आदमी की गलतियाँ उसकी थाली के नीचे छुपी होती हैं

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आज लिखने में देर होने की बहुत बड़ी वजह है मेरी पत्नी को ऐसा लगना कि मेरा वजन बढ़ गया है, और मैं खाने-सोने-जागने पर नियन्त्रण नहीं रखता। 

कल रात घर में आलू-गोभी की दम वाली सब्जी बनी थी, पराठे बने थे। लेकिन मुझे उसमें से कुछ भी खाने को नहीं मिला।

मेरे मित्र ने लंगड़ा आम भिजवाया है। लेकिन मेरे नसीब में कल वो भी नहीं आया। 

जानते हैं मुझे कल खाने में क्या मिला? मुझे कल सिर्फ मूंग की दाल का पानी मिला। अब ऐसा नहीं है कि मेरी तबीयत खराब है। लेकिन कल ही वजन लेने वाली मशीन पर मैं अति उत्साह में चढ़ गया था और मेरी पत्नी ने देख लिया कि उसके हिसाब से कम से कम पाँच से आठ किलो मेरा वजन ज्यादा है। 

मैं तो कहता हूँ कि मशीन में खराबी है, लेकिन पत्नी नहीं मानती। उसका कहना है कि मैंने पिछले दिनों अपने जीवन शैली में जो लापरवाही बरती है, उसका नतीजा है कि मेरी आँखों के नीचे काले घेरे बन गये हैं, वजन बढ़ रहा है। 

मेरा मानना है कि एक दिन खा लेने से कुछ नहीं होगा। पत्नी कहती है कि हर गलती की एक सजा होती है। वजन का बढ़ना मेरे खाने के समय और उसकी मात्रा पर नियन्त्रण नहीं रखने की वजह से हुआ है। 

जाहिर है सुबह उठ कर मैंने जैसे ही लैपटॉप खोला, पत्नी जूते पहन कर सामने खड़ी हो गयी कि चलो टहलने चलते हैं। 

लो जी, हो गया आज की पोस्ट का बंटाधार। 

अब मैं सुबह-सुबह टहलने चला गया तो लिखता क्या। सारे रास्ते सोचता रहा कि आज क्या लिखूँगा। अचानक राजेश खन्ना की फिल्म ‘आज का एमएलए रामावतार’ की याद आ गयी। 

मुमकिन है आप में से कुछ लोगों ने राजेश खन्ना की ये वाली फिल्म ‘आज का एमएलए रामावतार’ देखी होगी। मुझे पता है कि फिल्म का नाम पहले आज का एमएलए था, लेकिन सेंसर बोर्ड को लगा कि इस तरह के नाम से एमएलए यानी विधायक लोग नाराज हो जायेंगे इसलिए उसमें रामावतार नामक संज्ञा को लगा दिया गया। यानी जो गड़बड़ी है वो रामावतार में है, हमारे यहाँ के नेताओं में नहीं। 

खैर, फिल्म कोई इतनी महान नहीं थी कि मैं उसकी यहाँ चर्चा करने बैठ जाऊँ। 

मैं तो सिर्फ उसके एक दृश्य की बात करने बैठा हूँ। 

जिन लोगों ने फिल्म देखी है, उन्हें याद होगा कि कैसे और किन परिस्थितियों में बेईमान नेता मिल कर रामावतार नामक एक भोले-भाले आदमी को मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बिठा देते हैं, ताकि वो उनके लिए मोहरे के रूप में काम करता रहे। पर मोहरा पलट जाता है और नेताओं को ही चुनौती देने लगता है। 

जिन नेताओं ने रामावतार को मुख्यमन्त्री की कुर्सी दिलायी होती है, वो उसे ब्लैकमेल करते हैं तुम मेरा ये काम करो, वो काम करो नहीं तो तुम्हारी कुर्सी ले ली जायेगी। 

रामावतार उन सभी नेताओं को एकदिन अपने घर खाने पर बुलाता है। सारे नेता जब खाने पर बैठ जाते हैं तो वो उनसे अनुरोध करता है कि आप सब अपनी-अपनी थाली के नीचे देखिए आपका पाप कैसे छुप कर बैठा है। 

सारे नेता अपनी-अपनी थालियाँ उठाते हैं, उन्हें उसके नीचे एक-एक फाइल मिलती है। उन फाइलों में सभी नेताओं के काले कारनामों का चिट्ठा है। 

नेता फाइल देखते ही बिलबिला उठते हैं। 

“अरे रामावतार, तुम इन फाइलों को हटाओ। तुम तो सबसे अच्छे हो। हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं।” सारे नेता रामावतार के कदमों में लोट जाते हैं। जो उसकी कुर्सी गिराने की धमकी दे रहे थे वो ठंडे पड़ जाते हैं। 

जब मैं ये फिल्म देख रहा था, मेरे मन में ये बात बहुत भीतर तक बैठ गयी थी कि आदमी अपने जीवन में जब गलतियाँ करता है, तो वो उसकी थाली के नीचे जमा हो जाती हैं। आदमी भले गलतियाँ करके भूल जाये, वो उसके अतीत की फाइल के रूप में उसकी थाली के नीचे छुपी रहती हैं।

मेरे खुद को अनुशासन में नहीं रखने का नतीजा मेरी थाली के नीचे छिपी वो वसा है, जिसकी कीमत के रूप में आज मुझे आपको गुड मॉर्निंग कहने की जगह सूरज भगवान को गुड मॉर्निंग कहना पड़ा। सुबह चाय की जगह नींबू पानी से काम चलाना पड़ा। आलू गोभी की दम वाली सब्जी सबको खाते देखता रहा, ललचता रहा। लंगड़ा आम मुझे चिढ़ाता रहा। 

मैं तो अपनी गलतियों का हिसाब चुका रहा हूँ। पर आज सबसे अनुरोध कर रहा हूँ कि आप अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति से कहिएगा कि वो ऐसी गलती न करें जो उनकी थाली के नीचे वाली फाइल में जमा हो जाये और उसके लिए उन्हें शर्मिंदा होना पड़े। 

पत्नी कहती है कि हर गलती की एक सजा होती है, मेरी सजा तो फिलहाल रात के खाने पर रोक और सुबह टहलने की मजबूरी तक सिमटी है। पर मैं जानता हूँ कि कई लोगों की गलतियों की सजा इतने पर नहीं खत्म होती।  

(देश मंथन, 06 जून 2015)

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