झूठ बोला उसकी इन बातों में मत आइए।”
लेकिन गाँव के भोले लोगों ने कहा कि नहीं, किसी की अन्तिम इच्छा का अपमान नहीं किया जाना चाहिए।
संजय सिन्हा समझ गये कि उनकी एक नहीं चलने वाली। वो वहाँ से खिसक लिए।
गाँव वाले एक मोटी रस्सी लेकर आये। लाश को ट्रैक्टर में बांधे और पूरा गाँव उस लाश को घसीटता हुआ श्मशान घाट की ओर चल पड़ा।
रास्ते में थाना पड़ता था। दारोगा साहब ने देखा कि गाँव के लोग ट्रैक्टर में बांध कर घसीटते हुए एक लाश लेकर जा रहे हैं।
उसने सबको रोक लिया। सबने कहा कि हुजूर ये गाँव का दुष्ट व्यक्ति है, मरते हुए इसने अपनी अन्तिम इच्छा जतायी है कि इसे ऐसे ही घसीटते हुए ले जाया जाये।
दारोगा ने गाँव वालों की एक न सुनी। लाश के साथ कुकृत्य की सजा में सबको बन्द कर दिया।
गाँव वाले रोते रहे, बिलखते रहे। लेकिन उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया गया।
सारे गाँव वाले बन्द हैं। अब सब कह रहे हैं कि देखो, दुष्ट व्यक्ति का कारनामा। जाते-जाते भी सबको फँसा गया।
***
अब मैं क्या करूँ। मैंने तो सबको रोका ही था। कहा था कि आजमाये हुए को दुबारा नहीं आजमाना चाहिए।
अब भुगतो।
(देश मंथन, 04 जून 2015)